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- अदालत में गैंगवार
न्याय के घर में न्यायाधीश न्याय करते हैं, लेकिन जब वहां भी पहुंचकर अपराधी कानून-व्यवस्था को धता बताने लगें, तो न केवल शर्मनाक, बल्कि दुखद स्थिति बन जाती है। राष्ट्रीय राजधानी में उच्च सुरक्षा वाली रोहिणी कोर्ट में सरेआम गोलियां चलीं और दो बदमाशों ने एक बदमाश को ढेर कर दिया। मजबूरन पुलिस को भी अदालत में ही दोनों हथियारबंद बदमाशों के खिलाफ अंतिम विकल्प का सहारा लेना पड़ा। शायद यह एक असहज सवाल होगा, लेकिन क्या पुलिस उन अपराधियों को पकड़ने की कोशिश नहीं कर सकती थी? आखिर ये अपराधी अदालत में घुसे कैसे? इनकी हिम्मत कैसे पड़ी कि वकीलों का चोला पहनकर उन्होंने वकील बिरादरी पर लोगों के विश्वास को हिलाया? क्या उच्च सुरक्षा वाले उस कोर्ट परिसर में वकीलों को प्रवेश से पहले रोकने-टोकने-जांचने की हिम्मत पुलिस में नहीं है? बेशक, यह जो कमी है, उसके लिए पुलिस के साथ-साथ वकीलों की भी एक जिम्मेदारी बनती है। सोचना चाहिए कि राष्ट्रीय राजधानी की एक अदालत में यह खिलवाड़ हुआ है, तो देश में बाकी अदालतों में जांच-प्रवेश की कैसी व्यवस्था होगी? अदालत परिसर में भी तो कम से कम ऐसी चौकसी होनी चाहिए कि कोई अपराधी किसी प्रकार के हथियार के साथ न घुस सके। क्या हमारे न्याय के घर अपराधियों के लिए तफरी या वारदात की जगह में बदलते जाएंगे?