सम्पादकीय

बेटियों को पढ़ने-बढ़ने के भी दें समान अवसर

Rani Sahu
17 Dec 2021 8:42 AM GMT
बेटियों को पढ़ने-बढ़ने के भी दें समान अवसर
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देश में 15 से 18 की उम्र के बीच पढ़ाई छोडऩे को मजबूर बेटियों की बड़ी संख्या है

देश में 15 से 18 की उम्र के बीच पढ़ाई छोडऩे को मजबूर बेटियों की बड़ी संख्या है। समाज में लड़कियों की सुरक्षा को लेकर चिंता व उन्हें बोझ मानने की सोच भी इसकी बड़ी वजह है। सबसे बड़ी जरूरत बालिकाओं को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की है जिसमें उनकी शिक्षा से लेकर रोजगार तक की चिंता करनी होगी। विवाह की उम्र बढ़ाना ही समस्या का समाधान नहीं है। बेटियों को पढऩे और आगे बढ़ने के समान अवसर मुहैया कराए बिना बदलाव संभव नहीं है।

समय के साथ बदलाव की जरूरत हमेशा महसूस की जाती है। इसी जरूरत को ध्यान में रखकर केंद्रीय केबिनेट ने लड़कियों की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। अब सरकार को विवाह से जुड़े मौजूदा कानूनों में संशोधन करना है। सरकार का यह फैसला टास्क फोर्स की उस रिपोर्ट पर आधारित है जिसमें कहा गया था कि पहले बच्चे को जन्म देते समय महिला की उम्र 21 वर्ष से अधिक हो तो महिलाओं और बच्चों पर सेहत की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि आर्थिक और सामाजिक मोर्चे पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। प्रसूताओं और नवजातों में कुपोषण की समस्या को देखते हुए यह अच्छा फैसला ही कहा जाएगा।
कहा यही जा रहा है कि शादी की उम्र बढ़ाने के इस फैसले से बेटियां और सक्षम बनेंगी। खास तौर से पढ़ाई और रोजगार के मामले में उन्हें और बेहतर अवसर मिलेंगे। लड़कियों के विवाह की उम्र बढ़ाने के पीछे दिए जाने वाला यह तर्क भी काफी अहम है कि 18 वर्ष की उम्र में लड़की को शादी और संबंधों को निभाने की ही समझ नहीं होती। ऐसे में मां बनने पर उसकी हालत खास तौर से सेहत के मोर्चे पर और खराब हो जाती है। शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व होने के लिए स्त्री-पुरुष दोनों के लिए ही इक्कीस वर्ष की उम्र को सही माना गया है।
केबिनेट को अब बाल विवाह निषेध अधिनियम समेत दूसरे कानूनों में भी जरूरी संशोधन करने होंगे। लेकिन इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि मां की सेहत से जुड़े सवाल सिर्फ कम उम्र में गर्भ धारण करने पर ही निर्भर नहीं होते, बल्कि गरीबी और भेदभाव भी इसके लिए बहुत हद तक जिम्मेदार कारक हैं। यह भेदभाव शिक्षा और रोजगार तक में दिखता आया है।
यह बात सही है कि पिछले सालों में महिलाओं ने सभी क्षेत्रों में अपनी उपलब्धियों का डंका बजाया है, लेकिन समुचित अवसर मिलने पर ही। हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि बेहतर शिक्षा का स्वास्थ्य से सीधा संबंध है। अभी तो हालत यह है कि देश में 15 से 18 की उम्र के बीच पढ़ाई छोडऩे को मजबूर बेटियों की बड़ी संख्या है। समाज में लड़कियों की सुरक्षा को लेकर चिंता व उन्हें बोझ मानने की सोच भी इसकी बड़ी वजह है। ये ही वे कारण हैं जो कानूनन रोक के बावजूद बाल विवाह को बढ़ावा देते रहे हैं।
ऐसे में सबसे बड़ी जरूरत बालिकाओं को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की है जिसमें उनकी शिक्षा से लेकर रोजगार तक की चिंता करनी होगी। विवाह की उम्र बढ़ाना ही समस्या का समाधान नहीं है। बेटियों को पढऩे और आगे बढऩे के समान अवसर मुहैया कराए बिना बदलाव संभव नहीं है।

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