सम्पादकीय

अब जागना ही होगा

Subhi
11 Aug 2021 4:03 AM GMT
अब जागना ही होगा
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संयुक्त राष्ट्र के इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की ताजा रिपोर्ट ने एक बार फिर यह अहसास कराया है कि दुनिया विनाश की ओर तेजी से बढ़ती जा रही है।

संयुक्त राष्ट्र के इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की ताजा रिपोर्ट ने एक बार फिर यह अहसास कराया है कि दुनिया विनाश की ओर तेजी से बढ़ती जा रही है। दो सौ से अधिक वैज्ञानिकों द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई इस रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि बात सुदूर अतीत की या सदी के आखिर की नहीं है कि मौजूदा पीढ़ी यह सोचकर निश्चिंत रहे कि जो भी होगा, हमारी आंखों के सामने तो नहीं होगा। रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा हालात बने रहे तो दो दशक के अंदर यानी 2040 तक ही पृथ्वी का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका होगा। उसके नतीजों के रूप में हमें जो कुछ भुगतना पड़ेगा, उसका अंदाजा लगाने के लिए रिपोर्ट के विस्तार में जाने या ऐसे ही अन्य अध्ययनों को खंगालने की जरूरत नहीं है। प्रकृति अभी से अलग-अलग घटनाओं-आपदाओं के रूप में हमें प्रत्यक्ष रूप से इसका संकेत देने लगी है। अपने देश में पहाड़ों के टूटने, ग्लैशियर खिसकने और एक ही समय में कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ की स्थितियां बनने की खबरें अब पहले की तरह नहीं चौंकातीं। अन्य देशों में भी मौसम की ऐसी विचित्रताएं सामान्य लगने लगी हैं। अमेरिका और कनाडा के जंगलों की आग दुनिया भर में खबर बनी। दुनिया के सबसे ठंडे इलाकों में गिने जाने वाले साइबेरिया में अत्यधिक गर्मी (सीवियर हीट) पड़ी है और जंगल में आग लगने की घटनाएं भी हुई हैं।

आईपीसीसी की रिपोर्ट यह बात भी साफ कर देती है कि इन सबके लिए कुदरत नहीं बल्कि इंसानी गतिविधियां ही मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। रिपोर्ट में पाया गया है कि ग्लोबल वॉर्मिंग में ज्वालामुखी विस्फोट या सूरज की गर्मी जैसे प्राकृतिक कारकों की भूमिका लगभग शून्य रही है। बहरहाल, इस रिपोर्ट की खास बात यह भी है कि यह पर्यावरण विशेषज्ञों की तैयार की हुई कोई सामान्य रिपोर्ट नहीं बल्कि संयुक्त राष्ट्र के जरिए दुनिया के 195 देशों के प्रतिनिधियों द्वारा समर्थित दस्तावेज है। यानी इसके पीछे एक तरह की वैश्विक सहमति है। और यह ऐसे समय सामने आई है जब ग्लासगो में होने वाले यूएन क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस (कॉप 26) को तीन महीने से भी कम समय रह गया है। वह मौका होगा इस वैश्विक सहमति को ठोस निष्कर्षों तक ले जाकर नीतियों और फैसलों का रूप देने का। वह पिछली सहमतियों पर अमल का लेखा-जोखा लेने का भी मौका होगा। यह देखना होगा कि इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाने में कौन सी बाधाएं हैं और उन्हें दूर करना होगा। हमें हर हाल में धरती को बचाना होगा। इसके साथ,
जलवायु परिवर्तन के बारे में सबसे बड़ा सच यह भी है कि ग्रीन हाउस गैसों के इमिशन में चीन और अमेरिका का आधा योगदान है। इसलिए उन्हें खासतौर पर इसमें कमी लाने की पहल करनी होगी। इसके साथ पूरे वैश्विक समुदाय को इस अभियान में शामिल होना होगा क्योंकि जलवायु परिवर्तन का असर पूरी धरती पर पड़ रहा है।


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