सम्पादकीय

सेनापति नहीं फौजी संस्थान थे जनरल बिपिन रावत

Gulabi
11 Dec 2021 6:16 AM GMT
सेनापति नहीं फौजी संस्थान थे जनरल बिपिन रावत
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जनरल बिपिन रावत को दिया गया सम्मान किसी की निजी संपत्ति या बपौती नहीं थी. वो सम्मान इंसानी दुनिया में एक फौजी का सम्मान था
संजीव चौहान.
हिंदुस्तानी हुकूमत ने जनरल बिपिन रावत (CDS General Bipin Rawat) को उनकी दिलेरी और तीव्र बुद्धि के बलबूते ही भारत की तीन-तीन फौज का अकेला और पहला 'सेनापति' बनाया था. वे जिस ओहदे के काबिल थे वो सब उन्हें हिंदुस्तान की ओर से नवाजा गया. किसी अहसान के बतौर नहीं सम्मान की खातिर. सम्मान एक बहादुर सिपाही का था. वो सम्मान हिंदुस्तानी जनमानस, हिंदुस्तान और हिंदुस्तानी हुकूमत का भी सम्मान था. जनरल बिपिन रावत को दिया गया सम्मान किसी की निजी संपत्ति या बपौती नहीं थी. वो सम्मान इंसानी दुनिया में एक फौजी का सम्मान था.
भारतीय थल सेना (Indian Army) जैसी फौलादी कुव्वत रखने वाली फौज के एक बेहद खास अंग की 'सरदारी' करने के बाद. पूर्व फौजी पिता लक्ष्मण सिंह रावत और मां सुशीला देवी का यह बहादुर 'लाल' सेनाध्यक्ष के पद से रिटायर हो गया. करीबी पारिवारिक-सामाजिक लोग हों या फिर इस जांबांज के करीब रहने वाले हिंदुस्तानी फौज से जुड़े विश्वासपात्र महारथी-साथी, समकक्ष हम प्याला हम निवाला. जनरल साहब को (बिपिन रावत को) 'बीरा' (Beera Bipin Rawat) ही बुलाते थे. हिंदुस्तानी फौज के इस महाबली को अपनों के मुंह से "बीरा" बोले जाते देखकर और सुनकर अनजानों का भी सीना गर्व से चौड़ा हो जाता था.
बहादुरों की भीड़ से अलग था 'बीरा'
दरअसल "बीरा" था ही बहादुरों की भीड़ में से भी एकदम अलग नजरिए की सोच वाला रणबांकुरा शख्स. जिसके सम्मान में हिंदुस्तानी हुक्मरानों ने Chief of Defence Staff (रक्षा प्रमुख या चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ सीडीएस) जैसे ओहदे को सृजित करने में जरा भी देर नहीं की. मतलब बीते कल के उत्तराखण्ड राज्य के एक छोटे से गांव सैण, जिला पौढ़ी गढवाल के बालक को उसकी काबिलियत के मुताबिक जब ताकतें सौंपी तो, चाणक्य से इस चतुर रणनीतिकार को रातों-रात भारतीय सशस्‍त्र सेनाओं के पेशेवर सर्वोच्च त्रि-सेवा प्रमुख और भारत सरकार के वरिष्ठतम वर्दीधारी सैन्य सलाहकार के सिंहासन पर बैठा दिया. सम्मान के बतौर न कि अहसान के तले दबकर या अहसान तले दबाने की सोचकर.
बिरलों में भी तलाशने होते हैं ऐसे 'सेनापति'
जल,जमीं और आसमां यानि जल, थल और नभ के ऐसे पहले जबर भारतीय "सेनापति" बिपिन रावत यानी बीरा की सरदारी को आज आखिरी "जयहिंद", सलाम और सैल्यूट तो करना बनता ही है. न सिर्फ हिंदुस्तानियों की तरफ से वरन् तमाम इंसानी दुनिया की ओर से भी. इसलिए क्योंकि इंसानों की इस दुनिया में भीड़ तो बहुत है मगर किसी देश की फौज या सेना को 'बीरा' से निडर-बहादुर जबर 'सेनापति' अमूमन नहीं मिला करते हैं. और शायद ही जमाने में अब से पहले कभी दुनिया के किसी देश की फौज और फौजी को नसीब हुई हो बीरा से सरदार की सरदारी किसी मोर्चे पर. यह बीरा ही था जो आज उसके सम्मान में न केवल हिंदुस्तान बिलख-बिलबिला रहा है.
वे भी हमारे सेनापति को सैल्यूट करते होंगे
वरन् दुनिया भर में अपनी मांदों में मुंह छिपाए बैठे आज हिंदुस्तान के दुश्मन भी बीरा की बहादुरी और फिर उसके बाद उसकी इस शहादत को आखिरी सलाम जरूर ठोंक चुके होंगे. अगर उनमें बीरा से बहादुरों की बहादुरी मापने की जरा भी कुव्वत आज बाकी बची होगी तो. हिंदुस्तानी सेना के तीनों अंगों की एक संग 'सरदारी' करने वाला बेखौफ सेनापति बीरा (Bira Bipin Rawat) हिंदुस्तान सहित दुनिया भर की फौजों की आने वाली पीढ़ियों को न सिर्फ जनरल होगा. न ही केवल चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ. बहादुर बीरा फौजों की आने वाली पीढ़ियों के लिए एक 'फौजी ग्रंथ' होगा. वो ग्रंथ जिसकी बहादुरी का इतिहास पढ़ने भर से फौजी सिपाहियों के बदन के रोंगटे खड़े हो जाया करेंगे.
वो आवाज जो दुश्मन को बहरा कर देती
सच है कि हिंदुस्तान हिंदुस्तानी फौज ने एक गजब का 'सेनापति' खो दिया है. उसकी सीख, उसकी बनाई-बताईं रणनीतियों को तो मगर आने वाली सदियां भी कभी मिटाने की कुव्वत खुद में पैदा नहीं कर सकेंगी. इसमें भी कोई शक नहीं है. हिंदुस्तानी फौज के यह वही नामचीन बीरा बिपिन रावत थे जिनकी आवाज से हिंदुस्तान के धुर-विरोधी पाकिस्तान और चीन के हलक सूख जाते थे. जुबान तालू से चिपक जाती थी. जिस बीरा की आवाज से इन दोनो ही हिंदुस्तान के दुश्मन मुल्कों के हुक्मरानों के कान बहरे हो जाते थे. हिंदुस्तानी सेना का यह वही बेखौफ सेनापति बीरा यानी बिपिन रावत थे जिससे, आंख मिलाने की हिमाकत करने की बात तो बहुत बाद की रही. सामने पड़ने से ही दुश्मन कन्नी काटते थे.
एक सेनापति के सिर सौ-सौ जिम्मेदारियां
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का पद संभालने के बाद जनरल बिपिन रावत के पास बेशुमार जिम्मेदारियां बढ़ चुकी थीं. परमाणु कमांड अथाॅरिटी में पहली बार सैन्य सलाहकार के रूप में भी बिपिन रावत को ओहदा हासिल हुआ था. तीनों सेनाओं की एयर, स्पेस, साइबर और मरीन कमांड की पहल उनका 'ब्रेन चाइल्ड' था. इसमें भी कोई शक वाली बात नही हैं. वे सेना में कम्युनिकेशन, ट्रेनिंग, लॉजिस्टिक्स, ट्रांसपोर्ट जैसी महत्वपूर्ण विंग्स के भी समन्वय-सामंजस्य कायम कराने में भी दिन रात जुटे हुए थे. जल, थल और वायु यानी तीनों सेनाओं के लिए बजट बनाने के को अंतिम रूप देने पर भी वे ही काम करने में दिन-रात जुटे हुए थे. इन सब पर अब आईंदा क्या और कैसे होगा? सब कुछ भविष्य पर छोड़ देने में ही शायद बेहतरी होगी. इन तमाम बिंदुओं पर नजर डालने से आज महसूस होता है कि मानो, हिंदुस्तान ने या किसी देश की फौज ने न सिर्फ एक गजब का रणनीतिकार सेनापति खोया है.
सेनापति नहीं 'फौजी संस्थान' खो दिया है
अपितु दुनिया ने एक बेहद कामयाब "फौजी-प्रतिष्ठान" ही मानो गंवा दिया हो. क्रूर वक्त और अकाल मौत के पंजों में घिरवाकर. जमाने को याद रखना होगा कि दुश्मन में खौफ का पहला नाम रहे यह वही भारतीय सेना के सरदार बीरा थे. जिनकी एक सलाह पर चलकर हिंदुस्तानी हुकूमत ने सन् 2016 में भारतीय फौज के तीनों अंगों को दे दी थी खुली छूट. जिसका नतीजा यह हुआ कि हिंदुस्तानी फौज के चाणक्य कहे जाने वाले इसी एक अदद बीरा की रणनीति के बलबूते, हिंदुस्तानी फौजों ने पाकिस्तान की गोद में पल-बढ़ रहे आतंकवादियों को 'सर्जिकल स्ट्राइक' के दौरान नींद से जागने से पहले ही हमेशा हमेशा के लिए मौत की नींद में सुला दिया था. दुश्मन के घर में घुसकर आतंकवादियों के सीनों-सिरों को रौंद डाला था इसी सेनापति की अगुवाई वाले हिंदुस्तानी फौजियों ने. हिंदुस्तानी फौज के ऐसे बेहतरीन गजब के रणनीतिकार जनरल सीडीएस बिपिन रावत की विदाई पर बीते कल में उनसे मार खाये बैठा पाकिस्तान भी आज बहुत कुछ सोचने को मजबूर हो गया होगा.
दुश्मन की मांद में झांकने का शौकीन 'सरदार'
हिंदुस्तानी फौज का यह वही जबर सरदार सेनापति था जिसे हमेशा दुश्मन की मांद में झांकने का शौक था. यह सोचकर कि दुश्मन को दुश्मन की ही मांद में अगर घेर लिया जाए, तो भला अपनी सीमाओं की रखवाली की चिंता ही क्यों रहेगी? हिंदुस्तान के ऐसे बहादुर पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत की यही वो सोच थी जो हिंदुस्तान के धुर-विरोधी चीन और पाकिस्तान की फौज व उसके हुक्मरानों को उनके अपने घर में भी चैन से नहीं सोने देती थी. बात एक दिन की नहीं थी. सवाल कई साल का था. ऐसे में हिंदुस्तानी सेना के इस बहादुर सरदार के खौफ के साये में जीना चीन और पाकिस्तान दोनो की मजबूरी बन चुका था. भारतीय फौज के ऐसे अव्वल दर्जे के तजुर्बेकार निर्विवाद सेनापति की दुश्मन की सीमा पर पहुंचने की बात छोड़िए. हिंदुस्तान की सीमा के अंदर दिया गया उसका एक अदद बयान ही, मीलों दूर मौजूद चीन-पाकिस्तान का चैन हराम करने के लिए काफी था.
तोप-बंदूकें कुछ नहीं बिगाड़ सकीं
ऐसे बेखौफ सपूत का सीमाओं पर तमाम विपदाओं में फंसने के दौरान तोप के गोले, पैटन टैंक, हवा की गति से छाती की ओर बढ़ती गोलियां कभी बाल बांका नहीं कर सकीं. बेरहम वक्त ने मगर जब दगा दिया तो ऐसे बहादुर कमांडर बीरा को दबे पांव पहुंची दुश्मन मौत ने. 8 दिसंबर 2021 की तमिलनाडू के कुन्नूर नीलिगिरी के बियाबान जंगलों में धोखे से घेर लिया. अपने बीरा के ऐसे दुखद अंत पर आज बिलखती उसकी निरीह सी 'बहादुरी' भी निर्दयी वक्त और दगाबाज मौत से पूछ रही होगी कि तुमने, चंद लम्हें तो संभलने के लिए बख्श दिए होते. तो कल का वो बहादुर सेनापति उस बियाबान जंगल में भी बेरहम मौत तुझे हर हाल में हराकर ही वीरान जंगलों से बाहर जमाने की भीड़ में कदम रखता. एक जीते हुए जाबांज की तरह. वक्त की बेरहम घड़ियां अगर उस दिन चूक गयीं होतीं तो भारत की तीनों सेनाओं का वो बहादुर सपूत एक बार फिर मौत के जबड़े को चीरकर बच आया होता. मगर नहीं वही होता है जो विधि का विधान होता है.
पीठ दिखाना उनकी फितरत में नहीं था
भारत का बीरा बहादुर था. बहादुरों की तरह ही मौत से जूझता और दो-दो हाथ करता हुआ गया. उम्मीद ही नहीं अटल विश्वास है जमाने को कि हमारी सेना का यह बहादुर सरदार मौत को आखिरी वक्त तक छकाने के लिए ही जूझा जरुर होगा. क्योंकि पीठ दिखाना तो उसे कभी उसके फौजी पिता लक्ष्मण सिंह रावत के खून और शिक्षिका मां सुशीला देवी की कोख ने ही नहीं सिखाया था. अगर पीठ दिखाना सीखा होता तो फिर एक सेना का सेनापति रह चुका बीरा सोचिए भला देश की सेनाओं के तीनों अंगों का 'पिता' तुल्य पालनहार यानी चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ भला कैसे और किस बलबूते पर बना होता? हिंदुस्तान और हिंदुस्तानी फौज के ऐसे बहादुर रणबांकुरे को आखिरी 'सैल्यूट' या अंतिम 'जयहिंद' पेश करने की इन घड़ियों में हम कैसे भूल सकते हैं, पति के साथ ही अंतिम सफर पर निकलीं जनरल बिपिन रावत की अर्धांगिनी मधुलिका राजे सिंह रावत (Madhulika Raje Singh Rawal) को.
कसम की खातिर जिंदगी होम कर दी
जिन्होंने हर कसम हर वायदा निभाने में अपनी जिंदगी होम कर दी. जो जीवन की शुरुआत से अंत तक यानी मौत के सफर में भी बहादुर पति की संगिनी बनकर ही इस इंसानी दुनिया से रुखसत हो गईं. आज ऐसे बहादुर की शहादत पर घड़ी है उसे नमन करने की. न कि आंख भिगोने की. हां आज भारतीय फौज के ऐसे निडर पूर्व सेनापति की बेटी कृतिका (Kritika Rawat) और तारिनी (Tarini Rawat) के लिए जरूर ईश्वर से दुआ करनी है. दुआ करनी है उन परिवारों के लिए जिन्होंने इस अनहोनी में खो दिए हैं अपने बहादुर, पिता, भाई, पति, बेटे. ईश्वर इन सबको इस बेइंतहाई दुख को बर्दाश्त करने की ताकत बख्शे. देश और सेना ने अगर अपनी अनमोल और अब दुबारा कभी हासिल न हो सकने वाली धरोहर खोई है. तो कृतिका और तारिनी ने अपने सिर से उन्हें जन्म देने वाली मां मधुलिका और पिता बेखाैफ बहादुर बिपिन रावत का साया भी हमेशा-हमेशा को लिए खो दिया है.
इन्हें भी याद करना पूण्य से कम नहीं होगा
जैसा सेनापति होगा वैसी ही फौज और उसके सिपाही भी होंगे. ऐसे में बात जब जनरल बिपिन रावत की विदाई की हो तो, फिर उनके साथ वीरगति को प्राप्त होने वाले बाकी 12 अन्य जांबांज सिपाहियों को भी भला कैसे भूला जा सकता है. चाहे वो फिर ब्रिगेडियर एलएस लिद्दर हों या फिर कोई अन्य. हादसे में शहीद होने वालों में भारतीय थलसेना में कार्यरत ब्रिगेडियर लखबिंदर सिंह लिड्डर हरियाणा के पंचकुला जिले के निवासी. वे जनरल रावत के रक्षा सलाहकार थे. भारत के पूर्व केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने ब्रिगेडियर लखबिंदर सिंह लिड्डर के बारे में अपने ट्वीट में लिखा भी है कि, "हमने एनडीए में साथ ट्रेनिंग की. हम कश्मीर में आतंकवादियों से साथ लड़े." साथ में शहीद होने वाले दूसरा नाम है लेफ़्टिनेंट कर्नल हरजिंदर सिंह का. जोकि राजस्थान के अजमेर जिले के मूल निवासी और इन दिनों जनरल बिपिन रावत के स्टाफ अफसर थे.
बहादुर सेनापति संग रणबांकुरों की शहादत
जबकि हिमाचल राज्य के कांगड़ा जिले के मूल निवासी लांस नायक विवेक कुमार-1 पैरा (स्पेशल फ़ोर्सेस) जनरल रावत के निजी सुरक्षाकर्मी थे. नायक गुरुसेवक सिंह – 9 पैरा (स्पेशल फ़ोर्सेस) पंजाब के तरनतारण ज़िले के निवासी थे. लांस नायक बी साई तेजा – 11 पैरा (स्पेशल फ़ोर्सेस) आंध्र प्रदेश के चित्तूर ज़िले के निवासी थे. वे जनरल बिपिन रावत के पीएसओ (पर्सनल सिक्योरिटी ऑफ़िसर) थे. नायक जितेंद्र कुमार – 3 पैरा (स्पेशल फ़ोर्सेस) मध्य प्रदेश के सीहोर ज़िले के धामंदा गाँव के निवासी थे. 31 वर्षीय जितेंद्र कुमार की बेटी की उम्र चार साल और बेटे की उम्र एक साल बताई जाती है. इसी तरह हवलदार सतपाल राई पश्चिम बंगाल के दार्जिंलिंग ज़िले के निवासी. वे जनरल रावत के पीएसओ थे. बुधवार को सीडीएस रावत जिस हेलिकॉप्टर से जा रहे थे उसमें थल सेना के सात फ़ौजियों के अलावा भारतीय वायु सेना के भी चार अफसर सवार थे.
इनमें विंग कमांडर पीएस चौहान (पृथ्वी सिंह चौहान) दुर्घटनाग्रस्त होने वाले एमआई-17 हेलिकॉप्टर को उड़ा रहे थे. पृथ्वी सिंह चौहान सुलुर में 109 हेलिकॉप्टर यूनिट के कमांडिंग ऑफ़िसर हुआ करते थे. विंग कमांडर पीएस चौहान मूलतः राजस्थान के निवासी हैं. कई साल पहले उनका परिवार जयपुर से उत्तर प्रदेश के लखनऊ में बस गया. वर्तमान में उनका परिवार आगरा में रह रहा है. स्क्वॉड्रन लीडर कुलदीप सिंह दुर्घटनाग्रस्त हेलिकॉप्टर के को-पायलट थे. वे राजस्थान के झुंझनू ज़िले के रहने वाले थे.जेडब्ल्यूओ राणा प्रताप दास ओडिशा के तालचेर ज़िले के निवासी थे. जबकि मारे गए जेडब्ल्यूओ प्रदीप केरल के त्रिची ज़िले के निवासी थे.
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