सम्पादकीय

खेल बनाम खिलवाड़

Subhi
5 May 2021 1:04 AM GMT
खेल बनाम खिलवाड़
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इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि समूची दुनिया और खासतौर पर हमारा देश एक ओर महामारी की मार से तबाह है

इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि समूची दुनिया और खासतौर पर हमारा देश एक ओर महामारी की मार से तबाह है और इसे रोकने के लिए सब कुछ बंद करने की मजबूरी सामने है और दूसरी ओर इंडियन प्रीमियर लीग यानी आइपीएल जैसा आयोजन निर्बाध तरीके से जारी था। जबकि हर ओर संक्रमण फैलने के खतरे को लेकर लोगों को सचेत किया जा रहा था और इसके दायरे से आइपीएल में हिस्सा लेने वाले खिलाड़ी या इस आयोजन में लगे दूसरे कर्मचारी और बाकी लोग पूरी तरह आजाद नहीं थे।

हवाला इस बात का दिया जा रहा था कि इस आयोजन के संचालन के लिए बायो बबल यानी जैव सुरक्षित वातावरण तैयार किया गया है, जिससे संक्रमण फैलने का खतरा नहीं होगा। मगर अब पिछले कुछ दिनों के दौरान कई टीमों के कुछ खिलड़ियों के विषाणु के संक्रमण की चपेट में आने की खबर ने बायो बबल के बावजूद संक्रमण फैलने की आशंकाओं को सच साबित कर दिया। जाहिर है, आयोजकों के सामने आइपीएल-2021 को अनिश्चितकाल तक स्थगित करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा। गौरतलब है कि सबसे पहले कोलकाता नाइट राइडर्स के दो खिलाड़ी संक्रमित हो गए, फिर दिल्ली कैपिटल्स की पूरी टीम को एकांतवास में डाल दिया गया और उसके बाद चेन्नई सुपर किंग्स के तीन सदस्य भी कोरोना की चपेट में आ गए।
सवाल है कि क्या आइपीएल के संचालन में लगे लोग देश-दुनिया की खबरों से इतने अनजान थे कि उन्हें इस खतरे का अहसास नहीं था! संक्रमण से बचाव के लिए जिस बायो बबल नामक सुरक्षा घेरे का हवाला दिया जा रहा था, अगर वह सचमुच इतना कारगर था तो अचानक ही कई टीमों के खिलाड़ी संक्रमण के शिकार कैसे हो गए? कैसे यह मान लिया गया कि जो विषाणु बिना किसी भेदभाव के चारों ओर कहर बरपा रहा है, उससे आइपीएल में हिस्सा ले रहे खिलाड़ी और वहां मौजूद सभी कर्मचारी और कामगार सिर्फ बायो बबल के भरोसे बचे रहेंगे?
अब खिलाड़ियों के संक्रमित होने के बाद इसकी जिम्मेदारी किसके सिर पर डाली जाएगी? शर्मनाक यह भी है कि देश में एक ओर तीन लाख से ज्यादा लोग हर रोज संक्रमित हो रहे हैं, आॅक्सीजन जैसे बुनियादी संसाधनों के अभाव और अव्यवस्था के चलते रोजाना सैकड़ों लोगों की जान जा रही है, चारों ओर मातम और खौफ का माहौल है और ऐसे में आइपीइएल के आयोजकों और उसमें शामिल होने वाले लोगों को मनोरंजन और खिलवाड़ में मशगूल होना ज्यादा पसंद आया! क्या यह एक तरह से संवेदनहीनता का चरम नहीं है कि बहुत सारे लोग इलाज का खर्च नहीं उठा पाने या फिर समय पर आॅक्सीजन या दूसरी दवाएं नहीं मिल पाने की वजह से मर रहे हैं और ऐसे समय में आइपीएल में अथाह धन बहाया जा रहा है!
देश में ऐसे तमाम लोग हैं जो सामर्थ्य से बाहर जाकर भी पीड़ितों की मदद कर रहे हैं, दूसरे देश भी सहायता के हाथ बढ़ा रहे हैं।
तो क्या आइपीएल के आयोजकों को मौजूदा संकट में सरकार और जनता के बीच मददगार बन कर नहीं खड़ा होना चाहिए था? लेकिन एक अमूर्त सुरक्षा का दावा करके खिलाड़ियों तक को संक्रमण के जोखिम में धकेल दिया गया। हालांकि खुद खिलाड़ियों को भी इस संकट के दौर में अपने विवेक और नैतिकता की आवाज सुननी चाहिए थी। सही है कि दुख और संकट का सामना धीरज और साहस के साथ किया जाना चाहिए और इसकी वजह से दुनिया रुक नहीं सकती। लेकिन जब आसपास पीड़ा और चिंता बिखरी पड़ी हो और उसका सामना करने की कोशिश हो रही हो, तो वैसे समय में मनोरंजन का आयोजन मानवीयता और संवेदना के साथ खिलवाड़ ही कहा जाएगा।

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