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स्वर कोकिला लता मंगेशकर के निधन पर देश और उसके बाहर उमड़ा भावनाओं का ज्वार बताता है
स्वर कोकिला लता मंगेशकर के निधन पर देश और उसके बाहर उमड़ा भावनाओं का ज्वार बताता है कि लोग उनसे कितना प्यार करते थे, और उनके प्रति कितना गहरा सम्मान रखते थे। वह सही मायने में इस उप-महाद्वीप की सबसे लोकप्रिय गायिका थीं। पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल आदि देशों के शासनाध्यक्षों व सरकारों के शोक संदेश बताते हैं कि उनकी लोकप्रियता ने कितनी दूरी तय की थी। लता जी का जीवन लंबा ही नहीं, बेहद सार्थक भी रहा, और अब जब वह इस नश्वर दुनिया से कूच कर गई हैं, तब उनके गीत लोगों को यह आश्वस्ति देते हैं कि अपनी सुरीली आवाज में वह हमेशा उनके साथ रहेंगी। पिछले महीने कोविड संक्रमण की चपेट में आने के बाद से ही वह बीमार चल रही थीं और रविवार सुबह उन्होंने आखिरी सांस ली।
लता मंगेशकर का जीवन न सिर्फ संगीत की दुनिया के लोगों के लिए, बल्कि हर उस संघर्षशील व्यक्ति के लिए प्रेरक है, जो अपनी सलाहियत और परिश्रम से देश-समाज में ऊंचा मुकाम पाने की हसरत रखता है। शुरुआती जिंदगी में लता जी को काफी संघर्ष करना पड़ा था। छोटी उम्र में ही पिता की मौत हो गई थी और उसके बाद घर की सबसे बड़ी संतान की जिम्मेदारी ने उन्हें फिल्मों में एक्टिंग की मजबूरी थमा दी। 1947 में वह भी छूट गया। उसके बाद उन्होंने पार्श्व गायकी में ही करियर बनाने का फैसला किया। लेकिन वहां भी पहली मुलाकात इनकार से हुई। फिल्मिस्तान के मालिक ने इस टिप्पणी के साथ उन्हें लौटा दिया था कि लता की आवाज बहुत बारीक है और उनकी अभिनेत्री के मुफीद नहीं है। पर लता जी ने हार नहीं मानी। अपना रियाज बढ़ाया, मास्टर गुलाम हैदर से बाकायदा पार्श्व गायकी की बारीकियां सीखीं और फिर 1949 में आई फिल्म महल के गीत ने उनके लिए अवसरों के दरवाजे खोल दिए।
अनेक भाषाओं में हजारों गीतों को मधुर स्वर देने वाली लता मंगेशकर के कई तरानों ने तो वह हैसियत पा ली है कि उनके बिना कुछ आयोजन अधूरे-से लगते हैं। लोरी, भजन, गजल, हर विधा में वह बेजोड़ रहीं। देशभक्ति से जुड़ा कोई भी जलसा उनके गाए ऐ मेरे वतन के लोगों और वंदे मातरम् के बिना पूरा नहीं होता। वह क्रिकेट की कितनी बड़ी प्रशंसक थीं, इसका प्रमाण सन 1983 में मिला था, जब भारत ने पहला एकदिवसीय विश्व कप जीता था। लता जी ने विजेता खिलाड़ियों की आर्थिक मदद की खातिर एक संगीत कार्यक्रम के लिए हुलसकर हामी भरी थी। उस जलसे में उन्होंने व अभिनेता दिलीप कुमार ने भारतीय क्रिकेटरों की शान में जो कुछ कहा, वह किसी तरन्नुम से कम न था। लता जी को मिलने वाले पुरस्कारों का आलम यह रहा कि एक वक्त उन्हें स्वयं अनुरोध करना पड़ा कि वह अब ट्रॉफी स्वीकार नहीं कर सकतीं, नए कलाकारों का हौसला बढ़ाया जाना चाहिए। भारतीय संगीत की सेवा और देश की प्रतिष्ठा बढ़ाने में उनके अप्रतिम योगदान को तमाम सरकारों ने सराहा और वह कई विशिष्ट नागरिक अलंकरणों से नवाजी गईं। साल 2001 में उन्हें 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया था। लता मंगेशकर के सम्मान में राजकीय शोक की घोषणा साबित करती है कि वह भारत के लिए कितनी महत्वपूर्ण थीं। संगीत के जरिये दुनिया भर में भारतीयता का परचम बुलंद करने वाली इस महान कलाकार को हमारी श्रद्धांजलि!
हिन्दुस्तान
Rani Sahu
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