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दुनिया के नेता उनसे से सीखें कि कैसे नेतृत्व नीरस न बने
रुचिर शर्मा । इस पर काफी लिखा गया कि कैसे एंजेेला मर्केल बिस्मार्क के बाद सबसे ज्यादा वक्त तक सेवा देने वाली जर्मन नेता बनने वाली हैं, लेकिन उनकी उपलब्धि इससे कहीं ज्यादा है। नए साल में उन्हें पद पर 16 वर्ष हो जाएंगे। स्वीडन के टेज अर्लैंडर को छोड़कर यह 19वीं सदी के बाद से आधुनिक लोकतंत्रों में सबसे लंबा कार्यकाल है। मर्केल ने सत्ता के उस सामान्य विकास को चुनौती दी है, जो कहता है कि कार्यकाल के कई वर्षों में नेता नीरस, थकाऊ हो जाते हैं और इसी के साथ चले जाते हैं।
जो टिके रहते हैं वे समय के साथ अहंकारी हो जाते हैं और घोटाले में फंसते हैं या घटनाक्रमों का शिकार हो जाते हैं। पहला दशक पूरा होने से पहले ही ज्यादातर गति व समर्थन खो देते हैं। अगर 19वीं सदी में पीछे जाकर 20 बड़े आधुनिक लोकतंत्र देखें (जीडीपी के आधार पर) तो केवल 31 नेता ही 10 वर्ष से ज्यादा चले हैं। उनमें से कई बड़े नेता 'नीरस नेता सिंड्रोम' का शिकार होते रहे। फ्रैंकलिन रूजवेल्ट की यूरोप में सहयोगी देशों की जीत से पहले ही मृत्यु हो गई।
उन्हें युद्ध नायक माना गया लेकिन आलोचकों ने उन्हें खतरनाक समाजवादी बताया। यहां तक कि रूजवेल्ट के बाद से 14 अमेरिकी राष्ट्रपतियों में 11 की अप्रूवल (पसंद) रेटिंग उनके प्रशासनों के दौरान घट गई। मार्गरेट थेचर व टोनी ब्लेयर ब्रिटेन में कई कार्यकाल में रहे, लेकिन जब पद छोड़ा तो उनकी अप्रूवल रेटिंग 25 प्रतिशत से भी कम रही। मर्केल से पहले जर्मनी इसका और स्पष्ट उदाहरण था कि कैसे नेता अपने स्वागत को खत्म कर लेते हैं।
'आर्थिक चमत्कार' के बल पर आने वाले कोनराड एडेनॉयर को 'स्पीगल अफेयर' में सत्ता के दुरुपयोग के कारण 14 साल बाद बाहर होना पड़ा। 'जर्मन पुन: एकीकरण' में योगदान देने वाले हेल्मुट कोल ने अभूतपूर्व पांचवां कार्यकाल चाहा, पर हारे। राल्फ वाल्डो इमर्सन ने लिखा, अंतत: हर नायक से लोग बोर हो जाते हैं। यह प्रवृत्ति विकासशील देशों में और अधिक दिखती है। सुहार्तो और महाथीर को क्रमश: इंडोनेशिया और मलेशिया में विकास का पितामह माना गया।
दोनों दशकों सत्ता में रहे लेकिन विरोध प्रदर्शनों और अपनों को फायदा पहुंचाने के आरोपों के बीच पद छोड़ने पड़े। 20वीं सदी के महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारकों में से एक, देंग शियाओपिंग को 10 वर्ष सत्ता में रहने के बाद प्रदर्शनों के कारण पद छोड़ना पड़ा। कई शासकों को उनकी मृत्यु के बाद लोकप्रियता मिलती है, जब उनके राष्ट्र नए नायक की तलाश में होते हैं। जर्मनी की सबसे लोकप्रिय राजनेता, मर्केल ने मुश्किल दौर में इस सांचे को तोड़ा। राजनीति लगातार ध्रुवीकृत हो रही है।
महामारी सभी बड़े लोकतंत्रों में नेताओं के समर्थन को कम कर रही है। मर्केल एकमात्र ऐसी नेता हैं, जिसकी अप्रूवल रेटिंग 50% से ज्यादा है। मर्केल को बदनाम करने के बजाय, मुख्य विपक्षी नेता उनके सच्चे उत्तराधिकारी के रूप में लड़कर जीते हैं। मर्केल के नाम पर कोई घोटाला नहीं है। 2015 में शरणार्थियों के लिए जर्मन दरवाजे खोलने का सबसे विवादास्पद कदम उनका सबसे साहसिक सुधार था। वे जर्मनी को ब्रिटेन और फ्रांस में अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में कहीं अधिक समृद्ध छोड़ेंगी।
मर्केल के खिलाफ लगातार कहा जाता रहा कि वे शुरू से ही बोरियत से भरीं डरपोक सुधारक थीं जिसने ऊर्जा आपूर्ति से लेकर डिजिटल प्रतिस्पर्धा तक कई काम लंबित छोड़ दिए। लेकिन नीति में चूक के दोषों को उन मानवीय प्रवृत्तियों पर हावी नहीं होना चाहिए, जिनसे वे घमंड, लालच, आलस्य से ऊपर उठीं। सत्ता भ्रष्ट करती है और समय मिटाता है, लेकिन मर्केल पर इनका प्रभाव नहीं पड़ा। एक सदी से अधिक पीछे जाएं, तो भी ऐसा बड़ा नेता मिलना दुर्लभ है, जिसने इतने लंबे समय तक शासन किया हो, लेकिन इतने सम्मान के साथ बाहर गया हो।
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