सम्पादकीय

पाक क्रिकेट डिप्लोमेसी पर विचार करे सरकार

Rani Sahu
20 Sep 2023 7:05 PM GMT
पाक क्रिकेट डिप्लोमेसी पर विचार करे सरकार
x
‘ब्लीड इंडिया विद थाऊजैंड कट्स’, यानी हजार कट लगाकर भारत का खून करो। भारत के विरुद्ध यह पाकिस्तान का एक सैन्य सिद्धांत है। पाकिस्तान के साबिक वजीरे आजम जुल्फिकार अली भुट्टो इसके जनक थे। भारतीय सेना द्वारा चार युद्धों में शर्मनाक शिकस्त का दंश झेल चुकी पाक सेना में इतनी सलाहियत नहीं है कि प्रत्यक्ष युद्ध में भारत का सामना कर सके। इसीलिए पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई ब्लीड इंडिया जैसी साजिश का सहारा लेकर ही भारत को दहलाने की कोशिश करती है। 13 सितंबर 2023 को पूरे देश का माहौल गमगीन हो गया जब कश्मीर घाटी में आतंकियों से मुठभेड़ में सेना के दो जवान तथा दो अधिकारी बलिदान हो गए। वजूद में आते ही पाक सेना ने कश्मीर पर हमला करके अपना असल चेहरा दिखा दिया था। सन् 1962 के चीन युद्ध से भारत अभी उबरा भी नहीं था कि पाक सेना ने सन् 1965 में कश्मीर में आपरेशन ‘जिब्राल्टर’ को अंजाम दे दिया था। पाक सेना द्वारा विशेष तरीके से प्रशिक्षित कमांडो दस्ता ‘नुसरत ग्रुप’ उस जिब्राल्टर मिशन का अहम हिस्सा था जिसका कोडनेम जिब्राल्टर साजिश के मुख्य प्रस्तावक जुल्फिकार अली भुट्टो की बेगम ‘नुसरत भुट्टो’ के नाम पर रखा था। जाहिर है जिब्राल्टर षड्यंत्र की तम्हीद तैयार करने में नुसरत भुट्टो ने भी अहम किरदार अदा किया था।
सन् 1965 की जंग के दौरान हिमाचल के शूरवीर कर्नल ‘मदन लाल चड्डा’ कश्मीर में ‘हाई अल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल’ में बतौर कमांडेंट तैनात थे। उस वक्त पाक सेना श्रीनगर से लेह राजमार्ग पर कब्जा करने के लिए मोर्चा संभाल रही थी। तब कर्नल चड्डा ने स्थानीय लोगों व अपने कुछ सैनिकों का नेतृत्व करके पाक सेना के नापाक मंसूबों पर पानी फेर दिया था। आक्रामक सैन्य कार्रवाई में कर्नल चड्डा 31 अगस्त 1965 को युद्धभूमि में बलिदान हो गए थे। अदम्य साहस के लिए कर्नल मदन लाल चड्डा को सेना ने ‘वीर चक्र’ (मरणोपंरात) से अलंकृत किया था। सन् 1965 में पाक हुक्मरान कश्मीर की सरजमीं पर पाक परचम लहराने का ख्वाब देख रहे थे। लेकिन जब भारतीय सेना अंतरराष्ट्रीय सरहद को पार करके पाकिस्तान के बर्की, चविंडा व सियालकोट जैसे शहरों पर तिरंगा फहरा कर लाहौर को फतह करने के नजदीक पहुंच गई तो उस वक्त 22 सितंबर 1965 के दिन पाक वजीरे खारजा जुल्फिकार अली भुट्टो ‘यूएनओ’ के मंच पर तशरीफ ले गए और जंगबंदी की गुहार लगाई। भुट्टो की पलकों से छलकते अश्कों की उस जज्बाती अपील पर ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ ने भारत से युद्ध रोकने की गुजारिश की थी। नतीजतन 23 सितंबर 1965 को जंगबंदी का ऐलान हुआ। मगर सलामती काउंसिल के उसी इजलास में भुट्टो ने भारत के खिलाफ एक हजार साल तक जंग जारी रखने का ऐलान भी कर दिया था। भुट्टो ने ही कहा था कि पाकिस्तान घास की रोटी खाएगा, मगर एटम बम जरूर बनाएगा।
1965 की जंग की शिकस्त से अफसुर्दा होकर भुट्टो ने पाक वजीरे खारजा के पद से इस्तीफा दे दिया था। सन् 1971 में पाकिस्तान की तारीख को शर्मिंदा करने वाली सुपुर्दे ढाका की शिकस्त से जलील होकर बतौर वजीरे आजम जुल्फिकार अली भुट्टो ने अपने सिपाहसालार जनरल याहिया खान को सेवानिवृत्त कर दिया था। भारत के खिलाफ 1965 व 1971 की जंग के अहम किरदार रहे भुट्टो की पाक जरनैलों से अदावत कूचा-ए-कातिल साबित हुई। जनरल जिया उल हक ने तख्तापलट को अंजाम देकर चार अप्रैल 1979 के दिन भुट्टो को तख्ता-ए-दार पर चढ़ा दिया, मगर भारत के विरुद्ध जुल्फिकार अली भुट्टो की हिकारत भरी उस जिहादी तहरीर पर पाक हुक्मरान आज भी कायम हैं। एक दिवसीय क्रिकेट विश्व कप 2023 की मेजबानी चार अक्तूबर से भारत कर रहा है। भारतीय क्रिकेट टीम एशिया कप खेलने पाकिस्तान नहीं गई, लेकिन पाक विदेश मंत्रालय अपनी क्रिकेट टीम को भारत भेजने की पुष्टि कर चुका है। बेशक पाकिस्तान के साथ बिगड़े रिश्तों की बहाली में क्रिकेट डिप्लोमेसी की अहम भूमिका रही है। पाक जम्हूरियत को फौजी बूटों से रौंदने वाले सैन्य हुक्मरानों की भी क्रिकेट से गहरी उल्फत रही है। जनरल जिया उल हक भारत-पाक क्रिकेट मैच देखने के लिए सन् 1987 में जयपुर क्रिकेट स्टेडियम में तशरीफ ले आए थे। कारगिल साजिश के जनक परवेज मुशर्रफ ने भी अपनी सरवराही में भारतीय क्रिकेट टीम का सन् 2004 में पाकिस्तान का दौरा करवाया था। पाकिस्तान को टैस्ट क्रिकेट का दर्जा सन् 1952 में भारत की सिफारिश पर ही मिला था। उसी वर्ष पाक टीम ने पहली मर्तबा भारत का दौरा किया था। भारत व पाक के दरम्यान मैच हमेशा हाई वोल्टेज, रोमांचक व तनावपूर्ण होते हैं। आर्थिक मोर्चे पर बदहाल हो चुके पाकिस्तान को अपने क्रिकेट का वजूद बचाने के लिए भारत की सख्त जरूरत है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आतंक के मरकज पाकिस्तान के साथ खेल संबंध जारी रखने से क्या कारगिल के प्रथम बलिदानी कैप्टन सौरभ कालिया के जख्मों पर मरहम लगेगा?
सौरभ कालिया व उसके पांच साथियों के अभिभावकों को न्याय मिलेगा? 1971 की जंग के 54 भारतीय युद्धबंदियों पर पाकिस्तान से कोई उम्मीद की जा सकती है, जिनमें धर्मशाला के मेजर सुभाष गुलेरी भी शामिल थे। पाकिस्तान के साथ चार युद्धों में देश के हजारों सैनिक शहीद हो चुके हैं। कश्मीर घाटी में जारी पाक प्रायोजित छद्म युद्ध में आए दिन सैनिक बलिदान हो रहे हैं। स्मरण रहे मेजर सोमनाथ शर्मा, कैप्टन बिक्रम बत्रा ‘परमवीर चक्र’ व कैप्टन चंद्र नारायण सिंह ‘महावीर चक्र’ तथा कैप्टन अमोल कालिया, हवलदार उधम सिंह व सुखराम ठाकुर ‘वीर चक्र’ जैसे हिमाचल के सैकड़ों शूरवीरों ने पाकिस्तान के खिलाफ युद्धभूमि में वतन-ए-अजीज के लिए शहादत जैसे अजीम रुतबे को गले लगा लिया था। लिहाजा आतंक की तर्जुमानी करने वाले मुल्क पाकिस्तान की टीम की मेहमाननवाजी करना राष्ट्र के स्वाभिमान के लिए फिदा-ए-वतन हो चुके सैनिकों का अपमान होगा। देश के हुक्मरानों को सैनिकों के परिवारों की भावनाओं का सम्मान करना होगा, जो अपने सीने में जज्बातों का समंदर दफन करके भी खामोश हैं। पाकिस्तान के साथ क्रिकेट डिप्लोमेसी पर गंभीरता से विचार होना चाहिए। क्रिकेट खेल राष्ट्र से बड़ा नहीं है।
प्रताप सिंह पटियाल
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
Next Story