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- अपनी सामर्थ्य को...
प्रदीप सिंह: जिस देश की आजादी की लड़ाई राष्ट्रवाद के मुद्दे पर लड़ी गई, उसी देश में आज राष्ट्रवाद को गाली बनाने की कोशिश हो रही है। जी हां, मैं अपने ही देश की बात कर रहा हूं। ऐसा करने वाले बहुत जल्दी में हैं। वैसे तो दुनिया भर में जहां भी राष्ट्रवादी ताकतें मजबूत हो रही हैं, उसे एक वर्ग खतरे के रूप में देख रहा है, पर अपने देश में मामला थोड़ा अलग है। यहां इस मुद्दे पर कोई वैचारिक या तार्किक बहस नहीं हो रही है। बस, फैसला सुना दिया गया है, क्योंकि यहां विरोध का आधार सिद्धांत नहीं व्यक्ति है। इस लड़ाई में सबसे आगे वही पार्टी खड़ी है, जिसने आजादी की लड़ाई का नेतृत्व किया था। एक व्यक्ति के खिलाफ तर्कहीन घृणा के बूते अभियान चलाया जा रहा है। जैसे पारस पत्थर के स्पर्श से लोहे के भी सोना हो जाने की बात कही जाती है, वैसे ही ऐसे लोगों का मानना है कि नरेंद्र मोदी के छूने से सोना भी कोयला हो जाता है। इनकी समस्या यह है कि प्रधानमंत्री इस सबसे बेपरवाह हाथी की तरह चले जा रहे हैं। हाथी की यह विशेषता होती है कि वह सामने आदर भाव से खड़े लोगों के लिए रुकता नहीं और पीछे से भौंकने वालों को पलटकर कभी देखता नहीं, पर ऐसा लगता है कि पानी सिर के ऊपर जा रहा है। इतनी बड़ी महामारी के समय सरकार की कमियों, असफलताओं, भूलों के प्रति सवाल उठें तो समझ में आता है, पर परपीड़ा से आनंदित होने वालों को आप किसी तर्क से समझा नहीं सकते। आप तर्क दीजिए, वे भावना पर आ जाएंगे। आप भावना की बात कीजिए, वे तर्क के पीछे छिप जाएंगे। तथ्य और सत्य से इन्हेंं परहेज है। इस वर्ग की सारी बौद्धिक ताकत का दर्द यह है कि भइया यह टूटता क्यों नहीं है?