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दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) में ऑफलाइन पढ़ाई शुरू नहीं होने से छात्रों में बड़े पैमाने पर नाराजगी है
विराग गुप्ता
दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) में ऑफलाइन पढ़ाई शुरू नहीं होने से छात्रों में बड़े पैमाने पर नाराजगी है. विरोध प्रदर्शन के दौरान एक छात्र नेता ने तो पेट्रोल डालकर आत्मदाह करने की कोशिश कर डाली. यही हाल स्कूलों का है. पिछले हफ्ते से 15 राज्यों में कक्षा 9 के बाद के बच्चों के स्कूल अनेक शर्तों के साथ खुले, लेकिन आधे से ज्यादा राज्यों में बंद हैं. दिल्ली में बड़े बच्चों की क्लास तो शुरू हो गई, लेकिन नर्सरी से आठवीं तक की कक्षाएं शुरू करने का निर्णय 14 फरवरी से लिया जाएगा.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के अनुसार 15 से 18 साल के किशोरों के लिए टीकाकरण अभियान बड़े पैमाने पर सफल हुआ है. पिछले हफ्ते तक देशभर में 65 फ़ीसदी किशोरों को कोरोना का पहला टीका लग गया. दिल्ली में 82 फ़ीसदी किशोरों को टीके लग चुके हैं. फ्रंटलाइन वर्कर्स होने की वजह से अधिकांश राज्यों में 90 फ़ीसदी से ज्यादा टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ का वैक्सीनेशन हो चुका है. नए वैरिएंट की दहशत बनी हुई है. लेकिन बड़े पैमाने पर बढ़ी इम्युनिटी और वैक्सीनेशन के बाद स्कूल और कॉलेज बगैर प्रतिबंध के पूरी तरह से खुलना चाहिए.
दो सालों से बंद स्कूल और कॉलेज से शिक्षा व्यवस्था ध्वस्त
अगर दिल्ली की बात करें तो कोरोना की पहली लहर के वक्त 15 मार्च 2020 को स्कूल बंद कर दिए गए थे और तब से छोटे बच्चों के स्कूल पूरी तरह से बंद हैं. यूनिसेफ के आंकड़ों के अनुसार स्कूलों की बंदी के मामले में विश्व में भारत तीसरे नंबर पर है. ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे 21 करोड़ से ज्यादा बच्चे जब स्कूल आएंगे, तो पुरानी अधिकांश लर्निंग भूल चुके होंगे. अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के अध्ययन के अनुसार 86 फ़ीसदी स्कूली बच्चों ने गणित विषय में अपनी मौलिक क्षमताएं खो दी हैं.
स्कूल और कॉलेज बंद रहने से बच्चों में अवसाद, कुंठा, निराशा और हताशा बढ़ गई है. कोरोना के वायरस और महामारी का प्रकोप खत्म होने के बाद स्कूल और कॉलेज को तो सबसे पहले खोलना चाहिए था. बाज़ार, जिम, सरकारी दफ्तर सभी खुल गए. पांच राज्यों में रैलियों के बीच चुनाव हो रहे हैं. तो फिर बच्चों के स्कूल और कॉलेज पूरी तरह से क्यों नहीं खुलते?
केंद्र सरकार की नई गाइडलाइंस
अक्टूबर 2020 में जारी निर्देशों के अनुसार अभिभावकों की लिखित अनुमति पर ही बच्चे स्कूल जा सकते थे. पिछले हफ्ते केंद्र सरकार की नई गाइडलाइंस के अनुसार, अब अभिभावकों की लिखित सहमति के बारे में राज्य सरकारों को फैसला करने का अधिकार दे दिया गया है. दिल्ली में डीडीएमए ने जो गाइडलाइंस जारी की, उनके अनुसार छात्रों को बुलाने से पहले स्कूल को अभिभावकों से सहमति लेनी पड़ेगी. इसके अलावा छात्रों को कोरोना गाइडलाइंस के जटिल नियमों का पालन करना होगा.
गाइडलाइंस के अनुसार शिक्षण और गैर शिक्षण कर्मचारियों का टीकाकरण होना चाहिए. सामाजिक दूरी के नियम के पालन के लिए 50 फ़ीसदी छात्रों को बुलाया जाए. स्कूलों में भीड़ से बचने के लिए भी कई तरह के नियम बनाए गए हैं. कंटेनमेंट जोन में रहने वाले छात्रों और शिक्षकों के लिए भी कई प्रतिबंध हैं. छात्र अन्य बच्चों से किताब, कॉपी, लंच बॉक्स आदि साझा नहीं कर सकते. यदि बच्चों या टीचर के घर में कोई पॉजिटिव है तो नियमों के अनुसार वे स्कूल नहीं आ सकते. 14 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए तो अभी वैक्सीन आई ही नहीं, तो क्या तब तक स्कूल पूरी तरह से नहीं खुलेंगे?
प्रशासन की दहशत
हरियाणा के सिरसा में ग्रामीणों ने प्राइमरी और मिडिल स्कूल खुलवा दिया, जिन्हें बंद कराने के लिए अधिकारियों ने जी-जान लगा दी. दादरी में सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन का उल्लंघन करके एक निजी स्कूल में छोटे बच्चों की पढ़ाई शुरू हो गई तो शिक्षा अधिकारी, एसडीएम और पुलिस ने 'आपदा प्रबंधन प्राधिकरण एक्ट' के तहत स्कूल के मैनेजमेंट और प्रिंसिपल के खिलाफ शिकायत दर्ज करा दी. सोशल मीडिया और स्मार्टफोन के इस्तेमाल के लिए जब पैरेंट्स की सहमति नहीं चाहिए होती तो फिर स्कूल आने के लिए उनकी लिखित सहमति क्यों होनी चाहिए?
अगर सरकारी दफ्तरों में पूरी उपस्थिति की परमिशन हो गई है, तो फिर स्कूलों में 50 फ़ीसदी करने का क्या तुक है? जब चुनावी रैलियों में कोरोना नियमों का पालन नहीं हो रहा तो फिर बच्चों के नाज़ुक कन्धों पर इन गाइडलाइंस का भारी बोझ रखने का क्या तुक है? कोरोना गाइडलाइंस के नाम पर सख्ती बरतने की वजह से अमेरिका में बाइडेन और यूरोप के कई नेताओं की अप्रूवल रेटिंग घटने से वे कोविड लूजर्स बनकर रह गए हैं. इसलिए राजनीतिक लिहाज़ से भी देखें तो भारत में कोरोना के नाम पर सख्ती का दौर खत्म होने से राज्य सरकारों की लोकप्रियता में इजाफा होगा.
स्कूलों को महामारी से लड़ने की पाठशाला बनाया जाए
संविधान के तहत शिक्षा बच्चों का मौलिक अधिकार है. गरीब और वंचित लोगों के पास स्मार्ट फ़ोन और इंटरनेट नहीं होने से ऑनलाइन का विकल्प उनके लिए बेकार है. जबकि संपन्न घरों के बच्चे ऑनलाइन शिक्षा की वजह से नए तरह के संकट का शिकार हो रहे हैं. दो साल से स्कूली शिक्षा से वंचित युवा अनेक तरह के मानसिक और शैक्षणिक संकट से जूझ रहे हैं. बजट में डिजिटल यूनिवर्सिटी के लिए प्रावधान है. लेकिन भारत जैसे देश में ऑनलाइन शिक्षा स्कूली शिक्षा का विकल्प नहीं बन सकती.
जटिल गाइडलाइंस और प्रतिबंधों की वजह से जब तक ऑनलाइन और ऑफलाइन का हाइब्रिड सिस्टम रहेगा, तब तक शिक्षा की गाड़ी पटरी पर नहीं आएगी. स्कूलों को महामारी से लड़ने की पाठशाला बनाकर, बच्चों को बताने की जरूरत है कि 'डर के आगे जीत' है. बच्चे मजबूत हुए तो आने वाले वैरिएंट और महामारियों से समाज और सरकार बेहतर तरीके से निपट सकेंगे.
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