सम्पादकीय

Global Economy: वैश्विक संकेतों पर निर्भर अर्थव्यवस्था, भारत का प्रदर्शन शानदार

Neha Dani
6 Dec 2022 2:15 AM GMT
Global Economy: वैश्विक संकेतों पर निर्भर अर्थव्यवस्था, भारत का प्रदर्शन शानदार
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जो कुछ दरारें दिखा रही है। हमें अगले तीन महीने तक सतर्क रहना होगा, जब तक कि वैश्विक मंदी की स्पष्ट तस्वीर नहीं मिल जाती।
वर्ष 2022 वैश्विक बाजारों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण साल है। दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों, अमेरिकी फेडरल रिजर्व से लेकर यूरोपीय सेंट्रल बैंक तथा भारतीय रिजर्व बैंक तक ने बढ़ती मुद्रास्फीति से निपटने के लिए ब्याज दरों में वृद्धि की। बॉन्ड बाजार और शेयर बाजार, दोनों को सुधारों का सामना करना पड़ा। ऐसा बहुत कम होता है कि बॉन्ड और स्टॉक, दोनों में एक ही समय गिरावट आए, लेकिन 2022 में ऐसा हुआ। उभरते बाजारों के लिए संकट और ज्यादा था, क्योंकि अमेरिकी डॉलर अन्य मुद्राओं के मुकाबले मजबूत हुआ। भारत जैसे तेल आयात करने वाले देशों को इससे मुद्रास्फीति में तेजी की दोहरी खुराक मिली : पहले तेल की कीमतों में 120 अमेरिकी डॉलर/बैरल तक बढ़ोतरी और फिर अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट। इससे भारत में और अधिक मुद्रास्फीति बढ़ी, जिसके कारण रिजर्व बैंक ने आपातकाल की घोषणा की, और बार-बार ब्याज दर में बढ़ोतरी की। इस बीच, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 100 अरब अमेरिकी डॉलर गिर गया।
कमोडिटी उत्पादकों और कमोडिटी निर्यातकों को छोड़कर उभरती बाजार की मुद्राओं का तेजी से मूल्यह्रास हुआ, इसके साथ कुछ देश कर्ज चुकाने में चूक के कारण डिफॉल्टर होने के कगार पर पहुंच गए। बहुत से देश अब अपने थोड़े से विदेशी मुद्रा भंडार पर भारी कर्ज के बोझ के साथ बैठे हैं। इस परिदृश्य में, विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा धन निकालने के कारण भारत को अन्य उभरते बाजारों के साथ चुनौतियों का सामना करना पड़ा। विदेशी संस्थागत निवेशकों ने अक्तूबर 2021 से जून 2022 के बीच बाजार से लगभग 33 अरब डॉलर निकाले।
भारतीय बाजार भी 2021 में अपने सर्वकालिक उच्च स्तर से गिर गया, पर वैश्विक बाजारों की तुलना में इसने बेहतर प्रदर्शन किया है। और दिसंबर 2022 में भारतीय शेयर बाजारों ने अपने सर्वकालिक उच्च स्तर को फिर से हासिल कर लिया है। लेकिन जहां शेयर बाजार अब तक के उच्चतम स्तर को छू रहे हैं, वहीं अर्थव्यवस्था में मंदी देखी जा रही है। मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में भारत की जीडीपी पहली तिमाही के 13.5 फीसदी के मुकाबले घटकर 6.3 फीसदी रह गई है। यह मोटे तौर पर अपेक्षा के अनुरूप था, आधार प्रभावों के कारण गिरावट आई, जबकि सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि पहली तिमाही के 0.2 फीसदी से क्रमिक रूप से 1.4 फीसदी तिमाहीवार बढ़ी। कमजोर निजी खपत और औद्योगिक क्षेत्र के साथ उच्च निवेश और सेवाओं की भरपाई के साथ अंतर्निहित क्षेत्रीय वृद्धि मिली-जुली है।
भारत का विकास दर चक्र चरम पर है और व्यापक मंदी प्रक्रिया जारी है। हालांकि कम मुद्रास्फीति को आने वाले महीनों में निजी खपत बढ़ाने में मदद करनी चाहिए। सख्त वित्तीय स्थितियों और कमजोर वैश्विक मांग के प्रभाव से निवेश और निर्यात, दोनों पर दबाव पड़ेगा, जबकि महामारी के बाद सेवा क्षेत्र में काफी हद तक पकड़ मजबूत हुई है। अगले वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर मौजूदा वित्त वर्ष के सात फीसदी से घटकर छह फीसदी रह जाएगी। नवंबर में, विदेशी संस्थागत निवेशक फिर से भारतीय बाजारों में शेयर खरीदने लगे, जिससे 36,000 करोड़ रुपये का फंड आया। वैश्विक कारकों के चलते अल्पकालिक अस्थिरता के साथ भारतीय शेयर बाजार में तेजी अभी कुछ समय के लिए रहने वाली है।
बाजारों का बेहतर प्रदर्शन भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए क्या संकेत देता है? सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़े उम्मीद के अनुरूप हैं। महामारी के बाद 'के' आकार की रिकवरी को देखते हुए उम्मीद है कि आने वाली तिमाहियों में जीडीपी विकास की गति में और तेजी से कमी आएगी, क्योंकि ग्रामीण खपत और निजी क्षेत्र में निवेश की कमी के साथ-साथ वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में मंदी के कारण निर्यात वृद्धि कम होने से जीडीपी पर असर पड़ेगा। त्योहार के मौसम में बंपर बिक्री के वास्तविक साक्ष्य के बावजूद खपत में वृद्धि और पुनरुद्धार चिंताजनक रूप से के-आकार का बना हुआ है, ग्रामीण मजदूरी में वृद्धि काफी हद तक कम है, और उपभोक्ताओं की भावना महामारी से पहले के स्तर से नीचे है। नवंबर में ऑटोमोबाइल क्षेत्र में सुस्ती आने वाले महीनों में उपभोक्ता मांग में कमी की ओर इशारा करती है।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार भी चुनौतीपूर्ण समय में प्रवेश कर चुका है, जैसा कि अक्तूबर और नवंबर में निर्यात (और आयात) में गिरावट से स्पष्ट है। सरकारी व्यय भी बहुत मौन और लक्षित रहा है। सख्त मौद्रिक परिदृश्य और वैश्विक आवेगों के कमजोर पड़ने के साथ सख्त राजकोषीय नियंत्रण के वातावरण में अगले वर्ष आर्थिक मंदी जैसी स्थितियां हो सकती हैं। हालांकि वित्त वर्ष 2024 में भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था होगा, लेकिन मौजूदा वित्त वर्ष की तुलना में विकास दर में थोड़ी गिरावट आएगी। विभिन्न आर्थिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए आने वाले दशकों में और अधिक मजबूत विकास की आवश्यकता है, जो फिलहाल चुनौतीपूर्ण लग रहा है। इस साल अधिकांश विकसित अर्थव्यवस्थाएं-यूरोप से ब्रिटेन और अमेरिका तक मंदी की चपेट में रहेंगी, जैसा कि पहले की मंदी में हुआ था। घरेलू खपत आधारित भारतीय अर्थव्यवस्था इन बाहरी झटकों को सह सकती है, लेकिन अंततः ये भारत में भी जीडीपी को धीमा कर देती हैं। इस बार भी ऐसा ही होगा। यदि वैश्विक मंदी हल्की और अल्पकालिक होगी, तो भारत तेजी से वापसी करेगा। लेकिन अगर यह तीव्र और लंबे समय तक चलने वाली मंदी होगी, तो भारत भी इसमें फंस जाएगा।
न केवल निर्यात में गिरावट आने की आशंका है, बल्कि निवेश भी कमजोर रह सकता है। इसके अलावा, घरेलू वित्तीय स्थितियों को सख्त बनाने और कमजोर खपत के बुनियादी सिद्धांतों का भी कॉरपोरेट कमाई पर असर पड़ेगा। भारतीय शेयर बाजार तो बेहतर प्रदर्शन कर रहा है, लेकिन जमीनी स्तर की आर्थिक वास्तविकता वैश्विक परिदृश्य पर निर्भर है, जो कुछ दरारें दिखा रही है। हमें अगले तीन महीने तक सतर्क रहना होगा, जब तक कि वैश्विक मंदी की स्पष्ट तस्वीर नहीं मिल जाती।

सोर्स: अमर उजाला

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