- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- फिर से महागठबंधन
नवभारत टाइम्स: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर बीजेपी को बाय-बाय कह दिया है। मंगलवार को उन्होंने एनडीए से अपना गठबंधन तोड़ते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसके ठीक बाद राज्य में आरजेडी, कांग्रेस और अन्य दलों की महागठबंधन सरकार के गठन की प्रक्रिया शुरू हो गई। हालांकि बिहार के लिए यह प्रयोग कोई नया नहीं है। 2013 में नीतीश के बीजेपी से गठबंधन तोड़ने का एलान करने के बाद 2015 के विधानसभा चुनाव में इस महागठबंधन ने जबर्दस्त जीत दर्ज की थी। लेकिन दो साल महागठबंधन सरकार चलाने के बाद नीतीश कुमार ने फिर से बीजेपी और एनडीए का दामन थाम लेना बेहतर समझा। अब एक बार फिर बीजेपी और एनडीए को छोड़कर महागठबंधन का यह प्रयोग दोहराया जा रहा है। लेकिन कहते हैं कि इतिहास खुद को दोहराता तो है, ज्यों का त्यों नहीं दोहराता। सो, इस प्रयोग को भी पूरी तरह पुराने अर्थों में नहीं समझा जा सकता। और, अगर नए, ताजा संदर्भों में देखें तो बिहार में एनडीए सरकार का गिरना खास तौर पर बीजेपी नेतृत्व के लिए झटका माना जाएगा। इसमें सबक भी सबसे ज्यादा उसी के लिए हैं। बीजेपी नेतृत्व पर पहले से यह आरोप लगता रहा है कि वह गठबंधन के अपने सहयोगी दलों को समुचित सम्मान नहीं देती और येन केन प्रकारेण अपने प्रभाव विस्तार की कोशिशों में लगी रहती है। महाराष्ट्र में हालांकि विपक्षी गठबंधन की सरकार थी, लेकिन जिस तरह से वहां सरकार गिराई गई, उसने बीजेपी नेतृत्व के तौर तरीकों को लेकर विपक्षी दलों के साथ-साथ सहयोगी दलों में भी आशंकाएं बढ़ाईं।
बिहार में जेडीयू की यह शिकायत पहले से रही है कि पिछले विधानसभा चुनावों में चिराग पासवान के जरिए उसकी सीटें कम करवाने में बीजेपी का ही हाथ रहा है। अगर आरसीपी सिंह के जरिए उसी तरह की साजिश फिर से रचने संबंधी आरोपों को सच न मानें तो भी यह सवाल तो बनता ही है कि बीजेपी नेतृत्व के आश्वासनों पर जेडीयू यकीन क्यों नहीं कर सका। इसका जवाब बीजेपी की उस आक्रामक रणनीति में निहित है, जिसके तहत प्रदेश बीजेपी नेताओं की ओर से जेडीयू और नीतीश कुमार के लिए असुविधाजनक हालात पैदा करने की कोशिशें लगातार की जाती रहीं। यही वजह थी कि पिछले दिनों पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की पटना में हुई बैठक में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का यह एलान भी बेअसर साबित हुआ कि पार्टी अगला विधानसभा चुनाव जेडीयू के साथ ही लड़ेगी और चुनाव के बाद मुख्यमंत्री भी नीतीश कुमार को ही बनाएगी। वैसे, हर पार्टी को अपनी जरूरतों और लक्ष्यों के अनुरूप अपनी रणनीति तय करने का अधिकार है, लेकिन एक अहम सहयोगी और हिंदी पट्टी का एक महत्वपूर्ण राज्य विपक्ष के हाथों गंवाने के बाद बीजेपी को इसे लेकर गहन आत्मचिंतन करने की जरूरत है।