- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- सुधार न रोके सरकार
x
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया है। साल भर से चले आ रहे तनाव को खत्म करने के लिहाज से इस कदम का स्वागत किया जा सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया है। साल भर से चले आ रहे तनाव को खत्म करने के लिहाज से इस कदम का स्वागत किया जा सकता है। सरकार 29 नवंबर से शुरू होने जा रहे शीतकालीन सत्र में अब इन कानूनों को वापस लेने के लिए विधेयक लाएगी। कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर आंदोलन कर रही संस्था संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री की घोषणा का स्वागत करते हुए कहा कि उनका आंदोलन सिर्फ तीन 'काले कृषि कानूनों' के खिलाफ नहीं था।
किसान सभी कृषि उत्पादों के लिए आकर्षक कीमतों की गारंटी चाहते हैं। उसने सरकार से इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल भी वापस लेने की मांग की है। वैसे, प्रधानमंत्री के ऐलान से पहले इस साल 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक तीनों कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगा दी थी। उसने एक एक्सपर्ट कमिटी भी बनाई थी, जिसे इन कानूनों पर किसानों और सरकार की राय लेनी थी। इस कमिटी ने 19 मार्च को अदालत को सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी, लेकिन अदालत की ओर से आगे कोई कार्यवाही नहीं हुई। दूसरी तरफ, सरकार ने भी इन कानूनों पर लगी अस्थायी रोक को हटवाने की कोशिश नहीं की।
बीजेपी का सबकुछ लगा था इस बिल पर
बीजेपी का इन कानूनों को लेकर राजनीतिक रूप से भी बहुत कुछ दांव पर लगा था। उसकी अगुआई वाली सरकार साल भर तक इन कानूनों को किसानों के हित में बताती रही। इसके लिए अलग-अलग तर्क देती रही। इसलिए अब इन्हें वापस लिए जाने के बाद आलोचकों को यह कहने का मौका मिला है कि उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और गोवा में होने जा रहे चुनावों को देखते हुए उसने यह फैसला किया है। किसान आंदोलन में विशेष रूप से पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के किसानों की बड़ी भागीदारी रही है। नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में विपक्षी दलों के भारी विरोध को देखते हुए भूमि सुधार पर अध्यादेश वापस लिया था। तब एक सवाल यह भी उठा था कि इससे आर्थिक सुधारों की प्रगति पर बुरा असर पड़ेगा।
सरकार ने घुटने टेके
यह सवाल इस बार भी उठ रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि कृषि क्षेत्र में सुधार जरूरी हैं। इसीलिए सरकार कृषि कानून लेकर आई थी। अब इन्हें वापस लेने से यह संदेश जा सकता है कि केंद्र ने आर्थिक बदलाव का रास्ता छोड़ दिया है। वह भी पिछली सरकारों की तरह राजनीतिक दबाव के आगे घुटने टेकने लगी है। यह संदेश देश की इकॉनमी के लिए बुरा होगा। इसलिए सरकार को इस धारणा को खत्म करना चाहिए। इसके लिए उसे दूसरे मोर्चों पर सुधार की गाड़ी आगे बढ़ानी होगी। कृषि कानूनों का अनुभव यह भी बताता है कि विभिन्न पक्षों से संवाद और सहमति हासिल करना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। यहां सरकार से चूक हुई। इस सबक को अमल में लाया जाए तो बहुत मुमकिन है कि आगे चलकर बेहतर तरीके से बदलाव लाए जा सकेंगे।
Next Story