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ईश्वर जब भी किसी को मिला है, भीतर ही मिला है। जो लोग परमात्मा को बाहर ढूंढेंगे
पं. विजयशंकर मेहता। ईश्वर जब भी किसी को मिला है, भीतर ही मिला है। जो लोग परमात्मा को बाहर ढूंढेंगे, वो सारी दुनिया नाप तो लेंगे, लेकिन वह मिलेगा नहीं। यह तय है कि वह अपने भीतर उतरने पर ही मिलेगा। हनुमानजी को उसी लंका में सीताजी प्राप्त हो गई थीं, क्योंकि उन्होंने भीतर खोज लिया था मां को। लंका की राक्षसियां उन्हें बाहर ढूंढ रही थीं, और इसीलिए कभी पा नहीं सकीं।
सीताजी को लंका से लाया गया तो रामजी ने विचार किया जब रावण अपहरण करने आने वाला था, उससे पहले हमने सीता के वास्तविक रूप को अग्रि में रखा था। तो अब वापस इनका भीतर का रूप प्रकट करना चाहिए। उन्होंने अग्रि तैयार करने का जो आदेश दिया, उसे सुनकर सब परेशान हो गए। राक्षसियां तो विषाद करने लगीं। इस पर तुलसीदासजी ने लिखा- 'तेहि कारन करुनानिधि कहे कछुक दुर्बाद। सुनत जातुधानीं सब लागीं करै बिषाद।' करुणा के सागर श्रीराम ने कुछ कठोर वचन कहे, जिन्हें सुनकर सब राक्षसियां विषाद करने लगीं।
देखिए, आखिर राक्षसियों में सीताजी के प्रति ऐसा क्या लाड़ जाग गया कि विषाद करने लगीं? इसके दो पक्ष हैं। एक तो सत्ता बदल गई तो सुर बदल गए। और, दूसरा पक्ष यह कि परमशक्ति भीतर ही प्राप्त हो सकती है। समझने की बात यही कि ईश्वर कभी बाहर नहीं मिल सकता। वह जब भी मिलेगा, भीतर मिलेगा।
Rani Sahu
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