सम्पादकीय

गडकरी की स्क्रैप नीति

Gulabi
9 Feb 2021 3:27 PM GMT
गडकरी की स्क्रैप नीति
x
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में पुराने और प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को हटाने के लिए बहुप्रतीक्षित स्वैच्छिक वाहन कबाड़ नीति का ऐलान किया। इसके तहत 15 वर्ष पुराने कमर्शियल व्हीकल को स्क्रैप किया जाएगा यानि उन्हें सड़कों पर चलाने की अनुमति नहीं होगी। वहीं प्राइवेट व्हीकल की अवधि भी 20 वर्ष तय की गई है।


यानि ऐसे वाहनों को 20 वर्ष के बाद स्क्रैप किया जा सकेगा। केन्द्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी वाहन स्क्रैप नीति पर काफी समय से काम कर रहे थे। इस नीति के काफी फायदे होंगे। पुरानी कारों को स्क्रैप किये जाने से न केवल प्रदूषण घटेगा साथ ही तेल आयात ​बिल भी घटेगा।

15 वर्ष पुरानी गाड़ियों की रिसेल वैल्यू बहुत कम है और वे बहुत प्रदूषण फैलाती हैं। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने 2030 तक देश को पूरी तरह ई-मोबिलिटि पर शिफ्ट करने का महत्वकांक्षी लक्ष्य रखा है। नई स्क्रैप नीति को एक अप्रैल 2022 से इसे लागू किया जाएगा।

नई नीति का दिल्ली-एनसीआर में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण घटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने यहां गाड़ियों की उम्र सीमा पहले ही तय कर रखी है जिसके तहत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में डीजल गाड़ी अधिकतम दस वर्ष और पैट्रोल डीजल ईंजन वाली गाड़ी अधिकतम 15 वर्ष ही चल सकेगी।

विकासशील और विकसित देशों में परिवहन के लिए उपयोग किए जा रहे सार्वजनिक एवं व्यक्तिगत वाहनों के कारण खासकर शहरों में भारी प्रदूषण की मात्रा बढ़ी है।आज के परिवेश में महानगरों एवं शहरों में कुल प्रदूषण का लगभग 70 प्रतिशत प्रदूषण वाहनों से निकलने वाले धुएं से हो रहा है।

वाहनों द्वारा उत्सर्जित प्रदूषणकारी तत्वों का वायुमंडल तथा उसमें उपस्थित सभी जीव पदार्थों के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव हो रहा है। प्रदूषण का प्रभाव केवल मनुष्य पर ही नहीं बल्कि जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों, भूमि, भवन पर भी पड़ता है। कार्बन मोनोआक्साइड वाहनों से छोड़े गए धुएं में लगभग 90 प्रतिशत तक हो सकती है।

इसका सारे शरीर और खासकर दिमाग, फेफड़े, हृदय, गुर्दे और रक्त पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। डीजल से चलने वाले वहनों निकलने वाली हाइड्रो कार्बन फेफड़ों में पहुंच कर ट्यूमर पैदा करती है। एक वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार एक वाहन 900 किलोमीटर चलने पर उतनी आक्सीजन को प्रभावित कर देता है, जितना एक व्यक्ति एक वर्ष में करता है।

वाहनों के धुएं में मौजूद सीसा एक ऐसा जहर है जो नाड़ियों में इकट्ठा होकर अनुवांशिक विकार पैदा करता है। सीसा बड़ों की अपेक्षा बच्चों को पांच गुना ज्यादा नुक्सान पहुंचता है। पैट्रोल चालित वाहन भी प्रदूषण फैलाते हैं। दिल्ली और महानगरों में रहने वाले लोग एक तरह से गैस चैम्बर में ही रह रहे हैं।

वाहन प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए हाल ही के वर्षों में सरकारों द्वारों महत्वपूर्ण कदम उठाये गए, इनमें वाहनों के उत्सर्जन मानकों को सुदृढ़ करना और ईंधन गुणवत्ता में विशिष्टता शामिल है। लोग प्रदूषण की गंभीरता को समझते हैं लेकिन वह स्वयं कोई ठोस प्रयास करने को तैयार नहीं हैं।

उपाय तो कई किए गए। ईंधन की गुणवत्ता को भी बढ़ाया गया लेकिन हर रोज सड़कों पर नए वाहन उतर जाने से स्थिति और गंभीर होती रही। केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने नई नीति के तहत नया वाहन खरीदते समय अपने पुराने और प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को कबाड़ करने का विकल्प चुनने वाले खरीदारों को कई लाभ भी दिए जाने का वायदा भी किया है।

इससे एक फायदा तो यह होगा कि आने वाले वर्षों में भारतीय वाहन उद्योग का कारोबार 30 फीसदी बढ़ कर 10 लाख करोड़ रुपए पहुंच जाएगा। इससे वाहन उद्योग को कोविड-19 महामारी के प्रतिकूल प्रभाव से उबरने में मदद मिलेगी। आम बजट में स्टील उत्पादों पर आयात शुल्क कम कर दिया गया।

इसका प्रभाव भी देखने को मिलेगा कि वाहनों की कीमतों में एक से तीन फीसदी कमी हो सकती है। सरकार को नए स्क्रैप केन्द्र, फिटनेस सैंटर स्थापित करने होंगे। इस नीति के लागू होने पर भारत एक वाहन क्षेत्र के बड़े निर्माण केन्द्र के रूप में उभर सकता है क्योंकि वाहन उद्योग से जुड़ा माल यानी स्टील, एल्यूमीनियम और प्लास्टिक कबाड़ के रिसाइकल होने से मिल जाएगा।

इससे वाहनों की कीमतों में 30 फीसदी कमी आ सकती है। प्रदूषण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए नितिन गडकरी ने अपने निर्वाचन क्षेत्र में लग्जरी गाड़ी को छोड़कर इलैक्ट्रिक वाहन पर रजिस्ट्रेशन फ्री है। नई वाहन स्क्रैप नीति को सहयोग बहुत जरूरी है।

आने वाली पीढ़ी को सांस लेने के लिए स्वच्छ हवा उपलब्ध कराने के लिए मौजूदा पीढ़ी को खुद सशक्त पहल करनी होगी। कोई नहीं चाहेगा कि हमारे वच्चे विषाक्त गैसों के चैम्बर में जीवन जीने को मजबूर हो या वे किसी विकार का शिकार हो जाए। बेहतर यही होगा कि हम वातावरण को स्वच्छ बनाने के लिए हर संभव प्रयास करें।


Next Story