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चाणक्य नीति के दूसरे अध्याय के दसवें श्लोक में यह समझाया गया है
चाणक्य नीति के दूसरे अध्याय के दसवें श्लोक में यह समझाया गया है कि समझदार माता-पिता को अपने बच्चों को सद्गुणों से परिपूर्ण करना चाहिए। चाणक्य कहते हैं कि सद्गुण वाला इनसान ही कुल में पूजनीय माना जाता है। बच्चों को बचपन में जैसे संस्कार मिलते हैं, वैसा ही आचरण वे जिंदगी भर करते हंै। सभी माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को ऐसे संस्कार बचपन में दें कि वे विवेकशील बनें। इनसान की प्रथम पाठशाला घर-परिवार होती है। घर-परिवार के संस्कार और माहौल ही बच्चे के अच्छे-बुरे चरित्र का निर्माण करते हैं। बच्चों के दिल-दिमाग में बचपन से ही अच्छे संस्कारों का बीज बोया जाए और उन्हें सत्संग के नीर से सींचा जाए तो वे कभी भी जिंदगी के किसी मोड़ पर पथभ्रष्ट नहीं होंगे।
-राजेश कुमार चौहान, सुजानपुर टीहरा
सोर्स- divyahimachal
Rani Sahu
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