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इस बढ़ोतरी का आकार भी ‘वी’ है, यह मानने की कोई वजह नहीं है
हकीकत से परिचित होने के लिए जरूरी है कि आंकड़े का संदर्भ देखा जाए। ये आंकड़ा जुलाई से सितंबर की तिमाही का है। 2020 में इस तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था 7.4 प्रतिशत सिकुड़ी थी। उससे आधार इतना नीचे हो गया कि वहां से असल में एक फीसदी की सकारात्मक वृद्धि भी बड़ी दिखेगी।
चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में रही सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर के आंकड़ों से सुर्खियों को देख कर अगर कोई आम शख्स के लिए खुशफहमी पाल ले, तो इसके लिए उसे दोष नहीं दिया जाएगा। जब खुद सरकार के नीति निर्धारण से जुड़े अधिकारी लगातार 'वी शेप रिकवरी' की धारणा बनाने में लगे रहे हैं, तो ऊपरी तौर पर 8.4 फीसदी वृद्धि की बात उसकी पुष्टि करती लगेगी। इसीलिए हकीकत से परिचित होने के लिए यह जरूरी है कि इस आंकड़े का संदर्भ देखा जाए। ये आंकड़ा जुलाई से सितंबर की तिमाही का है। 2020 में इस तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था 7.4 प्रतिशत सिकुड़ी थी। जाहिर है, उससे आधार इतना नीचे हो गया कि वहां से असल में एक फीसदी की सकारात्मक वृद्धि भी 8.4 प्रतिशत के रूप में सामने आएगी। वैसे उससे भी सही नजरिया यह होगा कि ताजा आंकडे की तुलना 2019 की दूसरी तिमाही से की जाए, क्योंकि वह महामारी से पहले का एक सामान्य वर्ष था। उस तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था 35 लाख 59 हजार करोड़ की रही थी। अब यह 35 लाख 73 हजार करोड़ पर पहुंची है। इस तरह दो साल में भारतीय अर्थव्यवस्था के सकल मूल्य में सिर्फ लगभग 0.33 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। और इस बढ़ोतरी का आकार भी 'वी' है, यह मानने की कोई वजह नहीं है।
इसलिए कि पूंजी निर्माण और आम उपभोग के आंकड़े निराशाजनक हैं। घरेलू उपभोग में जो मामूली बढ़ोतरी नजर आई है, उसके पीछे इस वर्ष बढ़ी महंगाई का बड़ा योगदान है। आखिर जब सवा सौ रुपये का तेल दो सौ रुपये में खरीदा जाएगा, तो आंकड़ों में अधिक उपभोग दिखेगा। लेकिन असल में संबंधित व्यक्ति के उपभोग में कोई बढ़ोतरी नहीं होगी। इसी तरह रोजगार का परिदृश्य भी चिंताजनक बना हुआ है। इसके बीच शेयर बाजार, आईटी, सेवा क्षेत्र, और औपचारिक अर्थव्यवस्था के कुछ सेक्टर जरूर चमकते हुए नजर आते हैँ। लेकिन उसका मतलब यही है कि आर्थिक सुधार का आकार अंग्रेजी के 'वी' अक्षर जैसा नहीं, बल्कि 'के' अक्षर जैसा है। यानी जो मूल्य पैदा हो रहा है, उससे ऊपर के तबक और ऊंचा हुए हैँ। जबकि निम्न वर्ग के लोग नीचे की तरफ ही बने हुए हैँ। इसलिए खुश होने की ज्यादा वजह नहीं है। बल्कि जरूरत आर्थिक रुझानों को गहराई से समझने और उसके आधार पर देश की बनी रही कुल सूरत के बारे में समझ बनाने की है।
Gulabi
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