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- गहलोत की सौगातें
आदित्य नारायण चोपड़ा: किसी भी राज्य का बजट आय-व्यय का लेखा-जोखा तो होता ही है, साथ ही बजट सरकार की योजनाओं और नीतियों को भी प्रदर्शित करते हैं। इससे यह भी पता चलता है कि सरकार जन-जन के कल्याण के लिए क्या-क्या कर रही है। लोक कल्याण राज्य की अवधारणा अत्यंत प्राचीन काल से ही भारत में रही है। तब राज्य को नैतिक कल्याण का साधन माना जाता था। रामायण काल में तो राम राज्य की अवधारणा इसी लोक कल्याणकारी राज्य के सिद्धांत पर आधारित थी। चाणक्य हो या अरस्तु या प्लेटो, इन्होंने भी लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को महत्व दिया है। लोक कल्याणकारी राज्य का अर्थ ऐसे राज्य से है जो अपने सभी नागरिकों को न्यूनतम जीवन स्तर प्रदान करना अपना उत्तरदायित्व समझता है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्य का बजट पेश कर कई सौगातें दी हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शहरों में रोजगार, इंदिरा गांधी शहरी रोजगार गारंटी योजना लागू करने की घोषणा की है। शहरी क्षेत्रों में भी मनरेगा की तर्ज पर मांगें जाने पर सौ दिन का रोजगार मिलेगा। इसके साथ ही बजट में मनरेगा में 100 दिन का रोजगार 125 दिन करने का भी ऐलान किया गया। इसके अलावा मुख्यमंत्री ने पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने का ऐलान किया है।कोरोना काल में शहर हो या गांव हर जगह काम-धंधे ठप्प रहने से बेरोजगारी बढ़ी है। इसका सबसे ज्यादा असर असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों पर पड़ा है। वैसे भारत में आबादी के लिहाज से सातवां सबसे बड़ा राज्य है जहां 26.67 लाख ग्रेजुएट में से हर दूसरे शख्स के पास रोजगार नहीं है। एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य में कुल बेरोजगारों की संख्या भी सर्वाधिक 65 लाख है। ऐसी स्थिति में रोजगार के अवसर सृजित करने की चुनौती काफी बढ़ी है। बेरोजगारी की समस्या किसी एक राज्य की नहीं बल्कि देश व्यापी है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शहरों में मनरेगा की तर्ज पर सौ दिन काम देने की गारंटी योजना शुरू करने की घोषणा कर नई पहल की है। इस योजना पर 800 करोड़ का खर्च आएगा जबकि मनरेगा पर 700 करोड़ का खर्च आएगा। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम एक भारतीय श्रम कानून और सामाजिक सुरक्षा उपाय है, जिसका उद्देश्य 'कार्य करने का अधिकार' है। यह अधिनियम पहली बार पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार की तरफ से 1991 में प्रस्तावित किया गया था। 2008 में इसे संसद ने स्वीकार किया था। 2008 से इस योजना को देश के सभी जिलों में शामिल करने के लिए तैयार किया गया था। इस कानून को सरकार द्वारा दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे महत्वकांक्षी सामाजिक सुरक्षा तथा सार्वजनिक कार्य कार्यक्रम कहा गया था। विकास रिपोर्ट 2014 में विश्व बैंक ने इसे ग्रामीण विकास का तार्किक उदाहरण कहा था। राजस्थान ने इस योजना की तर्ज पर शहरों में सौ दिन काम देने की गारंटी योजना लागू कर नया दृष्टिकोण दिया है। इससे शहरों में भी आजीविका सुरक्षा बढ़ेगी। इसके अलावा बजट में कर्मचारियों को बड़ा तोहफा दिया गया है। संपादकीय :तीसरे विश्व युद्ध की आहटपुतिन की चाल से भूचालचरणबद्ध बदलते चुनावी मुद्देजुगलबंदी प्रोग्राम से रिश्तों में मजबूतीहर्षा की हत्या से उठे सवाल?आनलाइन शिक्षा : सम्भावनाएं और चुनौतियांबजट में पुरानी पेंशन स्कीम को बहाल करने का भी ऐलान किया है। एक जनवरी 2004 और उसके बाद नियुक्त कर्मचारियों के लिए पेंशन की घोषणा की गई है। 30-30 वर्ष की नौकरी के बाद रिटायरमेंट के बाद एक डिफाइंड पेंशन मिलती है, यह पेंशन उनकी सर्विस की अवधि के बेस पर नहीं बल्कि रिटायरमेंट के समय कर्मचारी की सैलरी पर निर्भर करती है। पेंशन की राशि आज के दौर में हजार-बाहर सौ से लेकर तीन हजार तक बनती है। यह राशि सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि से न्यूनतम है। इस राशि में क्या कोई धोयेगा और क्या निचोड़ेगा। इतना खर्चा तो किसी वरिष्ठ नागरिक की दवाइयों पर ही हो जाता है। यह राशि तो एक तरह से सम्मानजनक नहीं लगती। इसी कारण सरकारी सेवाओं से जुड़े कर्मचारी भविष्य के प्रति सुरक्षित महसूस नहीं करते। पुरानी पेंशन योजना से कर्मचारी खुद को सुरक्षित महसूस करेंगे। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में पुरानी पेंशन स्कीम का मुद्दा उठा है। उत्तर प्रदेश सरकार के लाखों कर्मचारी लम्बे समय से आंदोलन कर रहे हैं। पेंशन इतनी तो होनी ही चाहिए कि कम से कम दो जून की रोटी तो मिल सके। राजस्थान के बजट की घोषणाओं का अनुसरण अन्य राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर कर सकती हैं। यद्यपि राज्य के बजट में अनेक लोक लुभावन घोषणाएं हैं। बजट की आलोचना इस बात के लिए की जा सकती है कि इसमें कर्ज के मर्ज का उपचार नहीं बताया गया। घोषणाएं पूरी करने के लिए राज्य पर 50 हजार करोड़ का खर्च बढ़ेगा लेकिन बजट में हर वर्ग को कुछ न कुछ दिया गया है। राजस्थान के मुख्यमंत्री पहले ही बेरोजगार युवाओं और युवतियों को बेरोजगारी भत्ता देने का ऐलान कर चुके हैं। योजनाएं और नीतियां तभी सफल होती हैं जब उन्हें ईमानदारी से जमीन पर लागू किया जाए। जहां सार्वजनिक धन लगाया जाता है, उनकी सतत् निगरानी भी जरूरी है। देखना होगा कि गहलोत सरकार योजनाओं को कितने बेहतर ढंग से लागू कर पाती है।