सम्पादकीय

असल रईस इंसानियत, अच्छे व्यवहार का प्रदर्शन करते हैं और दिखावा करने के बजाय दूसरों की फिक्र करते हैं

Gulabi
18 Feb 2022 8:09 AM GMT
असल रईस इंसानियत, अच्छे व्यवहार का प्रदर्शन करते हैं और दिखावा करने के बजाय दूसरों की फिक्र करते हैं
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इस बुधवार को मैं दिल्ली जा रहा था। एयरपोर्ट पहुंचने के बाद पता चला कि फ्लाइट दो घंटे लेट है
एन. रघुरामन का कॉलम:
इस बुधवार को मैं दिल्ली जा रहा था। एयरपोर्ट पहुंचने के बाद पता चला कि फ्लाइट दो घंटे लेट है। मैंने सोचा कि खाली वक्त में कुछ कर लिया जाए और मैं लैपटॉप पर काम करने के लिए बिजनेस लाउंज में चला गया। वहां बॉलीवुड अभिनेता रजा मुराद भी बैठे थे। हमने एक-दूसरे से दुआ-सलाम की और एक मिनट बात की, उन्होंने बताया कि वह चंडीगढ़ के रास्ते पटियाला जा रहे हैं।
वो जगह शांत थी और अन्य बिजनेस क्लास यात्रियों की तरह हम दोनों भी अपने काम में लग गए। मेरा काम में मन लगा ही था कि एक टीवी सीरियल अभिनेत्री अपने 10 साल के बेटे के साथ वहां आईं। उनका बेटा इतना शोर कर रहा था कि वहां कोई भी काम में मन नहीं लगा पा रहा था। और मां के चेहरे पर बेटे के इस बर्ताव को लेकर जरा भी शिकन नहीं थी।
वह सिर्फ उन आंखों को देखकर ही संतुष्ट थी जो चुपचाप बयां कर रहीं थी कि 'अरे, मैंने तो तुम्हें टीवी सीरियल में देखा है।' इत्तिफाकन, एक और टीवी एक्टर भी फोन पर बात करते हुए वहां आया। चूंकि उसके कान में आइपॉड लगे थे, इसलिए वह काफी जोर से बात कर रहा था और पूरा लाउंज उसके अगले हफ्ते की शूटिंग का शेड्यूल सुन रहा था।
लाउंज मैनेजर वहां आया और उसके कंधे को स्पर्श करते हुए उससे इशारों में आवाज धीमी करने का आग्रह किया। और फिर तो उस एक्टर ने आपा खो दिया। उसने आइपॉड निकाला और मैनेजर पर चिल्लाने लगा। 'तुम अपने बारे में क्या सोचते हो? मुझे छूने की हिम्मत कैसे हुई। तुम्हें पता नहीं मैं कौन हूं' और जब तक मैनेजर ने माफी नहीं मांग ली, वह भड़कता रहा, जबकि मैनेजर का इरादा दूसरों की खातिर लाउंज में शांति रखना था, और उसने जो किया वो किसी भी कीमत पर गलत नहीं था।
अगले दिन जब मैं दिल्ली से राजस्थान के अलवर जा रहा था, तो देखा कि दिल्ली के अधिकांश कार वाले अकारण ही हॉर्न बजाते रहते हैं। ये ऐसा शहर है, जहां हर कोई ताकतवर, पहुंच वाला और जल्दबाजी में रहता है। अगर मेरा यकीन नहीं, तो गुड़गांव टोल प्लाजा के पास जाकर खड़े हों। आपके कान पांच मिनट में ही दर्द करने लगेंगे।
इसने मुझे मेरी हालिया मॉरिशस यात्रा की याद दिला दी, जिसमें मैंने देखा कि एक हॉलीवुड एक्टर इस बात का खास खयाल रखते हैं कि उनके बच्चे उसी विमान की इकोनॉमी क्लास में सफर करें, जिसमें वह बिजनेस क्लास में सफर करते हैं। उन्होंने नाम जाहिर ना करने का आग्रह किया था। बच्चों को दूसरी क्लास में सफर कराने का कारण मैंने पूछा, तो उन्होंने बताया कि 'जहां मैं हूं वहां पहुंचने के लिए मैंने कड़ी मेहनत की है।
यात्रा में खलल मुझे पसंद नही। बिजनेस क्लास में बाकी यात्री भी आराम चाहते हैं। चूंकि मेरे बच्चे शैतान और शोर करते हैं, इसलिए मैं उन्हें दूसरी क्लास में बैठाता हूं। इसके अलावा मैं उन्हें सिर्फ इसलिए विशिष्ट महसूस नहीं कराना चाहता कि वे एक एक्टर के बच्चे हैं।' इसी तरह का आचरण मैंने असल रईसों जैसे अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार व सुनील शेट्‌टी के साथ भी देखा है।
एक बार मेरी कार पोर्च में खड़ी थी और मैं उसमें कुछ सामान रख रहा था, जिसमें कुछ वक्त लगा होगा। मेरे पीछे खड़ी कार अमिताभ खुद चला रहे थे। जब मैंने अपनी कार हटाने की पेशकश की, तो उन्होंने न सिर्फ ये कहा कि 'आप अपना वक्त लें', बल्कि बिना हॉर्न दिए शांति से इंतजार करते रहे।
एक बार लंदन एयरपोर्ट पर सुनील शेट्‌टी ने मेरी पत्नी का भारी बैग उठाया, जब उन्होंने देखा कि बैग ले जाने में पत्नी परेशान हो रही थीं। मैंने जितने भी लोग देखे, उनमें अक्षय सबसे विनम्र हैं, अमिताभ से भी ज्यादा। पब्लिक प्लेस पर भी अनजान की मदद में हमेशा तत्पर रहते हैं।
फंडा यह है कि असल रईस इंसानियत, अच्छे व्यवहार का प्रदर्शन करते हैं और पैसों का दिखावा करने के बजाय दूसरों की फिक्र करते हैं।
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