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जो हमारे होने से और हमारे काम से खुश होते हैं, क्या उन्हें अचानक अलविदा कहना बेवफाई नहीं है! अलविदा बेवफा वॉर्न!
क्रिकेट अगर कला है, तो लेग स्पिन गेंदबाजी उस खेल की सबसे कठिन और मुश्किल कलाकारी मानी जाती है। उस गजब की कला के सबसे महानतम और सफलतम कलाकार शेन वार्न अब इस दुनिया में नहीं हैं। रमणीय जीवन जीने वाले, शौकीन मिजाज शेन वॉर्न ने अपने घर, परिवार और क्रिकेट खेलने वाले देशों से दूर थाईलैंड में अपने जीवन की पारी को अलविदा कह दिया। क्रिकेट को अपने जीवन और चरित्र से लोकप्रिय और समृद्ध करने वाले शेन वॉर्न के अचानक चले जाने से दुनिया भर के क्रिकेट प्रेमी स्तब्ध और दुखी हैं।
ऑस्ट्रेलिया के कप्तान पेट कमिंस ने ठीक ही कहा है कि 'जब वॉर्न सन 1992 में खेलने आए, तो क्रिकेट वैसा ही नहीं रह गया था, और अब उनके जाने से भी क्रिकेट वही खेल नहीं रहने वाला है।' क्रिकेट के इस सबसे करिश्माई कलाकार शेन वॉर्न को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। शेन वॉर्न का क्रिकेट सफर भारत के खिलाफ सन 1992 में ऑस्ट्रेलिया के सिडनी मैदान के तीसरे टेस्ट मैच से शुरू हुआ था। थुलथुल शरीर और रंगीन बालों वाले वॉर्न को एक प्रतिभाशाली धनी बिगड़ैल युवा माना जा रहा था।
रवि शास्त्री के दोहरे और सचिन तेंदुलकर के शतक के दौरान शेन वॉर्न को 150 रन देकर केवल एक विकेट ही मिला। अगले एडिलेड टेस्ट में भी वॉर्न को कोई विकेट नहीं मिला। नतीजतन उन्हें तीसरे, और शृंखला के पाचंवे पर्थ टेस्ट में नहीं खिलाया गया। लेकिन उसके बाद परिश्रम, लगन और निर्भय व्यक्तित्व के दम पर वह पंद्रह साल तक न केवल ऑस्ट्रेलिया के लिए खेले, बल्कि ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट को महान उंचाई पर ले गए। उन्होंने जीत और जश्न का नया रोमांचक इतिहास रचा।
ऑस्ट्रेलिया के पूर्व क्रिकेटर, और खेल की बारीक समझ रखने वाले कमेंट्रेटर रिची बेनो ने शेन वॉर्न को महानतम लेग स्पिनर ही नहीं, बल्कि क्रिकेट इतिहास का सर्वश्रेष्ठ और महानतम गेंदबाज माना। महानायक शेन वॉर्न के खेलने भर से खेल लोकप्रिय और संपन्न हुआ। दुनिया भर के युवाओं ने क्रिकेट अपनाया और खेल का आनंद लिया। क्रिकेट प्रेमियों के लिए वॉर्न की लेग स्पिन गेंदबाजी रोमांच का शिखर होती थी।
उनकी गेंदबाजी में जितना संगीतमय लय और जुझारूपन था, उतना ही उनमें शुद्ध मोर्चा लेने और अंत तक लड़ने का दमखम झलकता था। हर बल्लेबाज उनकी गेंदबाजी के सामने जूझता ही दिखता था। 145 टेस्ट में 708 बल्लेबाजों को निपटाने वाले शेन वॉर्न को केवल आंकड़ों से समझना, बिना बादल देखे बारिश को परखने जैसा होगा। शेन वॉर्न लेग स्पिन कला में हाड़-मांस के गॉड पार्टिकल थे। शेन वॉर्न का पहला इंग्लैंड दौरा ओल्ड ट्रैफर्ड मैदान पर 'शताब्दी की गेंद' से शुरू हुआ। और शेन वॉर्न रातों-रात क्रिकेट के चमकते ध्रुवतारे हो गए।
बाद में उन्होंने माइक गेटिंग के डंडे बिखेरने वाली गेंद को तुक्के का संयोग माना। इंग्लैंड में उनकी अद्भुत कला के बारे में कहा जाने लगा कि 'चाइनीज मेन्यू कार्ड तो फिर भी पढ़ा जा सकता है, लेकिन वॉर्न की लेग स्पिन गेंदबाजी को नहीं।' मैदान पर उनके हावभाव, शौर्य और नखरे फिल्मी हीरो की तरह लोकप्रिय हो गए थे। हर बच्चा उनकी तरह लेग स्पिन करना और सीखना चाहता था। शेन वॉर्न के जीवन में सपने जैसे सुनहरे पलों के साथ विवादों भरा क्षण भी आया। विवाद और वॉर्न का खास वास्ता रहा।
बावन साल की उम्र में जीवन से आउट होने वाले वॉर्न, अपने पीछे माता-पिता, तलाकशुदा बीवी, तीन किशोर बच्चे, एक भाई और क्रिकेट जगत के लाखों-करोड़ों प्रेमियों को दुखी छोड़ गए। क्रिकेट जगत गहरे शोक में है। आखिर हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है? सिर्फ मौजमस्ती, खुद का आनंद और लगातार पार्टी हमारा अकेला मकसद नहीं हो सकता है, क्योंकि परिवार, परिजन और हमारे काम से प्रेम करने वालों के प्रति भी हमारा उत्तरदायित्व बनता है। जो लोग हमें बनाते हैं, मौका देते हैं, रचते हैं और सफल बनाते हैं, उनके प्रति भी हमारी कोई जिम्मेदारी बनती है या नहीं? जो हमारे होने से और हमारे काम से खुश होते हैं, क्या उन्हें अचानक अलविदा कहना बेवफाई नहीं है! अलविदा बेवफा वॉर्न!
सोर्स: अमर उजाला
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