सम्पादकीय

ईजी मनी के दिन गए

Gulabi Jagat
6 May 2022 6:08 AM GMT
ईजी मनी के दिन गए
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अमेरिका में ब्याज दर बढ़ने का मतलब है कि विदेशी और यहां तक कि अनेक देशी निवेशक भी डॉलर मे निवेश करना चाहेंगे
By NI Editorial
अमेरिका में ब्याज दर बढ़ने का मतलब है कि विदेशी और यहां तक कि अनेक देशी निवेशक भी डॉलर मे निवेश करना चाहेंगे। इसके लिए वे भारत जैसे देशों से पैसा निकालेंगे। उसका परिणाम शेयर बाजारों में गिरावट के रूप में सामने आएगा।
सबको यह मालूम था कि बुधवार को अमेरिकी सेंट्रल बैंक- फेडरल रिजर्व ब्याज दर में बढ़ोतरी करेगा। इस संभावना से दुनिया भर के बाजारों में पहले से उथल-पुथल मची थी। भारतीय रिजर्व बैंक ने इसके मद्देनजर अचानक पहल की। फेडरल रिजर्व के एलान से कई घंटे पहले आरबीआई ने रेपो रेट में 40 आधार अंकों को बढ़ोतरी कर दी। साथ ही बैंकों के कैश रिजर्व रेशियो में 50 आधार अंकों की वृद्धि की गई। उधर फेडरल रिजर्व ने ब्याज दर में आधा प्रतिशत का इजाफा किया है। दो दशक में यह सबसे बड़ी ऐसी बढ़ोतरी है। ऐसे कदमों के पीछे मकसद हमेशा ही बाजार में मुद्रा की सप्लाई को नियंत्रित करना होता है। आम समझ है कि ऐसा होने पर मुद्रास्फीति दर नियंत्रित होती है। बेशक, इस समय दुनिया ऊंची महंगाई दर से परेशान है। यह सरकारों और लोकतांत्रिक देशों में सत्ताधारी दलों के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। ऐसे कुछ करते दिखना सरकारों की मजबूरी बन गई है। नतीजा यह है कि ईजी मनी की जो नीति 2008-09 से चलाई जा रही थी, उसे पलटा जा रहा है। इस नीति के तहत सेंट्रल बैंक निम्न ब्याज दर पर कर्ज मुहैया करा रहे थे। यह नीति कोरोना काल में अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गई। इससे विभिन्न देशों में असल अर्थव्यवस्था कितनी संभली, यह तो विवाद का विषय है।
लेकिन इससे शेयर बाजारों में चमक जरूर देखने को मिली। भारत में इसकी वजह से स्टार्ट अप्स का दौर आया, जिनमें कई ने यूनिकॉर्न (एक अरब डॉलर के बाजार मूल्य) का दर्जा प्राप्त कर लिया। अब सबसे ज्यादा चुनौती अर्थव्यवस्था के इसी हिस्से के लिए पैदा होगी। अमेरिका में ब्याज दर बढ़ने का मतलब है कि विदेशी और यहां तक कि अनेक देशी निवेशक भी डॉलर मे निवेश करना चाहेंगे। इसके लिए वे भारत जैसे देशों से पैसा निकालेंगे। उसका परिणाम शेयर बाजारों में गिरावट के रूप में सामने आएगा। उस वजह से कंपनियों के बाजार मूल्य गिरेंगे। जिन लोगों ने म्युचुअल फंड में पैसा लगा रखा है, उन्हें भी नुकसान होगा। तो अब तक बदहाल वास्तविक अर्थव्यवस्था से जुड़ी आबादी बदहाल थी। अब शेयर सूचकांकों से चमक रहे तबकों पर भी ग्रहण लगेगा।
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