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- संकट में सरकार
Written by जनसत्ता; महाराष्ट्र में शिवसेना की सरकार में बगावत का बिगुल बज गया। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ अपनी खुद की सरकार तो बचा नही पाए थे, अब वे भिन्न विचारों वाले तीन दलों (शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी) की भूचाली सरकार के संकट मोचक बनकर महाराष्ट्र सरकार को बचाने पहुंच गए हैं और कह रहे हैं कि सरकार को कोई खतरा नहीं है। दूसरी ओर सांसद संजय राउत विधानसभा भंग करने की बात कर रहे हैं। लगता है, महाराष्ट्र सरकार पर राजनीतिक और प्रशासनिक दोनों संकट आन पड़े हैं।
देश में अग्निवीरों के लिए अग्निपथ योजना की आग ठंडी पड़ी, तो अब महाराष्ट्र सरकार की अग्निपरीक्षा आरंम्भ हो गई। कोई भाजपा पर करोड़ों का लेन-देन कर दलबदल का आरोप लगा रहा है, तो कोई विधायकों को अगवा करने का, और कोई लोकतंत्र को खतरे में बता रहा है। इससे साबित होता है कि नेता और अभिनेता में बहुत ज्यादा अंतर नहीं होता। अभिनेता परदे पर नाटकीय अभिनय करने में माहिर होते हैं, तो नेता सियासत में बहरुपिया कुशलता में अपने आप को पीछे नहीं होने देते।
महाराष्ट्र में ढाई साल पहले गठित महाअघाड़ी सरकार की नैया हिचकोले खाती नजर आ रही है। सरकार में शिवसेना के मजबूत स्तंभ एकनाथ शिंदे ने विद्रोह का बिगुल फूंक दिया है। एकनाथ शिंदे गुट का शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे पर आरोप है कि उन्होंने सत्ता के लिए बालासाहब के सिद्धांतों को दरकिनार कर कांग्रेस से गठबंधन किया तथा हिंदुत्व को भुला दिया है।
कांग्रेस द्वारा शिवाजी महाराज के अपमान और पालघर की घटना तथा अनुच्छेद 370 हटाने पर मौन साधे रखा। एकनाथ शिंदे के आरोपों में सच्चाई नजर आती है, क्योंकि सत्ता प्राप्ति के लिए शिवसेना ने अपने से लगभग दुगनी सीटों वाली अपनी सहयोगी भारतीय जनता पार्टी को धोखा दिया। अब शिवसेना भाजपा पर आरोप लगा रही है कि वह उनके विधायकों को बहका-फुसला कर सरकार गिराना चाहती है। सत्ता की लड़ाई में सभी मयार्दाएं जब स्वयं शिवसेना ने भंग कीं तो अब उसे भाजपा पर आरोप लगाने का नैतिक अधिकार कहां है?
यदि शिवसेना एकनाथ शिंदे के विद्रोह के कारण विभाजित होती है, तो उसे अब तक का सबसे बड़ा आघात झेलना पड़ेगा और उसे अपने अस्तित्व के लिए जूझने पर मजबूर होना पड़ेगा तथा बहुत मुमकिन है कि उसे कांग्रेस का साथ छोड़ कर फिर से बालासाहब द्वारा स्थापित हिंदुत्व के एजेंडे का अनुसरण करना पड़े।