सम्पादकीय

नौकरियां हों तो मिलें!

Triveni
5 July 2021 4:31 AM GMT
नौकरियां हों तो मिलें!
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दिल्ली सरकार ने पिछले साल कोरोना महामारी की पहली लहर आने के बाद नौकरी ढूंढन वालों और रोजगार देने वालों को जोड़ने के लिए रोजगार बाजार पोर्टल शुरू किया था।

दिल्ली सरकार ने पिछले साल कोरोना महामारी की पहली लहर आने के बाद नौकरी ढूंढन वालों और रोजगार देने वालों को जोड़ने के लिए रोजगार बाजार पोर्टल शुरू किया था। रोजगार ढूंढ रहे व्यक्ति इस पोर्टल पर अपना पंजीकरण कर सकते हैं। वहीं रोजगार देने वाले उद्यमी भी अपने यहां मौजूद अवसरों की जानकारी इस पोर्टल पर डालते हैं। पिछले महीने इस पोर्टल पर 34 हजार से ज्यादा लोगों ने नौकरी की तलाश में अपने प्रोफाइल पोस्ट किए। दूसरी तरफ नियोक्ताओं की तरफ लगभग साढ़े नौ हजार नौकरियों के अवसर की सूचना दी गई। तो जो खाई है, वह स्पष्ट है। अगर इन आंकड़ों को एक सैंपल मानें, तो इसका मतलब है कि जितने लोग रोजगार ढूंढ रहे हैं, उससे एक तिहाई से भी कम अवसर बाजार में मौजूद हैं। ये आंकड़े हाल में रोजगार के मोर्चे पर गहराते संकट के बारे में आई तमाम भरोसेमंद रिपोर्टों की पुष्टि करते हैं। चूंकि अब सरकारी आंकड़े समय पर नहीं आते, असहज आंकड़ों को सरकार दबा देती है, और आंकड़े जब कभी जारी किए जाते हैं, तो उनके पीछे मकसद सच बताना नहीं, बल्कि सुर्खियां मैनेज करना होता है, इसलिए असली सूरत जानने का एकमात्र जरिया गैर-सरकारी संस्थानों की रिपोर्टें हैं।

मसलन, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) हाल के वर्षों में अपने बारीक काम के कारण ऐसी सबसे विश्वसनीय एजेंसी के रूप में सामने आई है। उसके ताजा आंकड़ों के मुताबिक जून के अंत तक भारत में वेतनभोगी और गैर-वेतनभोगी नौकरियों में कार्यरत लोगों की संख्या जून में मई की तुलना में बढ़ी। मई में देश में 37.5 करोड़ लोग कार्यरत थे। जून में ये संख्या बढ़ कर 38.32 करोड़ हो गई। लेकिन यह रोजगार के अवसर बढ़ने का संकेत नहीं है। इन आंकड़ों से सिर्फ यह पता चलता है कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर के कारण जिंदगी के अस्त-व्यस्त होने के बाद जून में बहुत से कामकाज फिर से शुरू हुए। जबकि असल में भारत में बेरोजगारी की दर अब भी एक गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है। दूसरी लहर के चलते मई में बेरोजगारी की दर 11.9 फीसदी थी। उसके अप्रैल में यह 7.97 फीसदी थी। जून में बेरोजगारी की दर गिरकर 9.17 फीसदी रही। जाहिर है, जून में अप्रैल जितनी हालत भी बहाल नहीं हुई। जबकि अप्रैल के आंकड़े गुजरे वर्षों की तुलना में एक खराब सूरत पेश कर रहे थे।


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