सम्पादकीय

भगवान की कृत्रिम बुद्धि

Rani Sahu
3 April 2022 7:10 PM GMT
भगवान की कृत्रिम बुद्धि
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कोई न कोई सवाल हर सदी में रहा है और इसीलिए सदी के हर सवाल को उठाने वालों ने बुद्धि का इस्तेमाल किया होगा

कोई न कोई सवाल हर सदी में रहा है और इसीलिए सदी के हर सवाल को उठाने वालों ने बुद्धि का इस्तेमाल किया होगा। अब बात अलग है। न सवाल उठाने के लिए बुद्धि खर्च होती है और न ही जवाब देनें में बुद्धि दिखाई दे रही है। बुद्धि का इस्तेमाल करने वाले जहां कहीं भी हैं या होंगे, उनके लिए इससे बड़ा अभिशाप नहीं। पहले ही अर्बन नक्सल टाइप लोग पहचाने गए हैं, जिन्होंने बुद्धि आजमाते हुए न जाने कितने कॉफी के कप तोड़ दिए। बुद्धि का मुकाबला हमेशा बुद्धि से ही रहा है, इसीलिए वार्षिक परीक्षाओं में फेल होने का अर्थ यह रहा है कि पेपर चैक करने वाले ने बुद्धि का कहीं अधिक प्रयोग कर दिया। देश के लिए बुद्धि वाले ही अलोकतांत्रिक और राष्ट्र विरोधी माने जाने चाहिएं। बुद्धि इतनी शक्तिशाली होती, तो चुन लेती अपने अनुरूप विधायक। ये काम ते वही कर सकते हैं, जो चुनते वक्त दिमाग का इस्तेमाल नहीं करते। सही सौदा घर के लिए हो या देश के लिए, बुद्धि को एकदम किनारे लगा कर ही होगा।

कहीं खुदा न खास्ता किसान की उपज का सौदा दिमाग से होने लगे, तो राशन और भाषण का क्या होगा। इसी तरह विवाह नामक संस्था भी अगर दिमागी पड़ताल में पड़ जाए, तो शायद ही अच्छी दु्ल्हन को कोई अच्छा दूल्हा मिल पाएगा। कम से कम दंपत्ति में किसी एक को बुद्धिहीन होना पड़ता है ताकि परिवार आगे बढ़ सके। हर समझौते में बुद्धि को किनारे लगाते हुए अब यह समझौता होने लगा है कि देश को कृत्रिम बुद्धि से चलाया जा सकता है। देश के सारे संकटों का निवारण कृत्रिम बुद्धि से होगा, इसलिए अब बांटने के लिए मुफ्त में यह भी मिलेगी। देश में मानव बुद्धि की जगह कृत्रिम बुद्धि चलेगी, यह खबर हमारे कुल के देवता तक पहुंच गई। पहली बार भगवान की शक्तियां भी काम नहीं कर रही थीं, क्योंकि इन पर असर तो तभी तक था, जब तक मानव भी अपनी बुद्धि पर यकीन करता था। भगवान भविष्यवाणी करना चाहते थे। हर युग में भविष्यवाणी होती रही, तो अब यकायक लोगों ने भगवान को बता दिया है कि आगे बढ़ने के लिए भविष्य नहीं, तो फिर भविष्यवाणी क्यों। हमारे घर के पूजा स्थल में बैठे भगवान भी नाराज थे। कई दिनों से न तो नहाए थे और न ही उनकी पूजा के लिए देशी घी और अन्य पूजा सामग्री बची थी। हम सभी बारी-बारी उनके पास जाते और घंटी बजा देते। अंततः वह जागे और क्रोधित स्वर में बोले, 'यह क्या हाहाकार मचा रखा है।
यह कौनसा युग है जहां भगवान को भी धूप-टीके के बिना रहना पड़ रहा है।' मैं आदर भाव से झुक गया और जोर से चिल्लाया, 'भगवान जाग गए, भगवान जाग गए।' मेरी आवाज पर सभी सदस्यों को मुफ्त में मिली कृत्रिम बुद्धि सक्रिय हो गई। यह खतरे का अलार्म था, इसलिए भयभीत भगवान को देख रहा था। सवाल यह था कि अगर भगवान और इनसान के बीच बुद्धि का विस्तार हो गया, तो फिर कृत्रिम बुद्धि क्या करेगी। इससे पहले कि सरकार का नुमाइंदा ढूंढता हुए 'मेरे भगवान' को तलब कर पाता, मैंने शांत भाव से उन्हें बताया कि अब आपके भक्त आर्टिफिशियल इंटेलिजैंस के मार्फत ही अपनी भक्ति का प्रदर्शन करते हैं। उन्हें नेताओं में भगवान मिल रहे हैं और मीडिया की प्रदक्षिणा से अब आपके भक्त भी किसी न किसी नेता के भक्त सिद्ध हो रहे हैं। सरकारें नहीं चाहती कि बढ़ती महंगाई में हम पूजा के लिए देशी घी, धूप या अगरबत्ती खरीद सकें। भगवान अब हर युग में अपने और मेरे नाते पर बोल रहे थे। उन्होंने सारे धार्मिक ग्रंथ पलट दिए, लेकिन मेरी कृत्रिम बुद्धि इन्हें कबूल नहीं कर रही थी। अंततः सरकार ने भगवान का पता लगा लिया। मेरे ही सामने भगवान को भी कृत्रिम बुद्धि का आलेप लगा दिया गया। इस तरह हर भगवान अब कृत्रिम बुद्धि के इशारे पर चलेगा, कभी किसी नारे, कभी वादे या कभी चुनाव के इशारे पर चलेगा। मेरा भगवान अब अगले चुनाव में अपनी भूमिका ढूंढ रहा है, बिल्कुल मेरी तरह।
निर्मल असो
स्वतंत्र लेखक


Rani Sahu

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