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वर्ष 1960 से 1995 के 35 वर्षों में जिसने भी आकाशवाणी पर समाचार सुने हैं
प्रदीप सरदाना। वर्ष 1960 से 1995 के 35 वर्षों में जिसने भी आकाशवाणी पर समाचार सुने हैं, उन्हें बताने की जरूरत नहीं कि रामानुज प्रसाद सिंह कौन थे। पर जो नहीं जानते, उन्हें बता दें कि वर्षों तक हर रोज आकाशवाणी पर यह आवाज गूंजती रही- 'यह आकाशवाणी है।
अब आप रामानुज प्रसाद सिंह से समाचार सुनिए।' लेकिन अपनी आवाज से दुनिया को मंत्रमुग्ध करने वाले रामानुज प्रसाद सिंह ने गत 21 सितंबर को 86 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कह दिया और इसी के साथ आकाशवाणी के स्वर्ण युग का भी अंत हो गया। लोग उनको चेहरे से नहीं, सिर्फ आवाज से ही पहचान लेते थे।
देश ही नहीं, विदेशों में भी जहां ऑल इंडिया रेडियो के समाचार सुने जाते थे, वहां भी इन्हें बहुत सम्मान मिलता था। वह दमदार आवाज ही नहीं, शानदार व्यक्तित्व के भी मालिक थे। देवकी नन्दन पांडे और विनोद कश्यप इनसे पहले आने के कारण और भी लोकप्रिय थे।
पर रामानुज ने समाचार पढ़ने का अपना अंदाज इन दोनों से अलग रखा। इसलिए उनका अपना एक अलग आभामंडल बन गया था। मैंने स्वयं भी देखा, बड़े प्रशासक, मंत्री, कलाकार सभी उनको बेहद सम्मान देते थे। बिहार के बेगुसराय के सिमरिया गांव में पांच दिसंबर, 1935 को जन्मे रामानुज का सौभाग्य था कि सुप्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' इनके ताऊ थे।
जब रामानुज ने 1966 में अपनी पसंद की लड़की मणिबाला से प्रेम विवाह किया, तो दिनकर जी ने उनकी शादी का स्वागत समारोह अपने दिल्ली स्थित आवास पर ही कराया, जिसमें कितने ही साहित्यकार, कवि और राजनेता शामिल हुए। यह सब बताता है कि उस दौर में रामानुज प्रसाद को कितना सम्मान और प्रेम मिलता था। उनके आकाशवाणी के साथियों से बात करें या परिवार के सदस्यों से, जो एक बात सभी एक सुर में कहते हैं, वह यह कि वह अजातशत्रु थे।
दूसरों की मदद करने को तत्पर रहते थे। सेवानिवृत्ति के बाद पिछले 25 बरस उन्होंने पूरी तरह अपने परिवार को समर्पित करते हुए खूब आनंदमय जीवन बिताया। संकीर्णता से ऊपर उठकर उन्होंने अपने तीनों बच्चों का अंतरजातीय विवाह कराया। परिवार और कार्य क्षेत्र, दोनों जगह वह कई ऐसी मिसाल छोड़ गए हैं, जिनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है।
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