सम्पादकीय

महंगाई रोकने के सरकारी उपाय

Subhi
28 May 2022 3:28 AM GMT
महंगाई रोकने के सरकारी उपाय
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पिछले कुछ महीनों से देश में बढ़ती महंगाई के मद्देनजर केन्द्र सरकार जो चहुंमुखी कदम उठा रही है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि शीघ्र ही खुले बाजारों में इसका असर दिखाई देगा

आदित्य नारायण चोपड़ा: पिछले कुछ महीनों से देश में बढ़ती महंगाई के मद्देनजर केन्द्र सरकार जो चहुंमुखी कदम उठा रही है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि शीघ्र ही खुले बाजारों में इसका असर दिखाई देगा और खाद्य वस्तुओं समेत अन्य उपभोक्ता सामग्री के दामों में ठंडक आयेगी। मगर यह सवाल पैदा होना स्वाभाविक है कि इस तरफ ध्यान देने में सरकार को इतना समय क्यों लगा? महंगाई निश्चित रूप से अन्तर्राष्ट्रीय समस्या हो चुकी है और रूस- यूक्रेन युद्ध छिड़ने के बाद इसने विकराल रूप भी धारण किया। इसका प्रमाण यह है कि अमेरिका जैसे देश में ही यह रिकार्ड स्तर पर पहुंच चुकी है जिसकी वजह से वहां की जनता में भी बेचैनी है परन्तु भारत के सन्दर्भ में यह ध्यान रखना होगा कि इसकी अर्थव्यवस्था के मूल आधारभूत मानक अपेक्षाकृत सारी दुनिया में मजबूत माने जा रहे हैं जिसकी वजह से यहां विदेशी निवेश की रफ्तार में मामूली कमी ही दर्ज हुई है परन्तु भारत में खाद्य वस्तुओं के दामों में पिछले दो महीने के दौरान जो तेजी आयी है वह स्वाभाविक रूप से चिन्ता का विषय है क्योंकि कोरोना काल के दो वर्षों के भीतर आम आदमी की आमदनी में खासी गिरावट दर्ज हुई है और इसकी भरपाई अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर आठ प्रतिशत तक पहुंच जाने के बावजूद नहीं हुई है अतः सरकार ने खाद्य मोर्चे पर कीमतों को नियन्त्रित करने के लिए जो ताजा कदम उठाये हैं उनका आर्थिक विश्लेषण किये जाने की भी जरूरत है। स्वाभाविक तौर पर विपक्षी दलों को इस मोर्चे पर सरकार की आलोचना करने का पूरा अधिकार है और वे कर भी रहे हैं किन्तु उन्हें यह भी सोचना होगा कि महंगाई और बेरोजगारी ऐसे शाश्वत विषय हैं जिन्हें लेकर आजादी के बाद से विपक्ष में बैठे राजनीतिक दल हर सरकार की आलोचना करते आ रहे हैं। महंगाई का सम्बन्ध वैसे तो 'मांग व आपूर्ति' से जुड़ा होता है परन्तु कुछ ऐसे अन्य आर्थिक अवयव भी होते हैं जो इस पर सीधा असर डालते हैं जैसे पैट्रोल व डीजल के घरेलू दाम। विगत अक्तूबर महीने से लेकर अब तक केन्द्र सरकार दो बार इन दोनों उत्पादों पर उत्पाद शुल्क में कमी कर चुकी है और कुछ राज्य सरकारों ने भी इस पर लगने वाले बिक्री कर या वैट को भी कम किया है इसके बावजूद पैट्रोल के दाम 100 रुपए प्रति लीटर के आसपास ही बने हुए हैं। दूसरी डालर की कीमत में भी इजाफा हुआ है यह 77 रुपए प्रति डालर के पास पहुंच चुका है। तीसरी तरफ अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में गरमाहट कम होने का नाम नहीं ले रही है। इसे देखते हुए केन्द्र सरकार द्वारा उत्पाद शुल्क में कमी करने का फैसला स्वागत योग्य कदम कहा जायेगा जिसका असर विभिन्न आवश्यक वस्तुओं की मालभाड़े की दरों में कमी लाने वाला होना चाहिए। लोकतन्त्र में सरकार कोई धर्मादा संस्था भी नहीं होती है क्योंकि वह लोगों से ही राजस्व वसूल करके वापस लोगों को ही देती है। राजस्व या शुल्क वसूलने में उसे इस तरह न्यायसंगत रहना पड़ता है कि समाज के गरीब वर्ग के लोगों पर उसकी शुल्क नीति का कम से कम प्रभाव पड़े अर्थात गरीब वर्ग के लोगों की दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुओं के दामों में वृद्धि न होने पाये। इसके साथ ही खुली व बाजार मूलक अर्थव्यवस्था में घरेलू उद्योग से लेकर विभिन्न वाणिज्यिक संस्थानों के हितों का संरक्षण भी उसे इसी नीति के तहत करना होता है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को दुरुस्त रखने के लिए किसानों से लेकर मजदूरों के हितों का संरक्षण भी करना होता है। यह कार्य उसे जनता की क्रयशक्ति के अनुपात को ध्यान में रख कर करना होता है। जब यह अनुपात बिगड़ जाता है तो महंगाई बढ़ने लगती है। इसके साथ ही सरकार को उत्पादन मोर्चे पर भी कान खड़े रखने होते हैं जिससे बाजार में किसी भी वस्तु की मांग को पूरा किया जा सके। इस सन्दर्भ में मोदी सरकार ने हाल ही में जो कदम उठाये हैं उहें पूर्णतः घरेलू अर्थव्यवस्था मूलक कहा जायेगा। संपादकीय :बड़े साहब की 'डॉग वॉक'यासीन के गुनाहों का हिसाबगुदड़ी के 'लाल' मोदीकर्नाटक में भी 'ज्ञानवापी'क्वाड में मोदी का विजय मन्त्रमदरसों के अस्तित्व पर सवालभारत में किसी भी जरूरी खाद्य सामग्री की आपूर्ति में कमी न हो सके इसके लिए सरकार ने सबसे पहले गेहूं के निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाने की घोषणा की। इसके बाद उसने चीनी के निर्यात पर शर्तें लगाई और घोषणा की आगामी गन्ना सीजन के शुरू होने पर अक्तूबर 2021 से सितम्बर 2022 तक केवल 100 लाख मीट्रिक टन ही चीनी निर्यात की जा सकेगी। भारत विश्व में चीनी के तीन प्रमुख देशों में से एक है। ये कदम इसलिए उठाये गये जिससे बाजारों में गेहूं, चीनी की आपूर्ति की बहुतायत लगातार बनी रहे। दूसरी तरफ खाद्य तेलों के दामों में गर्मी देखते हुए सरकार ने फैसला किया कि अगले दो वर्षों के दौरान भारत का कोई भी व्यापारी या वाणिज्यिक संस्थान 20 लाख टन सोयाबीन तेल व सूरजमुखी तेल का आयात बिना कोई आयात या तट कर शुल्क दिये कर सकेगा। खाद्य तेलों के बारे में हम जानते हैं कि इसकी मांग को पूरा करने के लिए 56 प्रतिशत आयात पर निर्भर रहना पड़ता है। पिछले दिनों पाम आयल के आयात में कमी आने और यूक्रेन व रूस के सूरजमुखी तेल के प्रमुख निर्यातक देश होने की वजह से खाद्य तेलों के आयात में कमी आयी जिसकी वजह से इनके भाव बढे़। हालांकि पिछले वर्ष ही इनके दामों में काफी उछाला आया था मगर सरकार ने उसे आयात शुल्क में कमी करके साधना चाहा जिसमें वह सफल नहीं हो सकी अब शुल्क मुक्त आयात की इजाजत देने से गुणात्मक अंतर की अपेक्षा की जा सकती है। अब सरकार भारत के भंडार में जमा चावल की मिकदार की भी समीक्षा कर रही है और इसके निर्यात पर भी प्रतिबन्ध लगा सकती है। दूसरी तरफ इसके उलट सरकार ने स्टील के निर्यात पर शुल्क की दर बढ़ा दी है जिससे घरेलू बाजार में इसके दामों में ठंड़क आये। प्रसन्नता की बात यह है कि कृषि मोर्चे पर भारत के उत्पादन में लगातार वृद्धि ही हो रही है जिसकी वजह से आम जनता निश्चिन्त रह सकती है परन्तु अन्य उपभोक्ता वस्तुओं के दामों की समीक्षा भी की जानी चाहिए और वस्तुओं पर लिखे जाने वाले अधिकतम मूल्य (एमआरपी) को समाप्त किया जाना चाहिए क्योंकि महंगाई बढ़ने का यह भी प्रमुख औजार है।

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