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मैं माननीय मित्र फिरोज गांधी को बधाई देता हूं कि उन्होंने प्रशासन की त्रुटियों को बिना गलती के पकड़ने की अपनी ख्याति को बनाए रखा है
टी टी कृष्णमाचारी
मैं माननीय मित्र फिरोज गांधी को बधाई देता हूं कि उन्होंने प्रशासन की त्रुटियों को बिना गलती के पकड़ने की अपनी ख्याति को बनाए रखा है। मैंने उन्हें काफी ध्यानपूर्वक सुना है और मैं उनके भाषण में संगीत नाटक के तत्वों की प्रशंसा भी करता हूं।
जैसा उन्होंने बताया, तथ्य यह है कि जीवन बीमा निगम ने 24 या 25 जून को बहुत से अंश खरीदे थे। इस सभा में की गई सारी आलोचना और प्रश्नों में एक गलती की गई है और वह यह कि यह कहा गया है कि एक विशेष व्यक्ति को यह सारी राशि दी गई है और यह कंपनी उसकी थी और उसकी सहायता के लिए अथवा उसे वित्तीय कठिनाई से निकालने के लिए राशि दी गई है। ...परंतु वस्तुत: तथ्य यह है कि इन कंपनियों के स्थापित होने में कुछ समय लगा था और जैसा फिरोज गांधी ने बताया है, उनमें से कुछ का कारोबार अच्छा रहा है। मुझे स्वयं इन कंपनियों का अधिक ज्ञान नहीं है...।
संयोग की बात है कि फिरोज गांधी ने प्रशासन की अपेक्षा अथवा एक बुरे प्रयोजन के विनियोजन से भी अधिक आरोप लगाए हैं। ...मैं इस सभा के समक्ष उत्तरदायी हूं और केवल कुछ शब्दों से मैं इससे विमुक्त नहीं हो सकता। यहां उठाई गई बातों का उत्तर देने का प्रयत्न करूंगा। मैं अपने उत्तरदायित्व में नहीं कतराता और इसे कुछ पदाधिकारियों के कंधे पर नहीं फेंकना चाहता। सच बात यह है कि जीवन बीमा निगम का संचालन वित्त मंत्रालय नहीं करता। हम तो केवल उस समय हस्तक्षेप करते हैं, जब कर्मचारियों का विवाद हो, कोई गड़बड़ हो या जब कोई प्रश्न पूछा जाए। एक-दो बार मैंने अपने अधिकार का अतिक्रमण करते हुए वहां आकर उन्हें निपटारे के कुछ साधनों के सुझाव अवश्य दिए थे, जिनको निगम को स्वयं करना था। अत: निगम की व्यवस्था ऐसी है कि वित्त मंत्री के लिए उसके नित्यप्रति के कार्यों की देख-रेख करना न तो उपयुक्त ही है और न ही संभव, वह तो केवल उसके संचालन का ध्यान रख सकता है।
... मैं सभा को यह भी बता देना चाहता हूं कि पूंजी विनियोजन का नियंत्रण जीवन बीमा निगम के अधीन ही रखा गया है, क्योंकि मेरा विचार था कि निगम के हितों को मुख्य स्थान देना चाहिए। ...एक ऐसा निकाय बनाने हेतु एक विधेयक सभा के पास विचाराधीन है, जो जीवन बीमा निगम के पूरे विनियोजन की देखरेख करेगा।...मेरी यह इच्छा नहीं कि पॉलीसी धारकों को हानि हो और उन्हें केवल सरकारी उपक्रमों में पूंजी लगाने के लिए कहा जाए, जहां से संभवत: उन्हें पर्याप्त लाभ न हो।
...वास्तव में, तथ्य यह है कि जहां तक शेयरों का संबंध है, यदि मान लिया जाए कि उनके द्वारा दिए गए आंकड़े सही हैं, तो यह कहा जा सकता है कि जब कुछ शेयर कुछ कम कोट कर दिए गए थे, तो कुछ अधिक किए गए थे। मैं यह जानकारी 24 तथा 25 के बारे में दे रहा हूं। इस प्रकार यदि हम उस दिन को देखें, जिस दिन शेयर खरीदे गए थे, तो कह सकते हैं कि हमें थोड़ा लाभ हुआ। अगले दिन घाटा होना प्रारंभ हो गया।
जांच का कोई प्रश्न ही नहीं है। ...चूंकि सभा में आरोप लगाए जा रहे हैं और संदेह की गुंजाइश है, इन सभी पदाधिकारियों को पहले साफ करना है, उनसे पहले पूछना है। हो सकता है, उन्होंने गलती की हो। उन्होंने कितनी गलती की है, इसका अनुमान लगाना है।
मैं सभा को बतलाऊंगा कि हमें क्या करना चाहिए। मैं यह नहीं कहना चाहता कि जांच कब की जाए? जांच की जाएगी। सभा को सब कुछ बतलाया जाएगा, किंतु कब किया जाएगा, इस बात का निर्णय सरकार को स्वत: करना होगा। जांच अवश्य ही की जाएगी, किंतु किस प्रकार से की जाएगी, इसका निर्णय भी सरकार ही करेगी, क्योंकि कतिपय बातों का संरक्षण करना है। इस कारण इसका समय निर्धारित करना बड़े ही महत्व की बात है। मैं यह भी नहीं कह सकता कि शेयरों को बेचा जाए। यदि हम कठिनाई में हैं, तब भी ऐसी बातें करने में क्या लाभ है? जब तक शेयर ठोस न हों, वह इन्हें नहीं खरीदेंगे।... निस्संदेह, जांच भी की जाएगी ।
जांच करने में संसद सदस्यों को प्रतिनिधित्व मिलेगा या नहीं, मैं इस संबंध में पहले से कोई बात नहीं कहना चाहता। वास्तव में, यह निर्णय सरकार को करना है। सब बातों पर विचार किया जाएगा। दबाव से हां करने का कोई प्रश्न नहीं है। ...मैं वायदा नहीं करता, किंतु इतनी बात अवश्य कहता हूं कि जांच अवश्य होगी।
(लोकसभा में दिए गए भाषण का अंश)
Hindustan Opinion Column

Rani Sahu
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