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- खेल और खिलवाड़
Written by जनसत्ता; युवाओं में खेल-कूद को बढ़ावा देने के लिए सरकारें अनेक योजनाएं चलाती हैं। मकसद है कि क्षेत्रीय स्तर पर खेल प्रतियोगताओं के माध्यम से श्रेष्ठ प्रतिभाओं की पहचान और उन्हें राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने का मौका उपलब्ध कराया जाए। इसके लिए हर जिले में खेल अधिकारी नियुक्त हैं, जो खिलाड़ियों के कौशल को निखारने की जिम्मेदारी निभाते हैं।
मगर हमारे देश में सरकारी योजनाएं किस तरह भ्रष्टाचार और कदाचार का शिकार हो जाती हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। खेलों को प्रोत्साहन देने के लिए चलाई जा रही योजनाएं भी इससे अछूती नहीं हैं। इसका ताजा उदाहरण उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में आयोजित एक खेल प्रतियोगिता के दौरान खिलाड़ियों के लिए तैयार भोजन को शौचालय में रखने की घटना है। जब उस घटना का वीडियो बड़े पैमाने पर प्रसारित हो गया, तब प्रशासन की नींद खुली और खुद जिलाधिकारी ने घटना की जांच कर रिपोर्ट सौंपी।
सरकार ने तत्काल संबंधित अधिकारी को निलंबित और भोजन की व्यवस्था संभालने वाले ठेकेदार को काली सूची में डाल दिया। अब उत्तर प्रदेश सरकार ने सारे जिला खेल अधिकारियों को निर्देश दिया है कि खिलाड़ियों की सुविधाओं के मामले में किसी भी तरह की लापरवाही नहीं होनी चाहिए। मगर इस घटना और सरकार की सख्ती से दूसरे जिला खेल अधिकारियों ने कितना सबक सीखा होगा, कहना मुश्किल है।
खेल के नाम पर खेल संघों, स्टेडियमों, खेल प्रशिक्षण केंद्रों आदि में खिलाड़ियों की सुविधाओं का कितना ध्यान रखा जाता है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि समय-समय पर भोजन की गुणवत्ता, मात्रा, खिलाड़ियों के साथ प्रशिक्षकों के बर्ताव आदि को लेकर शिकायतें आम हैं। दरअसल, ज्यादातर जगहों पर खिलाड़ियों को भोजन उपलब्ध कराने का काम ठेकेदारों के माध्यम से किया जाता है।
खासकर जब खेल प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं, तो भोजन की व्यवस्था ठेकेदार ही करते हैं। यह छिपी बात नहीं है कि ठेका देने में किस तरह कमीशनखोरी शामिल होती है। जाहिर है, इस तरह ठेकेदार भोजन की गुणवत्ता गिरा कर अपनी कमाई बढ़ाने का प्रयास करते हैं। घटिया आहार उपलब्ध कराते हैं। कम से कम कारीगरों से काम चलाना चाहते हैं। सहारनपुर वाले मामले में भी यही हुआ।
तीन सौ खिलाड़ियों के लिए भोजन तैयार करने को मात्र दो कारीगर रखे गए थे। हद तो यह कि तैयार भोजन शौचालय में रखवाया गया, जहां से लेकर खिलाड़ियों को खाना था। अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब भोजन रखने में साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता, तो उसे तैयार करने में कितना ध्यान दिया जाता होगा।
सहारनपुर की घटना से एक बार फिर यह उजागर हुआ है कि खेलों को प्रोत्साहन देने की जिम्मेदारी निभाने वाले खुद किस तरह का खेल करते हैं और उनके मन में खिलाड़ियों के प्रति कितना सम्मान है। जब वे खिलाड़ियों को ठीक से भोजन नहीं करा सकते, उनके खानपान में साफ-सफाई का ध्यान नहीं रख सकते, तो भला उनके मन में खिलाड़ियों को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने का संकल्प कितना दृढ़ होगा।
ऐसा नहीं माना जा सकता कि खेल अधिकारियों को इस बात की जानकारी नहीं होगी कि खिलाड़ियों के जीवन में आहार की क्या अहमियत होती है, खराब गुणवत्ता और दूषित भोजन से उनकी सेहत पर क्या असर पड़ सकता है। मगर उन्हें योजना के पैसे में हेराफेरी और खिलाड़ियों के प्रति उपेक्षा का भाव इस तकाजे पर कभी गंभीरता से सोचने का अवसर ही नहीं देता। खिलाड़ियों की सेहत और प्रतिभा के साथ खिलवाड़ करने वाले अधिकारियों पर सख्त नजर बहुत जरूरी है।