- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- वैलबीइंग के लिए...
x
ब्रिटेन की रॉयल हॉर्टिकल्चर सोसायटी के प्रोफेसर एलिस्टेयर ग्रिफित्स कहते हैं
एन. रघुरामन का कॉलम:
आप अपने घर के इर्द-गिर्द जगह का कैसे सदुपयोग करते हैं? क्या यह मेहमानों को खुशनुमा स्वागत का अहसास दिलाती है, जिसमें कुदरती-मौसमी चीजों की सुंदरता दिखे या सिर्फ डस्टबिन-कार के लिए जगह छोड़ते हैं? ब्रिटेन की रॉयल हॉर्टिकल्चर सोसायटी के प्रोफेसर एलिस्टेयर ग्रिफित्स कहते हैं कि बतौर इंसान हम बाकी चीजों में एक चीज जो भूल गए हैं वो ये कि हम भी उसी ईश्वर की रचना हैं और उसकी बनाई व्यवस्था के हिस्से हैं।
वह आगे कहते हैं कि लोग खुद को प्रकृति से अलग देखते हैं और भूल गए हैं कि हमारा बहुत सारा हिस्सा तो उसका ही है। हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य यानी वैलबीइंग के लिए पर्यावरण बहुत मायने रखता है। कोविड को इस मामले में धन्यवाद दे सकते हैं जिसने हमें पिछले 24 महीने में इसका अहसास कराया और बगीचों के प्रति ज्यादा उत्साही बनाया।
चूंकि यह हमारे शरीर की सारी इंद्रियों को जागृत करती है, बागवानी मेंटल हेल्थ बेहतर करने में मददगार है और चिकित्सकीय संस्थाएं इसकी अनुशंसा करती हैं। कई शोधों में सलाह दी गई है कि हरी-भरी जगह देखने मिले तो अस्पताल में ठीक होने में भी कम समय लगता है। बागवानी लोगों को प्रकृति से जोड़ने का एक सहज तरीका लगता है। यहां कुछ अलग-अलग तरह के बगीचों का जिक्र है।
आध्यात्मिक बगीचा : इसका निर्माण असल में पैरों तले धरती की आत्मा समझने जैसा है और कैसे जमीन का टुकड़ा इस प्राकृतिक दुनिया से जुड़ा है। इस प्रक्रिया में बगीचा सब्जी उगाने या कोई तारपोलिन लगाने के बजाय चिंतन व ध्यान की जगह बन जाता है। प्रकृति राह दिखाने वाली बन जाती है।
बगीचे को आध्यात्मिक जगह जैसा सोचने से आप चीजों को अलग तरह से देखते हैं। खुद को माली के बजाय धरती का रखवाला मानना शुरू कर देते हैं। कुछ लोग इसे-धरती को अपना घाव भरने का मौका देना-कहते हैं, ताकि बाकी जिंदगियां लौट सकें।
बिना खुदाई वाला : यह पद्धति दुनियाभर में धीरे-धीरे उभर रही है। धरती खोदकर हम कनखजूरे, मकड़ी जैसे कई छोटे-छोटे कीटों को मार रहे हैं और इस जटिल इकोसिस्टम को नुकसान पहुंचा रहे हैं। ये पद्धति भी धरती को और खुद को पुनर्स्थापित करने के साथ इसकी भरपाई करती है।
बिना खुदाई वाली पद्धति के दो सिद्धांत हैं। मिट्टी में मौजूद जीवों को खिलाने के लिए, इसकी सतह को छेड़े बिना कार्बनिक पदार्थों वाली खाद छिड़कते हैं। ये जीव तब एक संरचना का निर्माण करते हैं और मिट्टी को हवादार रखते हैं, इसका मतलब है कि अच्छी जल निकासी। कुछ लोग इसे 'री-वाइल्डिंग' गार्डन भी कहते हैं।
औषधीय बगीचा : आधुनिक दवाएं इन औषधीय बगीचों की मिट्टी में सावधानी से पैदा हुई हैं। सदियों से भारत ऐसे बगीचों की धरती रहा है, जहां लोग जानते थे कि औषधीय गुण वाले पौधों को कैसे पहचाना व उगाया जाता है। अभी भी देश के सुदूर इलाकों में ऐसे कई बगीचे हैं।
सामुदायिक बगीचे : आश्चर्य नहीं कि पिछले दो दशकों या ज्यादा से रिएल एस्टेट वाले बागवानी पर ध्यान दे रहे हैं क्योंकि वे समझ गए हैं कि बगीचे वैलबीइंग के लिए जरूरी हैं और कॉलोनी में लोगों को मिलने, कहानियां साझा करने, योग और लाफ्टर क्लब के लिए गार्डन जरूरी हैं।
बगीचे की जगह न हो तो: आप तब भी एक स्वादिष्ट, पौष्टिक फसल उगा सकते हैं। अधिकांश सब्जियां जैसे गोभी, गाजर, धनिया, तुलसी, मूली आदि बाहर की सीमित जगह में उगा सकते हैं। कैंची से अच्छी तरह कटी सब्जियां-हर्ब्स देखने में छोटी लगें लेकिन स्वाद बहुत अच्छा होता है। अगर सलाद व सूप के ऊपर उनकी ड्रेसिंग हो, तो भी सुंदर दिखती हैं।
फंडा यह है कि वैलबीइंग के लिए गार्डनिंग सबसे अच्छा नुस्खा है। पौधों की देखभाल करने से हमें अपनी देखभाल में भी मदद मिलती है।
Next Story