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- गंगा की सेहत
Written by जनसत्ता; इसके लिए करीब पैंतीस साल पहले गंगा कार्ययोजना शुरू की गई थी। तबसे इस पर सैकड़ों करोड़ रुपए बहा दिए गए, मगर नतीजे के रूप में यही सामने आया कि गंगा निरंतर और गंदी होती गई। फिर नमामि गंगे परियोजना शुरू की गई। इसके लिए एक अलग मंत्रालय भी बनाया गया। नए ढंग से योजना बनी और न सिर्फ गंगा के पानी को साफ करने, बल्कि इसके किनारों को भी संपन्न प्राकृतिक क्षेत्र के रूप में विकसित करने की कोशिश शुरू हुई। अच्छी बात है कि इस प्रयास के कुछ बेहतर नतीजे नजर आने लगे हैं।
यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र ने इसे दुनिया की दस महत्त्वपूर्ण पहलों में शुमार किया है। इस समय कनाडा में संयुक्त राष्ट्र का पंद्रहवां जैव विविधता सम्मेलन चल रहा है। उसमें संयुक्त राष्ट्र ने माना है कि नमामि गंगे परियोजना प्राकृतिक दुनिया को बहाल करने में काफी मददगार साबित हो सकती है। इसलिए कि यह क्षेत्र म्यामां, फ्रांस और सोमालिया से भी बड़ा है। संयुक्त राष्ट्र ने इस परियोजना को परामर्श और वित्तीय पोषण उपलब्ध कराने की घोषणा की है। स्वाभाविक ही इस घोषणा से इस परियोजना को गति मिलेगी और जल्दी बेहतर नतीजों की उम्मीद की जा सकती है।
केंद्र सरकार ने नमामि गंगे परियोजना के तहत गंगा में गिरने वाले गंदे जल को रोकने के साथ-साथ इसके दोनों किनारों पर वन क्षेत्र विकसित करने का अभियान चला रखा है। इस क्षेत्र में वन्यजीवों के रहने लायक वातावरण बनाया जा रहा है। इस तरह गंगा के दोनों पाटों के इलाकों में खेती और वहां रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को रोका जा सकेगा। एक विशाल हरित पट्टी तैयार होने से पर्यावरण प्रदूषण और स्वाभाविक जलवायु परिवर्तन के कारकों को कम करने में मदद मिलेगी।
पिछले कुछ सालों के अनेक अध्ययनों में ये तथ्य उजागर हुए थे कि गंगा में प्रदूषण बढ़ने की वजह से न सिर्फ पेयजल उपलब्ध कराने और उसके जल-जीवों की सेहत की दृष्टि से समस्या गहरी हुई है, बल्कि इसके दोनों किनारों पर बसे गांवों के लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव देखा जा रहा है। खेतों में जहरीले रसायन घुल चुके हैं, जो वहां उगने वाले अनाज के माध्यम से दूसरे लोगों की सेहत पर भी बुरा असर डाल रहे हैं। इस दृष्टि से गंगा को पूरी तरह प्रदूषण मुक्त करने का अभियान चलाया गया है। अभी तक दो सौ तीस विभिन्न संगठनों की मदद से गंगा के करीब तीस हजार हेक्टेयर क्षेत्र का वनीकरण किया जा चुका है।
गंगा भारत की आस्था की नदी है। यह देश के बहुत बड़े हिस्से को सिंचित करती और अनेक शहरों और औद्योगिक इकाइयों की जल संबंधी जरूरतों को पूरा करती है। मगर जिस नदी के दर्शन मात्र से मुक्ति की बात की जाती रही है, उसमें निर्बाध औद्योगिक कचरा और शहरी मल मिलते जाने की वजह से कई जगहों पर उसका पानी आचमन तो दूर, छूने लायक भी नहीं रह गया था।
राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और प्रशासनिक लापरवाहियों के चलते इसमें और इसकी सहायक नदियों में बहाए जा रहे जहर को रोकने की कड़ाई से पहल कभी नहीं की गई। अब संयुक्त राष्ट्र ने नमामि गंगे परियोजना की सराहना करते हुए इसे गति प्रदान करने की पहल की है, तो स्वाभाविक ही उससे बेहतर नतीजे की उम्मीद बनी है।