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फाइल फोटो
जनता से रिश्ता वेबडेस्क |संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन या कॉप 15 में 196 देशों का इस बात पर राजी होना सचमुच बड़ी बात है कि साल 2030 तक पृथ्वी के 30 फीसदी हिस्से को प्रकृति के लिए संरक्षित कर दिया जाएगा। दुनिया भर में दी जा रही उन सब्सिडी में सालाना 500 अरब डॉलर की कमी लाई जाएगी, जो पर्यावरण के लिहाज से नुकसानदेह हैं और कम से कम 30 फीसदी ऐसे इलाकों को फिर से दुरुस्त किया जाएगा, जिनका इकोसिस्टम खराब हो चुका है। इस समझौते से उत्साहित कुछ विशेषज्ञ इसे जैव विविधता का 'पैरिस मोमेंट' बता रहे हैं। निश्चित रूप से क्लाइमेट चेंज से कम बड़ा मुद्दा नहीं है जैव विविधता का। दोनों पर्यावरण को हो रहे नुकसान से सीधे तौर पर जुड़े हैं। हालांकि यह समझौता होना जितना अहम है, उतना ही मुश्किल है इस पर अमल सुनिश्चित करना। उदाहरण के लिए, पृथ्वी के 30 फीसदी हिस्से को संरक्षित करने को ही लिया जाए तो आज की तारीख में महज 17 फीसदी हिस्सा ही प्रकृति के लिए संरक्षित है। अगले सात वर्षों में इसे बढ़ाकर 30 फीसदी तक ले जाने के लिए विभिन्न सरकारों को नीतियों और विकास परियोजनाओं के स्वरूप और उसकी गति के स्तर पर कई तरह के ऐसे बदलाव करने पड़ेंगे, जो उनके लिए आसान तो बिलकुल नहीं हैं। इन बदलावों की अपनी आर्थिक कीमत भी है।