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- सुशासन बनाम अराजकता
Written by जनसत्ता; बिहार के बेगूसराय जिले में मंगलवार को दो मोटरसाइकिलों पर सवार चार लोगों ने सड़क पर जिस तरह का आतंक मचाया, उसने एक बार फिर बिहार में सुशासन के दावे पर सोचने के लिए लोगों को मजबूर कर दिया। अराजकता और हिंसा के चुनावी मुद्दा बनने के बाद बिहार में सत्ता परिवर्तन हुआ था और सुशासन का भरोसा दिया गया। अपराधों की प्रकृति, उसके तुलनात्मक आंकड़े और उसके प्रति शासन का रुख बहस का विषय हो सकते हैं, लेकिन शायद कोई नहीं चाहेगा कि राज्य में आपराधिक तत्त्वों की गतिविधियां बेलगाम हो जाएं।
बेगूसराय की घटना के सुर्खियों में आने की वजह ही यह बनी कि इस अपराध की प्रकृति दूसरी वारदात के मुकाबले बिल्कुल अलग प्रकृति की थी। दो मोटरसाइकिलों पर सवार चार अपराधियों ने राष्ट्रीय उच्च पथ 28 पर करीब तीस किलोमीटर तक गाड़ी चलाते हुए बेलगाम गोलीबारी की। गोली लगने से एक व्यक्ति की जान चली गई और दस लोग घायल हो गए। पहली नजर में ही यह साफ लग रहा था कि सड़क पर गाड़ी चलाते हुए इस तरह गोलीबारी किसी खास व्यक्ति को निशाने पर लेकर हत्या करने के मकसद से नहीं, बल्कि आतंक फैलाने के लिए की गई थी, जिसमें किसी की जान की परवाह नहीं थी।
स्वाभाविक ही घटना की प्रकृति को देखते हुए यह सवाल उठा कि इतनी लंबी दूरी तक कुछ अराजक तत्त्व लगातार गोलियां बरसाते रहे और इस बीच कहीं भी सड़क पर उन्हें रोकने-टोकने के लिए पुलिस वाले नहीं दिखे। जबकि उम्मीद यह की जाती है कि भाग रहे किसी भी अपराधी को पुलिस का तंत्र कुछ ही देर में पकड़ लेगा। राहत की बात सिर्फ इतनी है कि गोलीबारी कर गायब हो गए चार आरोपियों को सीसीटीवी के फुटेज, मोबाइल के लोकेशन और अन्य तकनीकी यंत्रों की मदद से पुलिस ने अब गिरफ्तार कर लिया है।
शुरुआती जांच और पूछताछ के बाद पुलिस ने यह बताया कि गोलीबारी करने वालों का मकसद दहशत या आतंक फैलाना था। लेकिन फिर इसके बाद इस सवाल का जवाब बाकी रह जाता है कि आम लोगों के बीच ऐसी वारदात के जरिए आतंक फैलाने के पीछे क्या मकसद हो सकता है! संभव है कि पुलिस अपनी जांच-पड़ताल के बाद इस पहलू का भी खुलासा करे, लेकिन तीस किलोमीटर तक सड़क पर अपराधियों ने सरेआम और बेरोकटोक जैसा आतंक मचाया, वह कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर एक गंभीर खामी का सूचक है।
बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहने वाला शब्द सुशासन रहा है। इसलिए वे अगर अपने सुशासन और राज्य के हित में सोचने वाले नेता की पहचान के साथ टिके रहना चाहते हैं तो उन्हें राज्य में होने वाले ऐसे अपराधों को अंजाम देने वाले अपराधियों और पर्दे के पीछे खड़े उनके संरक्षकों को भी कानून के कठघरे में खड़ा करना होगा। अगर ऐसी अराजक हिंसा की वारदात होती है तो राज्य सरकार को सोचना चाहिए कि सुशासन का क्या अर्थ है और वह किस मोर्चे पर नाकाम है।
दरअसल, बेगूसराय में अपराधियों ने जैसा तौर-तरीका अपनाया, उसकी वजह से इस पर सबका ध्यान जाना लाजिमी है। यह कहा जा सकता है कि सरकार की सक्रियता और पुलिस की तत्पर कार्रवाई के बाद चार आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए, लेकिन जरूरत इस बात की है कि इस घटना के हर पहलू की बारीकी से जांच-पड़ताल कर त्वरित अदालत के जरिए दोषियों को सख्त सजा दिलाने के लिए सरकार अपनी इच्छाशक्ति दिखाए। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि अराजकता, हिंसा और अन्य आपराधिक घटनाओं की वजह से बिहार की सरकार पहले भी सवालों के घेरे में रही है।