सम्पादकीय

वैश्विक चुनौतियां: महामारी और पर्यावरण

Neha Dani
3 Jan 2022 1:40 AM GMT
वैश्विक चुनौतियां: महामारी और पर्यावरण
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इससे दुनिया की अनेक पेचीदा समस्याओं के समाधान में मदद मिलेगी।

वर्ष 2020 और 2021 में विश्व में बहुत अनिश्चय की स्थिति रही, कई स्तरों पर दुख-दर्द बढ़ा। नए वर्ष में दुनिया भर के लोग चाहेंगे कि हम इन चिंताओं को पीछे छोड़ एक बेहतर समय देख पाएं व दीर्घकालीन समाधान पाएं। कोविड महामारी, पर्यावरण संकट और वैश्विक अशांति जैसी बड़ी चुनौतियां नए वर्ष में दुनिया के सामने हैं। परस्पर सहयोग की भावना से ही इन वैश्विक चुनौतियों से निपटा जा सकता है।

दुनिया भर में कोविड महामारी की समस्या ने सबको परेशान कर रखा है। कोविड की दूसरी लहर ने भारत में भी काफी कोहराम मचा दिया था। और अब ओमिक्रॉन वैरिएंट के आने से महामारी की तीसरी लहर की आशंका सिर पर मंडरा रही है। दुनिया के कई अमीर देशों ने कोविड वैक्सीन की जमाखोरी कर रखी है, जबकि कई निर्धन देशों के पास अपने नागरिकों के टीकाकरण के लिए वैक्सीन की भारी कमी है। हालांकि भारत ने दुनिया के कई देशों को कोविड वैक्सीन की आपूर्ति की है। अपने देश में भी बहुत तेजी से टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है।
देश में लगभग 64 फीसदी लोगों को टीके की दोनों खुराक मिल चुकी है और करीब 90 फीसदी लोगों को टीके की पहली खुराक मिल चुकी है। दुनिया के विकसित और अमीर देशों को निर्धन देशों के नागरिकों के लिए टीके की आपूर्ति करनी चाहिए, क्योंकि जब तक एक भी व्यक्ति महामारी से अरक्षित रहेगा, महामारी के बार-बार लौटने की आशंका बनी रहेगी। अगर नागरिक समाज भी कोविड प्रोटोकॉल का पालन करे, भीड़भाड़ से बचे, मास्क लगाए और जरूरत पड़ने पर चिकित्सक से तुरंत सलाह ले, तो उम्मीद करनी चाहिए कि इस वर्ष महामारी से बहुत ज्यादा नुकसान नहीं होगा। परस्पर सहयोग की भावना से एक देश इस संकट से उबरने में दूसरे की मदद कर पाएंगे। इसी तरह जो दुनिया की सबसे बड़ी पर्यावरणीय समस्याएं हैं (जैसे जलवायु बदलाव) उनके लिए विभिन्न देशों को अपने संकीर्ण दृष्टिकोणों से ऊपर उठने की जरूरत है। यह धरती की जीवनदायिनी क्षमता को बचाने का सवाल है। धरती पर विविधतापूर्ण जीवन पनपने के हालात बने रहें, इसके लिए सभी देशों के सहयोग की जरूरत है।
विकास का मौजूदा मॉडल प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन पर निर्भर है। औद्योगिक प्रगति के चलते पर्यावरण का भारी नुकसान हुआ है और कार्बन उत्सर्जन बढ़ा है। अमेरिका और चीन जैसे देश ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। अमीर देशों ने पर्यावरण वार्ता के दौरान वादा किया था कि वे विकासशील और गरीब देशों को ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन घटाने के लिए न केवल धन उपलब्ध कराएंगे, बल्कि इसके लिए आवश्यक तकनीक भी मुहैया कराएंगे। लेकिन अब विकसित देश अपने वादे से मुकर रहे हैं। यदि विश्व बंधुत्व की सोच विकसित होगी, तो इससे इन गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं को सुलझाने में बहुत मदद मिलेगी। इसमें जीवन के सभी रूपों की रक्षा व भावी पीढ़ियों की रक्षा की सोच को भी अवश्य शामिल करना चाहिए। वैमनस्य, संदेह, और मतभेद की गुंजाइश हमेशा रहती है, पर सामान्य हित के मुद्दों को आगे बढ़ाने के लिए वैश्विक सहयोग बढ़ाने व न्याय व समता को ध्यान में रखने की आज बेहद जरूरत है। हमारे देश में सदियों से वसुधैव कुटुम्बकम की धारणा को आदर्श माना जाता रहा है।
इसमें संकीर्णता से ऊपर उठकर पूरे विश्व को अपना मानने व पूरे विश्व की भलाई का उद्देश्य समाहित है। आज विभिन्न देशों में हथियार जमा करने की होड़-सी दिखाई देती है, जो वैश्विक शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा है। इसमें भारत के गांधीवादी आंदोलनों की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। सर्वोदय आंदोलन की 'जय जगत' की सोच इसके बहुत अनुकूल है। विश्व में अमन-शांति के कई आंदोलन व अभियान चल रहे हैं। शांति सुनिश्चित करने में संयुक्त राष्ट्र भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मौजूदा दौर में इस तरह
का प्रयास व्यापक स्तर शुरू करना जरूरी है, इससे दुनिया की अनेक पेचीदा समस्याओं के समाधान में मदद मिलेगी।

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