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एक विवादित रेस्तरां की वजह भले ही राजनीति हो या यह मान लें कि ‘सिल्ली सोल कैफे एंड बार’ से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं, लेकिन पर्यटन की ऐसी भयावह तस्वीर से हिमाचल जैसे राज्य को नसीहत लेनी होगी
By: divyahimachal
एक विवादित रेस्तरां की वजह भले ही राजनीति हो या यह मान लें कि 'सिल्ली सोल कैफे एंड बार' से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं, लेकिन पर्यटन की ऐसी भयावह तस्वीर से हिमाचल जैसे राज्य को नसीहत लेनी होगी। गोवा के वकील एवं आरटीआई एक्टिविस्ट रोड्रिक्स के खुलासों का तथ्य अभी बाहर आना है, लेकिन जिस तरह के संचालन से पर्यटन इकाइयां मशहूर हो रही हैं, उनका अवलोकन जरूरी है। गोवा के असगाव की तरह हिमाचल में भी कई ऐसे गांव, कस्बे, ट्रैकिंग रूट या पहाडिय़ां ढूंढी जा रही हैं, जहां पर्यटन की खाक छानते मकसद ने कानून की हद तक बेडिय़ां पहना दी हैं। जैसे सीजन से ऊपर गोवा हो चुका है या हर सीजन में पर्यटन खोजा जा रहा है, कुछ उसी तरह की तलाश में हिमाचल ने भी अपने इर्द-गिर्द मकडज़ाल बुन लिया है। मानों हम पर्यटन के कदमताल में ऐसे निर्माण पर आंखें मूंद रहे हैं, जो तेजी से धान के खेत, फल की फसल और घाटी के नजारों को छीन रहा है। आज गोवा अपने समुद्र तट के गुम होते नजारों के बीच अगर बड़े होटल देख रहा है, तो हिमाचल की हर सडक़ भी ऐसे निर्माण से घिर रही है। चंडीगढ़ से शिमला, कीरतपुर से मनाली या पठानकोट से मंडी की तरफ पर्यटन की लालसा ने कितने दृश्य छीन लिए, कौन हिसाब लगाए। पर्यटन अब अनछुआ एहसास नहीं, बल्कि अनछुए वातावरण में खलल बनता जा रहा है। हिमाचल में ग्रामीण पर्यटन के नाम पर जिस तरह एक नई नस्ल का कारोबार शुरू हो रहा है, उसका नियमन जरूरी है। यह पर्यटन के मार्फत आते कई तरह के दोष व बुराइयों का गोपनीय ढंग से स्वागत ही है। कई तरह की जंगल पार्टियों के माध्यम यह सामने आता रहता है कि पर्यटन का मुखौटा पहनकर किस तरह की उद्दंडता को अंगीकार किया जा रहा है।
पर्यटन अगर ड्रग की चरागाह बन रहा है, तो इस काफिले को एक सीमा तक ही स्वीकार करना होगा, वरना गांव के ठेठ माहौल तक अगर पदचाप बढ़ी, तो सेवा का अभिप्राय बदल जाएगा। गोवा यूं ही बर्बाद नहीं हुआ, वहां 35 फीसदी लोग बाहर से आकर बस गए, तो यह व्यापार की अति मानी जाएगी। गौर करें कुछ वर्ष पहले तक गोवा में तीन हजार के करीब होटल थे, तो इनमें से अधिकांश का व्यापारिक प्रबंधन बाहरी रहा। हिमाचल के प्रमुख पर्यटक स्थलों के आधे से अधिक होटल लीज पर हैं, तो ग्रामीण पृष्ठभूमि में उग रही इकाइयां भी अब बाहरी हाथों का खिलौना बन रही हैं। पर्यटन विभाग के पास न तो इतना स्टॉफ और न ही कोई टास्क फोर्स है, जो पता लगा सके कि कहां टैंट कालोनियां वैध या होम स्टे की पवित्रता कायम है। आश्चर्य यह कुछ शहरी क्षेत्रों के साथ नियमों का उल्लंघन करके आवासीय छतों पर ही होम स्टे की दरख्वास्त होटल में बदल दी गई। न तो टीसीपी कानून और न ही नगर निकायों के बीच इस तरह की छेड़छाड़ को रोकने की कोई व्यवस्था है। ऊपर से पर्यटन विभाग की अपनी लाचारी है। बेशक जिस तरह गोवा के प्रति पर्यटक का उत्साह बिका, उससे आर्थिक संबल मिला, लेकिन स्पष्टता और नीतिगत अभाव से अब वहां अनैतिक व अवांछित गतिविधियां बढ़ गईं। हिमाचल के प्रति भी पर्यटकों का बढ़ता मोह व उत्साह आज की तारीख में एक प्रतिस्पर्धा का सबब बन गया है, लेकिन कल जब यही मांग अपनी आपूर्ति के जोखिम से सौदा करेगी, तो सब कुछ बिक गया होगा। इसलिए वक्त रहते हिमाचल के पर्यटन खास तौर पर गांवों में घुसते पर्यटन को मर्यादित, सीमित तथा नियमित करना ही पड़ेगा।
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Rani Sahu
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