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खराब और प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को वैज्ञानिक तरीके से हटाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नेशनल आटोमोबाइल स्क्रेपिंग नीति को लांच कर दिया है।
आदित्य चोपड़ा| खराब और प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को वैज्ञानिक तरीके से हटाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नेशनल आटोमोबाइल स्क्रेपिंग नीति को लांच कर दिया है। जलवायु परिवर्तन को हर कोई महसूस कर रहा है। इसलिए देश को बड़े कदम उठाने भी जरूरी हैं। बीते वर्षों में ऊर्जा सैक्टर ने काफी प्रगति की है। नई स्क्रेप नीति वेस्टेज टू वेल्थ की दिशा में एक अहम कदम है। यह कचरे से कंचन बनाने की दिशा में बड़ा अभियान है। वास्तव में यह नीजि पुराने आैर अयोग्य वाहनों की रिसाईकिलिंग पर केन्द्रित है।
केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय काफी समय से इस नीति पर मंथन कर रहे थे। एक वह भी दौर था जब लोग एक गाड़ी खरीदने के बाद यह सोचते थे कि अब पूरी जिन्दगी इसी गाड़ी को चलाएंगे। एक गाड़ी पूरे परिवार की शान हुआ करती थी और लोग गाड़ियों को भी परिवार का सदस्य मानते थे। इन्हें बहुत सम्भाल कर रखते थे। अगर गाड़ी पर हल्की सी खरोंच भी आ जाती थी तो मूड खराब हो जाता था। अब एक-एक परिवार के पास दो कारों से अधिक कारे हैं। कारें जरूरत भी हैं साथ ही स्टेट्स सिम्बल भी है। लेकिन इसने बहुत समस्याएं खड़ी कर दी हैं। देश में 51 लाख के लगभग हल्के वाहन हैं जो 20 वर्ष से अधिक पुराने हैं और 34 लाख ऐसे हैं जो 15 वर्ष से ज्यादा पुराने हैं, लगभग 17 लाख मध्यम और हैैवीवेट कमर्शियल वाहन हैं, जो 15 वर्ष से अधिक पुराने हैं आैर जरूरी फिटनेस के बिना चल रहे हैं। इनके अलावा देशभर में लाखों 'जुगाड़' चल रहे हैं। पुराने वाहन नए वाहनों की तुलना में दस से 12 गुना अधिक प्रदूषण फैला रहे हैं और सड़क सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बने हुए हैं। नई स्क्रेप नीति के तहत अब आपकी गाड़ी 15 वर्ष पूरे होने से पहले अनफिट पाई जाती है तो उसे स्क्रेप में बदल दिया जाएगा। 20 वर्ष से अधिक पुरानी प्राइवेट गाड़ियों को भी कबाड़ में बदला जाएगा।
गाड़ियों की जांच अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार की जाएगी। स्क्रेप नीति के तहत कई तरह की छूटों का ऐलान किया गया है, जिससे आम आदमी को काफी फायदा होगा। इस नीति के तहत ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री को भी बड़ा फायदा होगा। पिछले वर्ष भारत ने लगभग 23 हजार करोड़ रुपए का स्क्रेप स्टील भारत को आयात करना पड़ा। भारत में अब तक जो स्क्रेपिंग होती आ रही है, वह प्रोडक्टिव नहीं है। अब गाड़ियों को स्क्रेप में बदला जाएगा और पुनः इस्तेमाल किए जाने वाले कबाड़ को अलग किया जाएगा। कचरे की रिसाइकिलिंग की जाएगी। अगर आटोमोबाइल इंडस्ट्री को भारत में ही स्टील स्क्रेप मिल जाए तो हजारों करोडों की बचत होगी। आटोमोबाइल सैक्टर भारत में आत्मनिर्भरता को बढ़ाएगा। पुरानी गाड़ियों को हटाए जाने से इलैक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा मिलेगा। देश के पास अपना रेयर मैटल का भंडार बढ़ेगा तो इंडस्ट्री को बहुत कम चीजों का आयात करने की जरूरत पड़ेगी। अब भारत में स्क्रेपिंग का बुनियादी ढांचा तैयार करना होगा। फिटनेस टेस्ट और स्क्रेपिंग सैंटर बनाने का काम एक अक्तूबर से लागू हो जाएंगे, अगले वर्ष अप्रैल में वाहनों की स्क्रेपिंग शुरू हो जाएगी। जर्मनी, अमेरिका, कनाडा समेत यूरोप के अधिकतर देशों ने इस तरह की स्क्रेपिंग नीति 10-15 वर्ष पहले ही लागू कर दी थी, लेकिन भारत ने देर कर दी। फिर भी देर आयद दुरुस्त आयद। महानगरों में तो नई नीति लागू हो जाएगी।
देश के लोग अक्सर पुरानी गाड़ियों को छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में बेच देते हैं, जहां गाड़ियां बिना किसी टेस्ट के चलती रहती हैं। जैसे-जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत होगा तभी यह नीति पूरी तरह सफल होगी। इसमें कोई शक नहीं कि वाहनों का प्रदूषण खतरनाक हद तक बढ़ रहा है। जैसे-जैसे लोगों की क्रय शक्ति बढ़ी, उनका जीवन स्तर सुधरा और हर कोई अच्छी जीवन शैली अपनाने को लालायित हुआ। भौतिक सुख-सुविधाएं आजकल उच्च जीवन शैली की सूचक हैं। इसी क्रम में सबसे पहले घर के बाद गाड़ी का ही स्थान आता है। छोटे-छोटे शहरों में दोपहिये आैर चार पहिये वाहनों का ही वर्चस्व है। इन वाहनों से निकलने वाली नाइट्रोजन आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड, सल्फर आक्साइड पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। दिल्ली हो या मुम्बई या फिर कोई महानगर या बड़ा शहर पार्किंग की समस्या बहुत बड़ी हो गई है।
हाउसिंग सोसाइटीज में कारें खड़ी करने के लिए कोई व्यवस्था ही नहीं। लोग अपनी परेशानियों को लेकर अदालतों में जा रहे हैं। एक-एक फ्लैट वाले के पास पांच-पांच गाड़ियां हों तो फिर पार्किंग कैसे मिलेगी। नई स्क्रेप नीति के लागू होने के साथ-साथ हमें वाहनों की संख्या घटाने के प्रयास भी करने होंगे। सार्वजनिक परिवहन सेवाओं को भी मजबूत बनाना होगा और लोगों को सार्वजनिक परिवहन सेवाओं का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करना होगा। विदेश में अमीर से अमीर व्यक्ति भी मैट्रो सेवाओं और सार्वजनिक परिवहन सेवाओं का इस्तेमाल करते हैं। हमें भी अपनी कार्य संस्कृति को बदलना होगा। सरकार द्वारा कितनी ही छूटों की घोषणा से लोग कितने प्रोत्साहित हाेते हैं इसको देखने के लिए हमें इंतजार करना होगा। हम सबको कचरे वाली सोच से निकल कर खुद कंचन बनना होगा और सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना होगा। एक आंकड़े के मुताबिक पुरानी कार चलाने पर एक व्यक्ति को हर साल 30 से 40 हजार से एक ट्रक मालिक को दो से तीन लाख का नुक्सान होता है। नई नीति से निवेश आएगा, रोजगार के अवसरों का सृजन होगा, नए वाहनों की बिक्री बढ़ेगी तो यह देश के लिए फायदेमंद ही होगी।
Triveni
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