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- कमाई को देश से बचाने...
अरुण कुमार, अर्थशास्त्री।
पैंडोरा पेपर्स जैसे खुलासे हमारी अर्थव्यवस्था की गड़बड़ियों को उजागर करते हैं। यह कोई पहला मामला नहीं है। पनामा पेपर्स, पैराडाइस पेपर्स जैसे कई खुलासों के हम गवाह रहे हैं। इन सबमें बताया गया है कि किस तरह से देश से पैसा निकालकर विदेश भेजा गया और टैक्स से बचने की पूरी कोशिश की गई। संपन्न तबका ऐसा करता है, ताकि उसे अपनी आमदनी पर पूरा कर न चुकाना पड़े। पैसा भेजने का जरिया अमूमन हवाला होता है या फिर 'अंडर-इनवॉयसिंग ऑफ रेवेन्यू' (वस्तु की कीमत वास्तविक दाम से कम बताना) या 'ओवर-इनवॉयसिंग ऑफ कॉस्ट' (वस्तु की कीमत वास्तविक दाम से ज्यादा बताना) के माध्यम से काली कमाई की जाती है। टैक्स-हैवन देशों (जिन राष्ट्रों में कर की दर काफी कम अथवा नाममात्र की होती है) में पैसों की 'लेयरिंग' होती है, यानी पैसे के मूल स्रोत को छिपाने के लिए उसे वित्तीय प्रणाली में इधर-उधर किया जाता है। मसलन, पहले किसी एक टैक्स-हैवन देश की शेल कंपनी (अमूमन कागजों पर चलने वाली कंपनी) में निवेश किया जाता है, फिर इस कंपनी को बंद करके पैसे को किसी दूसरे टैक्स-हैवन देश की शेल कंपनी में डाल दिया जाता है। यह प्रक्रिया तीसरी, चौथी, पांचवीं, छठी या इससे आगे की कंपनी तक दोहराई जाती है। और अंत में, किसी अन्य टैक्स-हैवन देश की शेल कंपनी में पैसा रख दिया जाता है। दुनिया भर में तकरीबन 90 टैक्स-हैवन देश हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रिया जैसे उन्नत देश भी इससे अछूते नहीं हैं।