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महात्मा गांधी ने अपने पूरे जीवनकाल में मात्र दो फिल्में देखीं
जयप्रकाश चौकसे का कॉलम:
महात्मा गांधी ने अपने पूरे जीवनकाल में मात्र दो फिल्में देखीं। इनमें पहली फिल्म 'मिशन टू मॉस्को' थी। दूसरी फिल्म गांधी जी को आर्ट डायरेक्टर कानू देसाई ने 'राम राज्य' दिखाई। अंग्रेजों के अधीन रहे फिल्म्स डिवीजन में उनके अनगिनत वृत्त चित्र और स्थिर चित्र उपलब्ध हैं। विश्व विख्यात स्थिर चित्र लेने वाली मार्गरेट व्हाइट ने गांधी जी के साथ यात्राएं की हैं और उनके कई स्थिर चित्र लिए हैं।
कहा जाता है कि कभी-कभी गांधी जी, मार्गरेट द्वारा चित्र लिए जाते वक्त अपनी चलने की गति तेज कर देते थे। राजकुमार हिरानी की फिल्म 'लगे रहो मुन्ना भाई' गांधी जी के आदर्शों पर बनी है। इससे काफी वर्षों पहले लंदन में बसे एक भारतीय व्यक्ति पटेल ने महात्मा गांधी के आदर्शों से प्रेरित कथा फिल्म बनाने का विचार किया था परन्तु उनके पास साधन की कमी थी। रिचर्ड एटनबरो की गांधी को बनने में भी बहुत वक्त लगा था।
गांधी जी की भूमिका के लिए नसीरुद्दीन शाह का स्क्रीन टेस्ट भी लिया गया था। इस बड़े बजट की फिल्म के आर्थिक समीकरण के लिए यह व्यवहारिक था कि पश्चिम का कोई सितारा गांधी जी की भूमिका अभिनीत करें। रिचर्ड एटनबरो ने लंदन के रंगमंच कलाकार बेन किंग्सले को इस भूमिका के लिए चुना। बेन ने इस किरदार के लिए चरखा चलाना सीखा। कई दिनों तक उपवास भी किए।
उन्होंने गांधी जी की भूमिका अभिनीत करने के लिए स्वयं को तैयार किया। चितरंजन रेलवे कारखाने में विशेष ट्रेन बनाई गई ताकि सब कुछ विश्वसनीय लगे। गोविंद निहलानी को दूसरे यूनिट का कैमरामैन नियुक्त किया गया। इसी फिल्म की शूटिंग के समय गोविंद निहलानी ने भीष्म साहनी का उपन्यास 'तमस' पढ़ा। कालांतर में दूरदर्शन के लिए 'तमस' बनाई। इस तरह इस फिल्म ने एक अन्य फिल्म का बनना संभव किया।
नेक इरादे और इच्छा शक्ति से बहुत कुछ किया जा सकता है। फिल्म के लिए गांधी जी की अंतिम यात्रा के दृश्य की शूटिंग के पहले अखबार में विज्ञापन दिए गए कि भीड़ के सीन के लिए पैसे दिए जाएंगे। शूटिंग में हजारों लोगों ने हिस्सा लिया। उन्हें घंटों धूप में खड़े रहना पड़ा। आश्चर्यजनक है कि शूटिंग के बाद भी कोई आम आदमी मेहनताना लेने नहीं आया। आम आदमी के मन में गांधीजी के लिए इतना आदर रहा।
सर रिचर्ड एटनबरो के अमेरिकन वितरक ने फिल्म के मात्र 5 प्रिंट बड़े शहरों में लगाए। वितरक को आश्चर्य हुआ कि भारी संख्या में दर्शक आए। धीरे-धीरे सिनेमाघरों की संख्या बढ़ाई गई और एक दौर में न्यूयॉर्क के 50 सिनेमाघरों में यह फिल्म दिखाई गई। गांधी जी ने सत्य का प्रयोग सर्वप्रथम दक्षिण अफ्रीका में किया। वहां आज भी गांधी जी की मूर्ति लगी है। सर रिचर्ड एटनबरो की फिल्म अफ्रीका में भी सराही गई।
गांधी जी ने साधनहीन छात्रों को पढ़ने का अवसर देने के लिए गुजरात में नवजीवन शिक्षा संस्थान की स्थापना की थी। वर्धा में भी इसी तरह की संस्था में मैंने प्रतिभाशाली छात्रों से मुलाकात की है। बहरहाल अहमदाबाद से कुछ किलोमीटर दूर सादरा में इसी तरह की संस्था में मुझे अपने विचार अभिव्यक्त करने का अवसर मिला। मैंने महात्मा गांधी और सिनेमा विषय पर अपने विचार अभिव्यक्त किए। प्राचार्य के परामर्श पर मैंने किताब लिखी।
जिसे मौर्य प्रकाशन संस्था ने जारी किया। किताब का अंग्रेजी और कन्नड़ में भी अनुवाद हुआ। अंग्रेजी संस्करण बहुत संख्या में खरीदा गया। कन्नड़ संस्करण का भी स्वागत हुआ परंतु हिंदी सबसे कम बिका। मूल पुस्तक हिंदी में है। हिंदी पाठक ने किताब को अनदेखा किया। मराठी में अनुवाद का आज्ञा पत्र जारी किए अरसा हो गया।
बहरहाल गांधी जी प्रेरित राजकुमार हिरानी की फिल्म ही श्रेष्ठ रही। महात्मा गांधी और चार्ली चैप्लिन की मुलाकात लंदन में हुई और इस मुलाकात में गांधी ने मशीन के बारे में अपने विचार अभिव्यक्त किए और इसी विचार से प्रेरित रही चार्ली की फिल्म 'मॉडर्न टाइम्स'।
Gulabi
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