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भिक्षुक से राजा तो सभी बनना चाहते हैं
निरंकार सिंह
भिक्षुक से राजा तो सभी बनना चाहते हैं लेकिन राजा से भिक्षुक सिर्फ गौतम बुद्ध ही बने हैं, क्योंकि उन्हें भौतिक जीवन की व्यर्थता और सत्य का यथार्थ बोध हुआ था। गौतम बुद्ध ने दुनिया के जितने बड़े भूभाग पर अपना प्रभाव डाला है, उतना किसी और ने नहीं। गौतम बुद्ध की वाणी उनके लिए है जो सोच-विचार, चिंतन-मनन, विमर्श के आदी हैं। बुद्ध का धर्म बुद्धि का धर्म कहा गया है। बुद्धि का आदि तो है, अंत नहीं। शुरुआत बुद्धि से है, क्योंकि मनुष्य वहां खड़ा है। लेकिन अंत उसका नहीं है। अंत तो परम अतिक्रमण है, जहां सब विचार खो जाते हैं, सब बुद्धिमत्ता विसर्जित हो जाती है, जहां केवल साक्षी शेष रह जाता है। बुद्ध का प्रभाव उन लोगों में तत्क्षण अनुभव होता है जो सोच-विचार में कुशल हैं।
बुद्ध के साथ मनुष्य-जाति का एक नया अध्याय शुरू हुआ। हजारों वर्ष पहले बुद्ध ने वह कहा जो आज भी सार्थक मालूम पड़ेगा, और जो आने वाली सदियों तक सार्थक रहेगा। बुद्ध ने विश्लेषण दिया। उन्होंने जीवन की समस्या के उत्तर शास्त्र से नहीं दिए बल्कि विश्लेषण की प्रक्रिया से दिए। उनके साथ श्रद्धा और आस्था की जरूरत नहीं है। उनके साथ तो समझ पर्याप्त है। अगर आप समझने को राजी हैं तो बुद्ध की नौका में सवार हो जाएंगे। अगर श्रद्धा भी आएगी, तो समझ की छाया होगी। लेकिन समझ के पहले श्रद्धा की मांग बुद्ध की नहीं है। बुद्ध यह नहीं कहते कि जो मैं कहता हूं, भरोसा कर लो। बुद्ध कहते हैं, सोचो, विचारो, विश्लेषण करो, खोजो, पाओ अपने अनुभव से तब भरोसा कर लेना। बुद्ध ने कहा, अनुभव प्राथमिक है, श्रद्धा आनुषंगिक है। अनुभव होगा तो श्रद्धा होगी। अनुभव होगा तो आस्था होगी। बुद्ध के अंतिम वचन हैं: अप्प दीपो भव। अपने दीप खुद बनना। मेरी रोशनी से मत चलना, क्योंकि थोड़ी देर को संग-साथ हो गया है अंधेरे जंगल में। तुम मेरी रोशनी में थोड़ी देर रोशन हो लोगे फिर हमारे रास्ते अलग हो जाएंगे। मेरी रोशनी मेरे साथ होगी, तुम्हारा अंधेरा तुम्हारे साथ होगा। अपनी रोशनी पैदा करो। अप्प दीपो भव! यह बुद्ध का धम्मपद, कैसे वह रोशनी पैदा हो सकती है अनुभव की, उसका विश्लेषण है।
बुद्ध का धर्म विश्लेषण का धर्म है। लेकिन विश्लेषण से शुरू होता है, समाप्त नहीं होता वहां। समाप्त तो परम संश्लेषण पर होता है। गौतम बुद्ध को धर्म और अध्यात्म का पहला वैज्ञानिक कहा जा सकता है। उनके प्रवचनों के संकलन धम्मपद में इसकी विस्तृत व्याख्या की गई। बुद्ध एक ऐसे उत्तुंग शिखर हैं, जिसका आखिरी शिखर हमें दिखाई नहीं पड़ता। बस थोड़ी दूर तक हमारी आंखें जाती हैं, हमारी आंखों की सीमा है। थोड़ी दूर तक हमारी गर्दन उठती है, हमारी गर्दन के झुकने की सामर्थ्य है। और बुद्ध खोते चले जाते हैं, सुदूर हिमाच्छादित शिखर हैं। बादलों के पार! उनका प्रारंभ तो दिखाई पड़ता है, उनका अंत दिखाई नहीं पड़ता। यही उनकी महिमा है।
बुद्ध की कुछ बात ही ऐसी है, कि ऐसा लगता है अभी-अभी उन्होंने कही। बुद्ध की बात को समसामयिक बनाने की जरूरत नहीं है। वह समसामयिक है। ऐसा लगता है कि बुद्ध जैसे इक्कीसवीं सदी में ही खड़े हैं। और ऐसा अनेक सदियों तक रहेगा। क्योंकि मनुष्य ने सोचने का जो ढंग अंगीकार कर लिया है, वह बुद्धि का है। जबतक बुद्धि का युग रहेगा, बुद्ध के मार्ग को कोई चुनौती नहीं दे पाएगा।

Rani Sahu
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