सम्पादकीय

कचरा निपटान की मुश्किलें

Subhi
30 March 2022 2:11 AM GMT
कचरा निपटान की मुश्किलें
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देश के बड़े शहरों में मिलाजुला कचरा सबसे ज्यादा खतरनाक है। इस कचरे में कागज, प्लास्टिक, धातुएं, शीशा, घरों से निकलने वाले विषैले कचरे, मांस, अंडे जैसे खाद्य आदि शामिल होते हैं

अखिलेश आर्येंदु: देश के बड़े शहरों में मिलाजुला कचरा सबसे ज्यादा खतरनाक है। इस कचरे में कागज, प्लास्टिक, धातुएं, शीशा, घरों से निकलने वाले विषैले कचरे, मांस, अंडे जैसे खाद्य आदि शामिल होते हैं, जो सबसे अधिक समस्या पैदा करते हैं। दरअसल, भारतीयों में कचरा प्रबंधन की आदत नहीं है। इस कारण सूखा और गीला दोनों तरह का कचरा एक ही डिब्बे में डाल दिया जाता है, जो कई दिनों तक सड़ता रहता है।

भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में कचरे और मलबे से पैदा होने वाली समस्याएं मानव सभ्यता के लिए संकट बनती जा रही हैं। भारत के बड़े और मझोले शहरों से निकलने वाला मलबा और मिलावटी कचरा एक गंभीर समस्या का रूप धारण कर चुका है। देश में हर साल निर्माण और ध्वस्तीकरण से जुड़े काम में पंद्रह करोड़ टन से अधिक कचरा पैदा होता है। अकेले राजधानी दिल्ली में ही रोजाना सात हजार टन के करीब मलबा व मिलावटी कचरा निकलता है, जिसमें से महज चार हजार एक सौ पचास टन का ही रोजाना निस्तारण हो पाता है।

गौरतलब है कि तीन हजार टन मलबा व कचरा बिना पुनर्चक्रण के बचा रहता है जो वायु, जल, मृदा आदि को खराब कर रहा है। इसके अलावा जो मलबा निर्माण और ध्वस्तीकरण से निकलता है, वह यमुना का गला घोंट रहा है। इसके अलावा मलबे व कचरे के निस्तारण की उचित व्यवस्था न होने की वजह से लोग मलबे को चोरी-छिपे नालियों या गड्डों में डाल देते हैं। इससे नाले भर जाते हैं और आए दिन जलभराव की समस्या से लोगों को दो-चार होना पड़ता है। यह हालत देश की राजधानी की है, जो पिछले कई सालों से वायु, जल, ध्वनि और मृदा प्रदूषण से जूझ रही है।

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों और प्रदूषण नियंत्रण समितियों की गई 2018-19 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में रोजाना एक लाख बावन हजार छिहत्तर टन ठोस कचरा पैदा होता है। वहीं 2020-21 के आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर साल दो सौ सतहत्तर अरब किलो कचरा निकलता है, यानी प्रति व्यक्ति दो सौ पांच किलो कचरा। इनमें से सत्तर प्रतिशत कचरा ही इकट्ठा किया जाता है, बाकी जमीन या पानी में इधर-उधर फैला रहता है।

आंकड़ों के अनुसार एक लाख उनचास हजार सात सौ अड़तालीस टन कूड़ा इकट्ठा किया जाता है। लेकिन इसमें से रोजाना केवल पचपन हजार सात सौ साठ टन यानी पैंतीस फीसद कूड़े का उचित निस्तारण किया जाता है। पचास हजार टन यानी तैंतीस प्रतिशत भराव वाली जगहों यानी लैंडफिल में फेंक दिया जाता है और बाकी छियालीस हजार एक सौ छप्पन टन रोजाना पैदा होने वाले कूड़े या मलबे के एक तिहाई का कोई हिसाब नहीं।

बढ़ती आबादी और घटते प्राकृतिक संसाधनों के बीच कचरे के निस्तारण की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। आज हालत यह हो गई है कि दिल्ली के गाजीपुर और मुंबई के मुलुंड डंपिंग ग्राउंड इलाके में कचरे के पहाड़ खड़े हैं। गौरतलब है भारत में निकलने वाला कचरा दो तरह का है, औद्योगिक मलबा और नगर निगमों से निकलने वाला कचरा। औद्योगिक कचरे के निपटान की जिम्मेदारी उद्योगों पर है, जबकि नगर निगमों के कचरे के निपटान की जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन की होती है।

आमतौर पर नगर निगम कचरा तो इकट्ठा करते हैं, लेकिन उसे आबादी के आसपास ही किसी इलाके में फेंकते रहते हैं। इससे वहां रहने वाले नागरिकों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है। नेशनल इन्वायरमेंटल सेंटर के सर्वे के मुताबिक देश के बड़े शहरों में मिलाजुला कचरा सबसे ज्यादा खतरनाक है। इस कचरे में कागज, प्लास्टिक, धातुएं, शीशा, घरों से निकलने वाले विषैले कचरे, मांस, अंडे जैसे खाद्य आदि शामिल होते हैं, जो सबसे अधिक समस्या पैदा करते हैं। दरअसल, भारतीयों में कचरा प्रबंधन की आदत नहीं है। इस कारण सूखा और गीला दोनों तरह का कचरा एक ही डिब्बे में डाल दिया जाता है, जो कई दिनों तक सड़ता रहता है।

विश्व स्तर पर ई-कचरा और प्लास्टिक का कचरा मानव सभ्यता के दुश्मन बन गए हैं। इसलिए ई-कचरे और प्लास्टिक के कचरे के पुनर्चक्रण का पुख्ता इंतजाम होना चाहिए। वैज्ञानिकों के मुताबिक साधारण प्लास्टिक को सड़ने में लगभग पांच सौ वर्ष लग जाते हैं। सहज-सरल उपलब्ध होने के कारण इसका इस्तेमाल इसके जहरीलेपन को नजरअंदाज करके किया जाता है। दुनिया में इसके महज पांच में से एक हिस्से का ही पुनर्चक्रण हो पाता है। इस तरह इसका अस्सी प्रतिशत हिस्सा समुद्र में जा रहा है। इसका असर यह हो रहा है कि स्तनधारी जीव प्लास्टिक का सबसे अधिक इस्तेमाल जाने-अनजाने करके असमय मौत का शिकार हो रहे हैं।

आज समुद्र, नदियों और झीलों का जल कई तरह के प्रदूषणों से ग्रस्त हो गया है। इन्हें खराब करने में शहरों से निकलने वाले कचरे की ही भूमिका ज्यादा है। कस्बों और गांवों के कुओं व नहरों का जल भी प्लास्टिक के कारण प्रदूषित हो रहा है। एक सर्वेक्षण के मुताबिक सत्तर के दशक के बाद प्लास्टिक का उपयोग शहरी, ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में तेजी से बढ़ता गया है, जो कई तरह की बीमारियों का कारण भी बन गया है।

दरअसल, प्लास्टिक दुनिया में सबसे अधिक भयावह तस्वीर हमारे सामने पेश कर रहा है। एक अनुमान के मुताबिक विश्व में प्रति मिनट दस लाख प्लास्टिक बोतलें और हर वर्ष पांच खरब प्लास्टिक थैलियां खरीदी जाती हैं। ये ऐसे उत्पाद हैं जो महज एक बार इस्तेमाल होने के बाद कचरा बन जाते हैं। प्लास्टिक का सबसे ज्यादा इस्तेमाल पैकजिंग के लिए होता है। पैकजिंग उद्योग दुनिया का सबसे बड़ा उद्योग बन गया है। इस उद्योग के लिए हर साल आठ करोड़ टन प्लास्टिक तैयार होता है। हम सोच सकते हैं कि कितनी बड़ी तादाद में प्लास्टिक कचरा समुद्र और जमीन में दबाया जा रहा है। महानगरों में सत्तर फीसद हिस्सा प्लास्टिक कचरे का ही है।

जो प्लास्टिक एक शताब्दी पहले मानव का मित्र बना हुआ था, वही आज मानव सभ्यता का दुश्मन बन गया है। प्लास्टिक से अनेक समस्याएं, संकट, बीमारियां और विकृतियां देखने को मिल रही हैं। औद्योगिक और घरेलू क्षेत्रों में प्लास्टिक का उपयोग इतना अधिक बढ़ गया है कि इसके बिना कोई का कार्य संभव नहीं दिखाई पड़ता। 'इस्तेमाल करो और फेंको' की संस्कृति के कारण प्लास्टिक आज देश में ही नहीं, दुनियाभर में संकट और अनेक बीमारियों का कारण बन गया है।

उपयोग में आने वाले प्लास्टिक को जलाने से कई तरह की जहरीली गैसें पैदा होती हैं, जिनमें नाइट्रिक आक्साइड, कार्बन डाइआक्साइड व कार्बन मोनोआक्साइड प्रमुख हैं। इन गैसों से फेफड़ों और आंख की बीमारियां, कैंसर, मोटापा, मधुमेह, थायरायड, पेट दर्द, सिर दर्द जैसी अनेक समस्याएं पैदा हो सकती हैं। नए शोध के अनुसार प्लास्टिक से बने बर्तन में गर्म पेयों और खाद्यों के उपयोग से इसमें मौजूद नुकसानदेह केमिकल डाइआक्सीन, लेड (सीसा) कैडमियम आदि खाद्य पदार्थों में घुल कर हमारे शरीर में पहुंच जाते हैं, जिससे गंभीर शारीरिक समस्याएं पैदा हो जाती हैं।

कचरे के प्रबंधन के लिए केंद्र और राज्य सरकारें हालांकि कदम उठा रही हैं, लेकिन इस दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। शहरों में जितनी समस्या मिलावटी कचरे से पैदा हुई है, उतनी ही समस्या ई-कचरे और मलबे से भी बढ़ रही है। इसलिए इस समस्या को संपूर्णता में देखने और जल्द समाधान करने की जरूरत है। इसके लिए सरकारों और गैरसरकारी संगठनों के साथ आम आदमी को भी आगे आना होगा। कूड़े का निस्तारण कैसे करें, इसके लिए लोगों में जागरूकता पैदा करनी जरूरी है। वरना जिस तेजी से मलबे, कचरे और मिलावटी कचरे से समस्याएं बढ़ रही हैं, वे आने वाले वक्त के लिए और बड़े संकट का रूप ले सकती हैं।


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