सम्पादकीय

सरकारी उदारता का दिन

Rani Sahu
15 April 2022 7:16 PM GMT
सरकारी उदारता का दिन
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हिमाचल निर्माण की सफलता में पूर्ण राज्यत्व व हिमाचल दिवस की उगाही भी खूब है

हिमाचल निर्माण की सफलता में पूर्ण राज्यत्व व हिमाचल दिवस की उगाही भी खूब है। आशा के सारे दरवाजे खोल कर हिमाचल अपने दो शुभ मुहूर्तों पर कुर्बान होता है या सरकारें कर्ज लेकर जनता का कर्ज उतारती हैं। ऐसे में पूर्ण राज्यत्व और हिमाचल दिवस मनाने का मूल्य तय होता है और यह भी कि जिस हिमाचल को बनाने में पहले कई रियासतें एक हुईं या बाद में पंजाब पुनर्गठन से मिलाए गए पहाड़ी क्षेत्रों ने अपना अस्तित्व ढूंढा, उसकी बिसात में हम प्रदेश वासी बहुत कुछ हथियाना चाहते हैं। हमें हर हिमाचल दिवस से कुछ चाहिए, हमें हर पूर्ण राज्यत्व दिवस से कुछ चाहिए। बहरहाल इस बार हिमाचल दिवस पर सरकार की उदारता का जिक्र हर घर में होगा। आज के बाद हिमाचल में महिला यात्रियों को केवल आधा बस किराया ही अदा करना होगा। यानी सीधे तौर पर सरकारी बसें अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा न्योछावर कर देंगी। भले ही आधी आबादी प्रदेश सरकार को साधुवाद देगी या ऐसे फैसले के आगोश में जनता की उम्मीदें बढ़ जाएंगी, लेकिन पहले से घाटे में फंसा हिमाचल प्रदेश परिवहन निगम कैसे उबर पाएगा, यह विषय गौण है। विडंबना यह भी कि प्रदेश में सरकारी बसों की हालत का अंदाजा सडक़ों पर 'ब्रेक डाउन' के मंजर में हो जाता है। खैर हम प्रदेश वासियों को तो अपनी सरकार से यही मोह है कि सरकारी खजाने में उधार का पैसा आए और बिना किसी जवाबदेही के जनता की मुफ्तखोरी में बंट जाए। सरकार ने उदारता के डग भरते हुए बिजली आपूर्ति में मुफ्त का पैमाना और भर दिया है।

यानी पहले साठ यूनिट तक मुफ्त की विद्युत आपूर्ति करने का वादा अब 125 यूनिट तक जनता से साथ निभाएगा। इस तरह की उदारता से भले ही 250 करोड़ की चपत लगेगी, लेकिन भारतीय उम्मीदों में अब ऐसे छबील तो लगेंगे ही। हिमाचल को अपना दिवस मनाते हुए यह बोध भी हो रहा है कि आइंदा ग्रामीण क्षेत्रों में जलापूर्ति पूरी तरह मुफ्त होगी। इस तरह तीस करोड़ की आमदनी बट्टे खाते में डालने का भी सियासी सदुपयोग हो सकता है। अब यह जनता को तय करना है कि उसे हिमाचल दिवस को मनाते हुए कितनी मुफ्तखोरी या प्रदेश के संसाधनों में कितना कर्ज और जोडऩा है। यह तय है कि जिस मिट्टी के टुकड़ों को हम पहाड़ी अस्मिता, सांस्कृतिक उजास व आर्थिकी का नया नजरिया सौंपना चाहते थे, वह आज ऐसे फैसले ले सकता है। यानी करीब पैंसठ हजार करोड़ का ऋण उठाकर भी हम न संभलने की कोशिश में भी खुशियां बढ़ा पाते हैं या इस खुशफहमी में आगे बढ़ सकते हैं कि प्रदेश को जनता के लिए 'फील गुड फैक्टर' तैयार करना ही होगा। बहरहाल पहले प्रयास में सरकार ने जनता को नजराना पेश किया है और इससे आशा बांधी जा सकती है कि इस बार राजनीतिक तौर पर दिल्ली व पंजाब की आप सरकारें, हिमाचल को भी मुफ्त की आपूर्ति में फंसाएंगी।
यह दीगर है कि हिमाचल दिवस से सदा सुर्खियां बटोरने वाले कर्मचारी वर्ग को फिलहाल ऐसी कोई पैदावार नहीं मिल रही, फिर भी सरकार के अध्याय आगे चलकर बहुत कुछ लिखने वाले हैं। ऐसा समझा जाता है कि जैसे-जैसे चुनावी हवाएं घर्षण पैदा करती रहेंगी, हिमाचल में सरकारी फैसलों की फेहरिस्त नित नए पुष्प गुच्छ तैयार करती रहेगी। हिमाचल में सरकारों के आदर्श हमेशा से जनता का समर्थन करते हुए अपने कर्मचारियों पर मेहरबान रहे हैं। जनता के लिए हिमाचल दिवस ने इतना समां बांधा है कि राज्य स्तरीय चर्चा में बिजली, पानी के अलावा परिवहन में सुकून मिलेगा। भले ही महिला यात्री अब केवल पचास फीसदी किराया चुकाएंगी, लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि सरकारी बसें अब लेडीज स्पैशल हो जाएंगी। कम से कम निजी बस आपरेटरों को भी अब अपने हाथ जला कर इस प्रकार की छूट देनी ही पड़ेगी ताकि महिला यात्री उनकी सेवाओं को भी बराबरी का दर्जा दे सकें।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली

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