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- शहरी शिकायतों को मंच...
सुशासन में जन भागीदारी का परचम लिए जनमंच का काफिला फिर निकला और शिकायतों के टीले पर सुस्त सरकारी कार्यसंस्कृति सामने आई। रविवार के जनमंच पर 684 शिकायतें चढ़ीं और निपटारे के आलम में आदेश, निर्देश, सहानुभूति, सहमति तथा कड़क भाषा में मंत्रियों ने अपना गुब्बार भी निकाला। जलशक्ति मंत्री महेंद्र सिंह की लताड़, पंचायत राजमंत्री वीरेंद्र कंवर की तल्ख टिप्पणी और आदेश वाक्यों में तमाम मंत्रियों ने सुनने-सुनाने की प्रक्रिया में तामझाम पूरा कर दिया। देखना यह होगा कि जन मंच आयोजनों की पवित्र धरती पर सुशासन की कितनी कोंपलें फूटीं और लताड़ते मंत्रियों से अधिकारी कितने डर गए। सुशासन के संबोधन और प्रोत्साहन अपनी रूपरेखा बनाते हैं और जनमंच एक मानिटरिंग सिस्टम की तरह पड़ताल करता रहा है, लेकिन क्या यह विश्लेषण हुआ कि किस विभाग की प्रक्रिया में शीर्षासन की जरूरत है। मोटे तौर पर राजस्व विभाग से कहीं अधिक फाइलें सामने आईं और शिकायतों का मानवीय पक्ष ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी ही हार से मुकाबिल रहा। बेशक कई जनमंचों में यह भी साबित हुआ कि राजनीतिक इच्छाशक्ति अगर सामने खड़ी हो, तो प्रशासनिक दृष्टि बदल जाती है। यह दीगर है कि जनमंच मूलरूप से ग्रामीण परिवेश की दिक्कतों का समाधान ढूंढते हुए कार्रवाई करते रहे, लेकिन शहरी जनता का सिरदर्द बनी समस्याओं के लिए भी तो ऐसा कोई मंच चाहिए।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली