- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- सरकारी अंगुली की

x
महीनों तक निजी बसें और टैक्सियां सड़कों से पूर्णतः हटकर मरघट की तरह खड़ी रहीं
दिव्याहिमाचल.
उदारता की देनदारी में जमीन का कर्ज उतारती जयराम सरकार ने परिवहन क्षेत्र के मर्म पर हाथ नहीं रखा, बल्कि कोविड काल से त्रस्त बस एवं टैक्सी संचालकों को आर्थिक संबल भी दे दिया। एक स्थायी गतिरोध और प्रदेश की सबसे अहम भूमिका में फर्ज निभाते निजी परिवहन की दुखती रग पर हाथ रखते हुए हिमाचल सरकार ने अपने सारे पाप धो दिए। टोकन, यात्री और एसआरटी टैक्स को पूरी तरह माफ करते हुए राज्य के खजाने ने अपने 91.12 करोड़ रुपए अर्पित कर दिए। इससे पूर्व 62 करोड़ के टैक्स पहले ही माफ किए गए हैं और इस तरह पहली अप्रैल 2020 से 30 नवंबर 2021 की अवधि में दौड़ती बसें केवल मुनाफा कमाती हुई हमारे आसपास से गुजरी हैं। इस फैसले के कई सुखद पहलू व एहसास हैं, लेकिन इनका सीधा ताल्लुक आम यात्री से नहीं जुड़ता। परिवहन क्षेत्र की कमाई सीधे यात्रियों की जेब से आती है, लेकिन यहां सारी छूट केवल बस एवं टैक्सी मालिकों को ही मिल रही है। कोविड काल ने कई निजी क्षेत्रों को घाटे में डाला और निराशा में गोते खाते कई संस्थान पूरी तरह से डूब भी गए, लेकिन गाहे-बगाहे परिवहन आर्थिकी को बचाने को सरकार ने हमेशा अहमियत दी। अगर यह कोविड विराम से सताए गए निजी क्षेत्र की मदद है, तो इसकी प्रशंसा होनी चाहिए। महीनों तक निजी बसें और टैक्सियां सड़कों से पूर्णतः हटकर मरघट की तरह खड़ी रहीं। स्कूल बसें तो अपनी आबरू ही हार गईं, लेकिन इस उदासी का आलम तो अन्य कई क्षेत्रों पर भी रहा।
निजी क्षेत्र से प्राप्त रोजगार पर कहर बरपा है, तो कई उद्योग-धंधे पूरी तरह चौपट हो गए। कितने ही दिहाड़ीदार अपने रोजगार का रास्ता भूल गए, तो प्राईवेट कंपनियों से घर भेज दिए गए हजारों युवाओं के करियर पर जो विराम लगा, वह आज तक नहीं थमा। ऐसे में परिवहन क्षेत्र की कर माफी ने कई उजडे़ व्यापारिक रिश्तों में फिर से चमक पैदा की है, लेकिन सरकार की अंगुली तो पूरा निजी क्षेत्र पकड़ना चाहता है। जिस पर्यटक को टैक्सियां ढोती थीं या यात्री को बसें गंतव्य तक पहुंचाती थीं, उसके सहारे पर्यटन या बाजार का रुख भी तो नत्थी था। अगर बस व टैक्सी मालिक उभर रहे हैं, तो इसी तरह के अनुपात में होटल इंडस्ट्री को भी कोरोना काल के ताबूत से बाहर निकालने के लिए रियायतों का वरदान चाहिए। कई होटल व्यवसायियों, टैंट हाउस मालिकों या मिठाई विक्रेताओं ने उजड़ते दारोमदार को सहेजने के लिए महीनों सब्जी बेची है। प्रदेश भर में बैंक ऋणों के नीचे पर्यटन उद्योग बुरी तरह कुचला गया है और एनपीए की चपेट में दर्जनों होटल बिक गए हैं, तो इस क्षेत्र की पगड़ी भी सरकार को संभालनी चाहिए।
ऐसे में यह संदेश भी जा रहा है कि जिस वर्ग या निजी क्षेत्र से जनता का सीधा जुड़ाव है, उसके द्वारा आंखें दिखाने पर तो सरकार नरम रुख दिखा रही है, लेकिन जहां व्यापार का महज गणित है, उस पीड़ा को नजरअंदाज किया जा रहा है। परिवहन क्षेत्र के लिए दो साल की छूट आवश्यक थी, लेकिन इसका लाभ यात्रियों और पर्यटकों को भी मिलना चाहिए था। यात्री तो पहले ही बढ़े हुए किराए की मार के बावजूद बस संचालकों की मदद कर रहा है, जबकि टैक्सी संचालक देश भर से कहीं अधिक महंगी दरों से पर्यटक की मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं। जाहिर है इस छूट के बदले कुछ शर्तें परिवहन क्षेत्र से भी होनी चाहिएं ताकि यात्री और पर्यटक के लिए भी इसका असर हो। पिछले काफी समय से कोविड शर्तों की नरमी ने परिवहन सेक्टर की जेबें पूरी तरह भरी हैं, लेकिन अब सारी छूट हासिल करके यह वर्ग कमाई का केवल खुुद ही हकदार बन रहा है। बस किराए तथा टैक्सी दरों मंे हिमाचल की स्थिति अन्य पड़ोसी राज्यों से कहीं महंगी है। खास तौर पर टैक्सी भाड़े को नियंत्रित करने या इनके संचालन के लिए 'ओला' व 'ऊबर' जैसी परिवहन कंपनियों को प्रोत्साहन देना होगा। उम्मीद है परिवहन क्षेत्र का दर्द समझने के बाद हिमाचल सरकार पर्यटन क्षेत्र को भी जीवनदान देगी। कोविड काल में बैंड-बाजे तथा हिमाचली धाम के रसोइयों के अलावा हर दस्तकार, कलाकार, गायक तथा ग्रामीण हुनर को काफी चोट लगी है, अतः सरकार अलग-अलग वर्ग के लिए वित्तीय प्रोत्साहन दे ताकि सभी के जख्म भरे जा सकें।

Gulabi
Next Story