सम्पादकीय

गोवा विधानसभा चुनाव: पिता-पुत्र के सियासी झगड़े में बीजेपी को फायदा मिल जाएगा?

Gulabi
28 Dec 2021 9:26 AM GMT
गोवा विधानसभा चुनाव: पिता-पुत्र के सियासी झगड़े में बीजेपी को फायदा मिल जाएगा?
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गोवा विधानसभा चुनाव
अजय झा. गोवा के सियासी नाटक में रोज एक नया रोचक अध्याय जुड़ता जा रहा है. कहने को तो गोवा भारत का सबसे छोटा राज्य है, कुल जनसंख्या लगभग 15 से 16 लाख के बीच और मतदाताओं की संख्या 11 लाख के आसपास है. कुल 40 विधानसभा सीटे हैं. पर कहते हैं ना कि देखन में छोटे लगैं घाव करैं गम्भीर. गोवा छोटा राज्य होने के बावजूद देश के बड़े पार्टियों को गंभीर घाव देने में सक्षम है.
गोवा में फरवरी के महीने में विधानसभा चुनाव होने वाला है, मुश्किल से सात से नौ हफ्ते में चुनाव होने वाला है, पर रोज कुछ ना कुछ ऐसा होता ही रहता है जिस कारण पूरे देश की नज़र गोवा चुनाव पर टिकी है, हालांकि फरवरी और मार्च महीने में चार और राज्यों– उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और मणिपुर में भी चुनाव होने वाला है. लेकिन गोवा की चर्चा का कारण यह है कि किसी अन्य राज्य के मुकाबले गोवा में दल-बदल इस बेशर्मी के साथ होती है, जो और किसी राज्य में नहीं होती. और सबसे मजेदार बात है कि गोवा की जनता को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. यानि जरूरी नहीं कि दलबदलू नेता हार ही जाएं.
पोरीम सीट पर पिता-पुत्र आमने-सामने
क्रिकेट या अन्य स्पोर्ट्स में गेम फिक्सींग की बात अब तो आम हो गयी है, पर इस बार गोवा चुनाव में गेम फिक्सिंग होने की जबरदस्त संभावना बनती जा रही है, वह भी 40 में से एक खास सीट, गोवा की पोरीम सीट पर. वर्तमान में पोरीम विधायक प्रताप सिंह राणे हैं, जो गोवा के इतिहास में सात बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने का एक ऐसा रिकॉर्ड बना चुके हैं. जिसे तोड़ना क्रिकेट की दुनिया में डॉन ब्रैडमैन के रिकॉर्ड को तोड़ने के बराबर है, जो संभव नहीं है. प्रतापसिंह राणे ने कांग्रेस पार्टी की परंपरा निभाते हुए अपने पुत्र विश्वजीत राणे को अपने जीते जी उत्तराधिकारी बनाने की कोशिश की.
बात 2007 की है. राणे परिवार, कांग्रेस पार्टी के आलाकमान गांधी परिवार से तुलना तो कर नहीं सकता. सोनिया गांधी और राहुल गांधी एक ही साथ सांसद हो सकते हैं. लेकिन प्रतापसिंह राणे (Pratapsingh Rane) और विश्वजीत राणे (Vishwajit Rane) एक साथ विधायक नहीं बन सकते. इसीलिए 2017 के विधानसभा चुनाव में विश्वजीत राणे को कांग्रेस पार्टी ने टिकट देने से मना कर दिया. विश्वजीत राणे ने बागी बन कर वलपोई निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा और चुनाव जीत गए. त्रिशंकु विधानसभा चुनाव में बहुमत से तीन सीट कम होने के कारण सरकार बनाने के लिए कांग्रेस पार्टी को समर्थन की जरूरत थी, लिहाजा विश्वजीत राणे को मंत्रीमंडल में स्वास्थ्य मंत्री के रूप में शामिल किया गया. और जब 2017 के चुनाव में बीजेपी को सरकार बनाने के लिए आठ विधायकों जरूरत थी, विश्वजीत राणे कांगेस पार्टी छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो गए और एक बार फिर से स्वास्थ्य मंत्री बन गए.
प्रतापसिंह राणे चुनाव लड़ने से इंकार कर देंगे?
अगर 2017 में विश्वजीत राणे पहले कांग्रेसी विधायक थे, जिन्होंने कांग्रेस पार्टी को छोड़ कर बीजेपी में शामिल होने का निर्णय लिया तो प्रतापसिंह राणे शायद उस कड़ी में आखिरी होंगे. अभी हाल ही में बीजेपी के गोवा प्रभारी और पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी कि प्रतापसिंह राणे जल्द ही बीजेपी में शामिल होने वाले हैं. इससे घबरा कर कांग्रेस पार्टी ने प्रतापसिंह राणे को पोरीम सीट से अपना आधिकारिक उम्मीदवार घोषित कर दिया. उधर, विश्वजीत राणे ने इस बार बीजेपी के टिकट पर पिता के पोरीम सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी. यानि चुनाव में पिता और पुत्र के बीच लड़ाई की बिसात बीछ गई. पर अब शायद ही ऐसा हो. रविवार को प्रतापसिंह राणे ने कहा कि चूंकि अभी चुनाव की घोषणा नहीं हुई है, उन्होंने अभी मन नहीं बनाया है कि वह एक बार फिर 82 वर्ष में चुनाव लड़ेंगे.
यानि पिता-पुत्र का रोचक संघर्ष शायद देखने को ना मिले. राणे 2017 में चुने गए 16 कांग्रेसी विधायकों में शामिल हैं और अब कांग्रेस के बचे दो विधायकों में से एक हैं. प्रतापसिंह राणे ने रविवार को धोषणा की कि एक बार फिर से चुनाव लड़ने के बारें में अभी उन्होंने कोई फैसला नहीं लिया है, कांग्रेस पार्टी के लिए शुभ संकेत कतई नहीं हैं.
कांग्रेस के लिए पोरीम सीट पर मुसीबत होगी
विश्वजीत राणे पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के निधन के बाद से मुख्यमंत्री बनने की तमन्ना संजोए बैठे हैं. वर्तमान मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत को वह अपना नेता नहीं मानते और करोना महामारी के बीच ही गोवा में मुख्यमंत्री सावंत और स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे के बीच बढ़ती खाई दिखने लगी थी. अगर कांग्रेस पार्टी तोड़ कर बीजेपी में शामिल होने और पांच साल मंत्री बने रहने के बाद असम में हिमंत बिस्व सरमा मुख्यमंत्री बन सकते हैं तो फिर विश्वजीत राणे क्यों नहीं? और सिर्फ इसी कारण इस बात कि सम्भावना बढ़ती जा रही है कि पुत्रमोह में चुनाव के ठीक पहले या तो प्रतापसिंह राणे चुनाव लड़ने से मना कर देंगे या फिर नामांकन वापस लेने के आखिरी दिन और आखिरी समय वह अपना नामांकन वापस ले लेंगे ताकि उनकी जगह कांग्रेस पार्टी का उनके पुत्र के सामने कोई और उम्मीदवार मैदान में ना हो.
लेकिन बावजूद इसके कि अभी तक बाप-बेटे के बीच टक्कर की सम्भावना बनी हुई है, इस बात की प्रबल सम्भावना बनी हुई है कि प्रतापसिंह राणे कभी भी कांग्रेस पार्टी को गुड बाय कह सकते हैं. 82 वर्ष की उम्र में वह अपने पुत्र विश्वजीत राणे, जो कि चुनाव के दौरान ही 48 वर्ष के हो जाएंगे, के भविष्य को धूमिल नहीं करना चाहेंगे. फिलहाल कांग्रेस पार्टी के लिए पोरीम सीट से चुनाव जितना मुश्किल बनता जा रहा है.
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