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- सरकारी उदारता का दिन
हिमाचल निर्माण की सफलता में पूर्ण राज्यत्व व हिमाचल दिवस की उगाही भी खूब है। आशा के सारे दरवाजे खोल कर हिमाचल अपने दो शुभ मुहूर्तों पर कुर्बान होता है या सरकारें कर्ज लेकर जनता का कर्ज उतारती हैं। ऐसे में पूर्ण राज्यत्व और हिमाचल दिवस मनाने का मूल्य तय होता है और यह भी कि जिस हिमाचल को बनाने में पहले कई रियासतें एक हुईं या बाद में पंजाब पुनर्गठन से मिलाए गए पहाड़ी क्षेत्रों ने अपना अस्तित्व ढूंढा, उसकी बिसात में हम प्रदेश वासी बहुत कुछ हथियाना चाहते हैं। हमें हर हिमाचल दिवस से कुछ चाहिए, हमें हर पूर्ण राज्यत्व दिवस से कुछ चाहिए। बहरहाल इस बार हिमाचल दिवस पर सरकार की उदारता का जिक्र हर घर में होगा। आज के बाद हिमाचल में महिला यात्रियों को केवल आधा बस किराया ही अदा करना होगा। यानी सीधे तौर पर सरकारी बसें अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा न्योछावर कर देंगी। भले ही आधी आबादी प्रदेश सरकार को साधुवाद देगी या ऐसे फैसले के आगोश में जनता की उम्मीदें बढ़ जाएंगी, लेकिन पहले से घाटे में फंसा हिमाचल प्रदेश परिवहन निगम कैसे उबर पाएगा, यह विषय गौण है। विडंबना यह भी कि प्रदेश में सरकारी बसों की हालत का अंदाजा सडक़ों पर 'ब्रेक डाउन' के मंजर में हो जाता है। खैर हम प्रदेश वासियों को तो अपनी सरकार से यही मोह है कि सरकारी खजाने में उधार का पैसा आए और बिना किसी जवाबदेही के जनता की मुफ्तखोरी में बंट जाए। सरकार ने उदारता के डग भरते हुए बिजली आपूर्ति में मुफ्त का पैमाना और भर दिया है।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली