सम्पादकीय

जी-7 का वैक्सीनेशन मंत्र

Triveni
13 Jun 2021 5:16 AM GMT
जी-7 का वैक्सीनेशन मंत्र
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भारत समेत तमाम बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को कोरोना के ग्रहण का शिकार होना पड़ा है।

आदित्य चोपड़ा | भारत समेत तमाम बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को कोरोना के ग्रहण का शिकार होना पड़ा है। कोरोना का वायरस देशों की सीमाओं पर राष्ट्रीयताओं की परवाह नहीं करता। दूसरी लहर ने भारत में जो कहर ढाया है, वैसे अनुभव से अनेक देश गुजर चुके हैं। ऐसी स्थिति में ​फिर से महामारी की नई लहर की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता। सबसे ज्यादा चिंता गरीब और छोटे देशों की है, जहां के लोगों का ​टीकाकरण किया जाना बहुत जरूरी है। कोरोना वायरस पर विजय पाने का एक मात्र समाधान वैक्सीनेशन ही है। अगर विकसित देशों ने कोरोना की चेन को तोड़ने में सफलता पाई है लेकिन दूसरे देशों में कोरोना फैल रहा है तो इसका अर्थ यही है कि महामारी खत्म नहीं हुई है। वैश्वीकरण के दौर में हर छोटे-बड़े देश आपस में जुड़े हुए हैं। लोगों का आवागमन होता रहता है। आयात, निर्यात और निवेश के तार अन्तर्राष्ट्रीय बाजार से जुड़े हुए हैं और लॉकडाउन लम्बे अर्से तक लागू किया जाना सम्भव नहीं है। ऐसी स्थिति में पूरी दुनिया को आपस में सहयोग और समन्वय कायम कर महामारी से जंग लड़नी होगी। इस महामारी को हराने के लिए यह जरूरी है कि दु​निया के सबसे मजबूत और अमीर लोकतांत्रिक देश आगे आएं। इस दिशा में जी-7 देशों ने एक सकारात्मक पहल की है।

ब्रिटेन के कार्विस वे में जी-7 देशों की शिखर वार्ता के पहले ही दिन ​ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जानसन ने उम्मीद जताई कि जी-7 देश विश्व के गरीब देशों को एक अरब डोज देने को तैयार हो जाएंगे ताकि टीकाकरण की मुहिम तेज हो सके। वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 50 करोड़ डोज देने का ऐलान किया है। ​ब्रिटेन भी गरीब देशों को करीब 50 लाख खुराक देगा। जी-7 देशों में कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान भी शामिल हैं। खास बात यह है कि जी-7 किसी शर्त के साथ काम नहीं कर रहा, बल्कि यह तो जिन्दगियां बचाने की कोशिश है। जी-7 ने यह संकल्प दोहराया है कि वो वर्ष 2022 के अंत तक दुनिया की पूरी आबादी को वैक्सीन देने की कोशिश करेंगे। महामारी को हराना है तो अन्य मित्र देशों को भी जी-7 का सहयोग करना होगा। कोरोना से जंग में यूरोप को भी पहल करनी होगी। फ्रांस इस वर्ष के अंत तक कम से कम तीन करोड़ वैक्सीन डोज दान करने की स्थिति में होगा।
दुनिया के करीब 400 करोड़ लोग कोवैक्स जैसी योजना पर निर्भर हैं। कौवक्स विश्व स्वास्थ्य संगठन के नेतृत्व में चल रही एक योजना है जिसके अन्तर्गत कम आैर मध्यम आय वाले देशों को कोरोना वैक्सीन दी जा रही है। कोरोना महामारी से अब तक दुनिया में लगभग 40 लाख लोगों की मौत हाे चुकी है। महामारी ने कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं को हिला कर रख दिया है। कोरोना संक्रमण 2019 में सबसे पहले चीन के सामने आने के बाद से 210 से भी ज्यादा देशों में फैला। अगर दुनिया भर में वैक्सीनेशन अभियान तेजी से एक साथ नहीं चलाया गया तो वायरस के नए और घातक वैरिएंट में तब्दील होने का खतरा बना रहेगा। अमेरिका ने दावा किया है कि वो इस वर्ष के अंत में 20 करोड़ डोज और अगले वर्ष जून तक 30 करोड़ डोज दान कर पाएगा। कोरोना वैक्सीन दान करने की मात्रा दुनिया के किसी अन्य देश द्वारा की गई घोषणा से काफी बड़ी है। हालांकि जी-7 की 100 करोड़ टीके दान देने की घोषणा समंदर में बूंद के समान है, लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि जी-7 शिखर वार्ता के दौरान अन्य देश भी ऐसी पहल करेंगे। महामारी के इस घातक दौर में 'वैक्सीन शेयरिंग' ही एक मात्र समाधान है। दुनिया की 70 फीसदी आबादी को वैक्सीन दी जानी जरूरी है, जिसके लिए कम से कम 11 सौ करोड़ डोज जुटानी होंगी।
सबसे बड़ी चुनौती वैक्सीन की डिलीवरी है। इस महीने के पहले सप्ताह तक कोवैक्स कार्यक्रम के तहत 129 देशों को सिर्फ 8 करोड़ दस लाख डोज ही भेजी जा सकी हैं। जो गरीब देश कोवैक्स पर निर्भर है, वो टीकाकरण के मामले में काफी पीछे चल रहे हैं। भारत सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माताओं में से एक है। उसकी अपनी जरूरत भी पूरी नहीं हो रही। कुछ देशों का रवैया भी वैक्सीनेशन में बाधक बन रहा है। अफ्रीकी देश वैक्सीन एक्सपायर होने से पहले इस्तेमाल ही नहीं कर पाए। टीके बेकार नहीं जाने चाहिएं। एक-एक टीका एक-एक मनुष्य की जान के लिए काफी कीमती है। अगर कोरोना वायरस लम्बे समय तक रहा तो ऐसे में मानवीय आर्थिक चिंताएं बहुत बढ़ जाएंगी, ऐसी स्थिति में वैश्विक हितों पर कुठाराघात होगा। सम्भलने में काफी वक्त लग सकेगा। वैसे भी हम क्रूर दुनिया में रहते हैं। कोरोना वैक्सीन के पेटेंट का मसला अधर में लटका हुआ है। उम्मीद की जानी चाहिए कि कोरोना से जंग में दुनिया एक मंच पर आएगी और टीकाकरण अभियान सुपर चार्ज हो जाएगा।


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