सम्पादकीय

दो तिहाई लोगों में एंटीबॉडी मिलने से कम हो जाते हैं कोविड के खतरे? सीरो सर्वे से खतरे का अनुमान कितना सही

Rani Sahu
20 July 2021 5:51 PM GMT
दो तिहाई लोगों में एंटीबॉडी मिलने से कम हो जाते हैं कोविड के खतरे? सीरो सर्वे से खतरे का अनुमान कितना सही
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देश के 21 राज्यों में 28 हजार लोगों पर सीरो सर्वे किया गया है

पंकज कुमार। देश के 21 राज्यों में 28 हजार लोगों पर सीरो सर्वे किया गया है, जिसमें दो तिहाई लोगों में एंटीबॉडी पाई गई है. 67.7 फीसदी लोगों में सीरो प्रिवलेंस की वजह से उन्हें सुरक्षित मान लेना सही होगा या कोविड की तीसरी लहर की संभावना को देखते हुए बेहद सजग रहने के आवश्यक्ता है.

सर्वे के सैंपल साइज 28 हजार थे और उसके परिणाम के हिसाब से 67.7 फीसदी लोगों में एंटीबॉडी की मात्रा पाई गई है. जाहिर है इससे ये साफ हो जाता है कि देश के 21 राज्यों में कोरोना से पीड़ित लोगों की वजह से तकरीबन 70 फीसदी लोगों में प्रतिरक्षा तंत्र विकसित हो चुका है. लेकिन एक तिहाई लोग अभी भी कोरोना वायरस से एक्सपोज नहीं हुए हैं, जिन्हें कोरोना संक्रमण का खतरा बना हुआ है.
जाहिर है इसलिए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के डायरेक्टर डॉ बलराम भार्गव ने कोविड अप्रोप्रिएट विहेवियर के पालन पर पूरा जोर दिया है. सर्वे में 85 फीसदी हेल्थ वर्कर्स में एंटीबॉडी की मात्रा पाई गई है. मतलब साफ है कि ऐसे हेल्थ वर्कर्स में एंटीबॉडी की मात्रा मिलने की वजह से कोरोना से पीड़ित होने के खतरे कम हो जाते हैं. डॉ भार्गव ने कहा है कि लोगों को बिना जरूरी यात्रा से बचना चाहिए और जिन्हें वैक्सीन की दो डोज लग चुकी हैं, उन्हें यात्रा पर निकलना चाहिए.
बच्चों का प्रतिशत एंटीबॉडी की मात्रा को लेकर कम
सीरो सर्वे के मुताबिक, 6 से 9 साल के बच्चों में 57.2 फीसदी, 10 से 17 साल के बच्चों में 61.6 फीसदी और 18 से 44 साल के लोगों में तकरीबन 67 फीसदी और 45 से 60 साल के लोगों में 77.6 फीसदी एंटीबॉडी पाई गई हैं. जाहिर है 6 साल से 17 साल के बच्चों में इम्यूनिटी सबसे कम पाया गया है. बच्चों में कोरोना से संक्रमण के खतरे की आशंका कहीं ज्यादा है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है.
सीरो सर्वे से कोविड के खतरे का अनुमान लगाया जा सकता है?
ICMR द्वारा ये चौथा सीरो सर्वे कराया गया है. इसके पहले तीन सर्वे हो चुका है, जिसमें बड़े शहर दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु में कोविड से ग्रसित लोगों की तादाद अच्छी आई थी. पहली लहर के बाद एम्स के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया समेत कई हेल्थ एक्सपर्टस ने सीरो सर्वे को लेकर कहा था कि पहली लहर के बाद कोविड की संभावना कम होगी, लेकिन दूसरी लहर में कोरोना का कहर इन शहरों में पहली लहर की तुलना में कहीं ज्यादा दिखाई पड़ा.
नोएडा में कार्यरत फीजिशियन डॉ अमित कहते हैं कि पिछली दो लहर में वायरस के अलग-अलग वेरिएंट सामने आए हैं. इसलिए तीसरी लहर में स्थितियों की भविष्यवाणी करना आसान नहीं होगा. जाहिर है, एक्सपर्टस में भी कोरोना की तीसरी लहर की घातकता को लेकर अलग-अलग राय है. कई एक्सपर्टस मानते हैं कि दूसरी लहर के बाद कोरोना का मैग्निट्यूड तीसरी लहर में बड़ा नहीं रहने वाला है.
तीसरी लहर से बचने के लिए लोगों का व्यवहार अहम
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी कहा है कि दुनिया में तीसरी लहर की शुरुआत हो चुकी है और भारत इसके मुहाने पर खड़ा है. भारत में दूसरी लहर के दरम्यान डेल्टा वेरिएंट का कहर महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक जैसे राज्यों में देखा गया था. WHO के मुताबिक, डेल्टा वेरिएंट की संक्रमण रफ्तार कहीं ज्यादा है, इसलिए भारत को तीसरी लहर की चपेट से बचने के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत है. 47 जिलों में पॉजिटिविटी रेट अभी भी 10 फीसदी से ज्यादा है. ऐसे में तीसरी लहर की कहर से बचना भारत के लिए बड़ी चुनौती है.
हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ हेमंत कहते हैं कि 67.7 फीसदी लोगों में एंटीबॉडी मिलने से सुरक्षा की संभावना बढ़ जाती है लेकिन वो दोबारा संक्रमित नहीं होंगे, इसकी पूरी गारंटी उनके व्यवहार और एंटीबॉडी की मात्रा कितने समय तक उनके शरीर में बना रहता है इस पर निर्भर करता है.


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