सम्पादकीय

सूखती नदियों की वैश्विक चिंता : एक दूसरे से जुड़े हैं जल, जीवन, जलवायु और जीवाश्म, इनका महत्व समझना ही होगा

Neha Dani
1 Sep 2022 1:35 AM GMT
सूखती नदियों की वैश्विक चिंता : एक दूसरे से जुड़े हैं जल, जीवन, जलवायु और जीवाश्म, इनका महत्व समझना ही होगा
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अब यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या अगले कुछ दशकों में मानव विश्व की नदियों को नष्ट कर देगा।

यूरोप, उत्तरी अमेरिका, मैक्सिको, अफ्रीका व एशिया में अत्याधिक नदियों का सूखना जारी है, जिसकी अक्सर मीडिया में भी चर्चा होती है। यूरोप के कुछ हिस्से पिछले 500 वर्षों के भयंकर सूखे का सामना कर रहे हैं। जर्मनी के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों से बहने वाली राइन नदी यूरोप की दूसरी सबसे बड़ी नदी है। इसमें जलस्तर बहुत नीचे होने से मालवाहक नौकाएं व पोत सामान्य से आधा या चौथाई भार लेकर ही चल रहे हैं।




इससे खाद्यान्नों, कोयला, रसायनों आदि के परिवहन पर भारी असर पड़ा है। परिणामस्वरूप जर्मनी में कारखानों में बंदी जैसी स्थितियां भी हुई हैं। इंग्लैंड में 346 किलोमीटर लंबी टेम्स नदी का स्रोत भी अब सूख रहा है। वैसे इग्लैंड में 13 नदियां लगभग सूख चुकी हैं। इटली की सबसे लंबी पो नदी में सामान्य से बहुत कम पानी है। चीन की 50 हजार नदियों में से आधे से ज्यादा सूखे की स्थिति झेल रहीं हैं।


जर्मनी, इटली, फ्रांस, स्पेन, चीन आदि के कई जलस्रोतों (नदियों, नहरों, जलाशयों) में धूल ही धूल है। नदियों के सूखने से जल परिवहन ,पर्यटन, सिंचाई, पेयजल आपूर्ति के साथ-साथ जल ऊर्जा उत्पादन संयत्र भी प्रभावित हुए हैं। नदी घाटियों की खेती पर भी असर पड़ा है। नदियों में कम पानी और बढ़ते जल तापमान ने मछलियों को बचाने की चिंता भी बढ़ाई है। पानी के अभाव में अनगिनत सदानीरा नदियां मौसमी ही हो गई हैं।

भारत में ही कावेरी करीब 40 प्रतिशत और नर्मदा 60 प्रतिशत तक सूख जाती है। गंगा, यमुना भी कई हिस्सों में लगभग निर्जला हो जाती हैं। नदियों पर आए संकट के लिए मानवीय कारण भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। उन कारणों में से एक नदियों का दोहन है। नदियों के पानी के उपयोग का क्षेत्र हम जितना बढ़ाते जाएंगे, उसी अनुपात में सूखती नदियां भी हमारे लिए चिंताएं भी बढ़ाएंगी।

करीब 40 प्रतिशत किसान सिंचाई के लिए नदियों के जल का उपयोग करते हैं। आज नदियों में इतना पानी भी नहीं रहता है कि वे अपनी पारिस्थितिकीय दायित्वों को भी निभा सकें। मौसम वैज्ञानिक नदियों में पानी की कमी का मुख्य कारण जलवायु बदलाव, अभूतपूर्व गर्मी व सूखा बताते हैं। हालांकि इसके मूल में वे जीवाश्म ईंधन के प्रयोग से कार्बन उत्सर्जन को मानते हैं, जो पृथ्वी का तापमान बढ़ा रहा है।

इससे सूखा और अन्य मौसमी अतिरेक की घटनाएं आगे बढ़ेंगी ही। ग्लेशियर पिघलेंगे, तो समुद्रों का जलस्तर बढ़ जाएगा। सूखी नदियों के आसपास के कुएं व तालाब भी सूखने लगते हैं, जो कुछ हद तक नदियों द्वारा पोषित होते हैं। क्षेत्र का औसत तापमान बढ़ जाता है। भूमिगत जलस्रोत अपने आसपास की नदियों के जल प्रवाह को बढ़ाने में मदद करते हैं, लेकिन भूजल के अत्यधिक दोहन के कारण नदियां भी सूखने लगती हैं।

सहायक नदियों या मुख्य नदी के उद्गम जलस्रोत यदि वनों में हुए, तो वहां जंगलों की कटाई, आग लगने व हरीतिमा की कमी से भी नदियों पर सूखे की मार पड़ती है। सूखी नदियों में पानी लौटाने के प्रयास भी हुए हैं और उनमें सफलता भी मिली है। भारत में भी कुछ वर्षों पहले जालौन (उत्तर प्रदेश) की नोन नदी अतिक्रमणों व पर्यावरणीय कारणों से अस्तित्व के संकट से भीषण गुजर रही थी। किंतु अब वह पंचायतों, आमजन व प्रशासन के सहयोग से पुनर्जीवित हो गई है।

नदियों में प्रदूषण का संकट तो दुनिया भर में है ही, किंतु जब नदियों में प्रदूषण के साथ पानी भी कम होने लगे तो नदियों में प्रदूषकों की सघनता भी बढ़ जाती है। लगभग दस साल से यूरोप, ब्रिटेन, चेक गणतंत्र, स्वीडन, स्पेन अपनी नदियों का प्राकृतिक वैभव लाने का कोशिश कर रहे हैं। हजारों किलोमीटर तक नदियों को ठीक किया गया। बांधों को भी हटाया जा रहा है। इंग्लैंड, अमेरिका में नदियों से बांधों को हटाने की मांग और सरकारी अभियान तेजी से चल रहा है। अब यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या अगले कुछ दशकों में मानव विश्व की नदियों को नष्ट कर देगा।

सोर्स: अमर उजाला

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