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- टीके पर अच्छा फैसला
नवभारत टाइम्स; केंद्र ने 18 से 59 साल तक की उम्र वाले सभी लोगों को आज से 75 दिनों तक कोरोना टीके की तीसरी डोज मुफ्त देने का एलान किया है। इसकी बड़ी वजह यह है कि पहले की दोनों डोज के मुकाबले तीसरी डोज लेने वालों की संख्या बहुत कम है। इस उम्र समूह में करीब 77 करोड़ लोग आते हैं, जिनमें से 1 प्रतिशत को भी तीसरी डोज नहीं लगाई जा सकी है। इसके मुकाबले टीके की पहली डोज समस्त आबादी के 96 फीसदी हिस्से को लगाई जा चुकी है। 87 फीसदी लोग इसकी दोनों डोज ले चुके हैं। तीसरी डोज को लेकर जो ढीलापन दिख रहा है, उसकी एक वजह यही लगती है कि कोरोना महामारी की तीसरी लहर के उतार के बाद लोगों में यह धारणा घर करने लगी है कि अब यह वायरस कोई खतरा नहीं रह गया है। दूसरी वजह यह है कि आबादी के एक हिस्से के लिए निजी अस्पतालों में टीका लगवाने का खर्च बोझ की तरह था। इसलिए मुफ्त टीकाकरण की हालिया पहल के अच्छे नतीजे सामने आ सकते हैं। दरअसल, दूसरी लहर के विनाशकारी रूप ने सबको दहला दिया था। उसके बाद टीके लेने की ऐसी होड़ थी कि इसकी सप्लाई कम पड़ने की खबरें आ रही थीं। मगर जब तीसरी लहर आई तो व्यापक टीकाकरण के प्रभावों की बदौलत उसमें अस्पताल पहुंचने वाले मरीजों की संख्या अपेक्षाकृत कम रही। जो अस्पताल पहुंचे, उनमें से भी ज्यादातर को बचा लिया गया। इससे देशवासियों के एक बड़े हिस्से में यह राय बनने लगी कि अब कोरोना कोई जानलेवा बीमारी नहीं रही।
नतीजतन तीसरी लहर के उतार के बाद न केवल सड़कों, दफ्तरों, बाजारों में पहले जैसी उपस्थिति दिखने लगी है बल्कि कोरोना प्रोटोकॉल के पालन को लेकर भी काफी लापरवाही नजर आती है। सार्वजनिक स्थानों पर मास्क लगाए भी कम ही लोग दिखते हैं। लोगों की यही मन:स्थिति प्रिकॉशन डोज के मामले में भी झलक रही है। मगर यह लापरवाही अच्छी नहीं है। खासकर उस वायरस को लेकर जो न केवल विनाशकारी रूप दिखा चुका है बल्कि रूप और गुण बदलने की अपनी विशेषता भी स्थापित कर चुका है। विशेषज्ञों के मुताबिक टीके की दो डोज लेने से शरीर में बनी एंटीबॉडीज छह महीने बाद कमजोर पड़ने लगती है, जबकि देशवासियों के ज्यादातर हिस्से को दूसरी डोज लिए हुए नौ महीने हो चुके हैं। जाहिर है, अब उन्हें प्रिकॉशन डोज जल्द से जल्द ले लेनी चाहिए ताकि महामारी की एक और लहर झेलने की नौबत न आए। ध्यान रहे, कोरोना के नए केसों के मामले में पिछले एक सप्ताह का दैनिक औसत करीब 17600 रहा, जो इसी अप्रैल में हजार से भी नीचे जा चुके साप्ताहिक औसत से काफी अधिक है। जाहिर है, सरकार की यह पहल न केवल सामयिक बल्कि आवश्यक है और आम नागरिकों के समर्थन की हकदार भी।