सम्पादकीय

सबका मिले साथ

Subhi
7 Dec 2022 4:08 AM GMT
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जी-20 जैसे प्रभावशाली समूह की अध्यक्षता का एक साल का कार्यकाल शुरू होते ही जिस तरह से केंद्र सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाकर इसकी सफलता के लिए सभी दलों का सहयोग मांगा, वह उस लोकतांत्रिक भावना की सहज अभिव्यक्ति है जिसकी पिछले कुछ समय से कमी महसूस की जाने लगी थी। मगर सरकार की इस सामयिक पहल ने इस बात को लेकर आश्वस्त किया है

नवभारत टाइम्स: जी-20 जैसे प्रभावशाली समूह की अध्यक्षता का एक साल का कार्यकाल शुरू होते ही जिस तरह से केंद्र सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाकर इसकी सफलता के लिए सभी दलों का सहयोग मांगा, वह उस लोकतांत्रिक भावना की सहज अभिव्यक्ति है जिसकी पिछले कुछ समय से कमी महसूस की जाने लगी थी। मगर सरकार की इस सामयिक पहल ने इस बात को लेकर आश्वस्त किया है कि भले चुनावी राजनीति की विवशताएं कभी-कभार देश के अंदर का राजनीतिक तापमान अप्रत्याशित रूप से बढ़ा देती हैं, लेकिन भारतीय लोकतंत्र मौका आने पर इनसे ऊपर उठने का माद्दा रखता है। प्रधानमंत्री ने बैठक में इस तथ्य को प्रभावशाली ढंग से रेखांकित किया कि यह किसी पार्टी या खास सरकार की बात नहीं है, बल्कि पूरे देश के लिए ऐसा अवसर है, जिसका उपयुक्त इस्तेमाल दुनिया में उसका मान बढ़ा सकता है। अच्छी बात यह रही कि बैठक में शामिल तमाम दलों के नेताओं ने भी अवसर के अनुरूप और इसी भावना के तहत विचार व्यक्त किए। यहां तक कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बैठक के लिए दिल्ली रवाना होने से पहले कोलकाता में पत्रकारों से बातचीत करते हुए भले ही जी-20 के लोगो में कमल फूल का निशान शामिल करने के फैसले पर आपत्ति जताई, लेकिन बैठक में इस मुद्दे को उठाने से परहेज किया क्योंकि उनके मुताबिक ऐसा करने से दुनिया में भारत के बारे में संदेश अच्छा नहीं जाएगा।

कहने की जरूरत नहीं कि सर्वदलीय बैठक में दिखी राजनीतिक एकजुटता भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है, जो अब तक तमाम ऐसे मौकों पर नजर आती रही है। हालांकि इससे पहले भी भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन की बैठक और राष्ट्रमंडल देशों की शिखर बैठक आयोजित की है, लेकिन यह अध्यक्षता ऐसे समय मिल रही है जब दुनिया के कई देश आर्थिक संकट और यूक्रेन युद्ध की दोहरी चुनौतियों से उपजी कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। ऐसे में जी-20 के अध्यक्ष के तौर पर अगले एक साल में भारत दुनिया को इस नाजुक दौर से निकलने में निर्णायक मदद कर सकता है। यही नहीं, अगला एक साल खुद भारत के लिए भी अपनी विशिष्टताओं से दुनिया को परिचित कराने और पर्यटन को बढ़ावा देने का एक बेहतरीन मौका है। बेशक भारत यह मौका डिजर्व करता है और वह इसका समुचित इस्तेमाल करने का सामर्थ्य भी रखता है। लेकिन ऐसा सचमुच संभव हो सके, इसके लिए सिर्फ सांकेतिक कदम काफी नहीं होंगे। जरूरी है कि सोमवार को हुई राजनीतिक बैठक में जिस तरह का जज्बा सभी पक्षों ने दिखाया, वह आगे भी उनके व्यवहार में दिखता रहे। जहां सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस मौके पर सिर्फ मौजूदा सरकार की उपलब्धियों को रेखांकित करने के बजाय पिछले 75 वर्षों की गौरवपूर्ण यात्रा को समग्रता के साथ पेश किया जाए, वहीं विपक्षी दलों को भी अपनी आलोचना की तीव्रता और उसके दायरे को लेकर खास सतर्क रहना होगा।


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