सम्पादकीय

'जी-7 से डेमोक्रेसीज-11'

Gulabi
15 Jun 2021 3:53 PM GMT
जी-7 से डेमोक्रेसीज-11
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भारत को इसमें जो अग्रणी भूमिका प्रदान की गई वह इस देश की पुरातन मान्यताओं की जमीन पर खड़े किये

आदित्य चौपड़ा। दुनिया के सात बड़े विकसित व औद्योगीकृत राष्ट्रों ब्रिटेन, जर्मनी, इटली , फ्रांस, जापान, कनाडा व अमेरिका के 'समूह-सात' ने पूरे विश्व में खुले या उदार समाज की वकालत करते हुए जिस तरह अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को विश्व मन्त्र बनाने का आह्वान करते हुए इसे प्रजातन्त्र की ऐसी संरक्षक शक्ति की संज्ञा दी है जिससे लोग बिना किसी डर व दबाव के अपना जीवन व्यतीत कर सकें। यह वैचारिक स्वतन्त्रता आज की बदलती दुनिया में ऑनलाइन (इंटरनेट के माध्यमों से) व दूसरे माध्यमों (ऑफलाइन) में भी होनी चाहिए। समूह ने इस आशय का संयुक्त घोषणापत्र जारी करके आगाहा किया है कि जानबूझ कर जब कुछ फायदों के लिए इंटरनेट पर प्रतिबन्ध लगाया जाता है तो इससे अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता व लोकतन्त्र के लिए खतरा पैदा होता है। समूह के लन्दन में चल रहे सम्मेलन के अंतिम दिन जब इस आशाय का प्रस्ताव पारित किया गया तो उसमें मुख्य वक्ता भारत के प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी थे जिन्होंने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये इसे सम्बोधित किया।


भारत को इसमें जो अग्रणी भूमिका प्रदान की गई वह इस देश की पुरातन मान्यताओं की जमीन पर खड़े किये गये आधुनिक भारत की शानदार इमारत का ही सम्मान है। प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जी-7 सम्मेलन में एक आमंत्रित अतिथि के रूप में दिये गये अपने भाषण में इसी कोण को स्पष्टता के साथ रखते हुए खुलासा किया कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता और लोकतन्त्र भारत की पुरातन संस्कृति में रचे-बसे विचार हैं परन्तु उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि खुले या उदार समाजों को गलत सूचनाओं व साइबर आक्रमणों का खतरा भी रहता है। अतः इनसे निपटने के लिए और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को व्यापक रूप देने के लिए वर्तमान समय में हमें साइबर स्पेस (इंटरनेट) का भी लोकतन्त्रीकरण करने पर जोर देना चाहिए। श्री मोदी का यह बयान आज की डिजिटल दुनिया की चुनौतियों पर टिका हुआ है। ये चुनौतियां नई जरूर हैं मगर कमोबेश रूप बदल कर ही हमारे सामने आ रही हैं। भारत के लिए निश्चित रूप से यह गौरव की बात है कि उसके प्रधानमन्त्री को जी-7 समूह के देशों ने इस विषय पर मुख्य वक्ता बनाया जबकि इस सम्मेलन में भारत के अलावा दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया व दक्षिण कोरिया भी आमन्त्रित सदस्य देश थे या पर्यवेक्षक के रूप में इसमें भाग ले रहे थे। इसकी वजह यह भी हो सकती है कि भारत को दुनिया का सबसे बड़ा संसदीय लोकतन्त्र कहा जाता है। यह भी सुखद है कि इन 11 देशों को समूह के नेताओं ने 'डेमोक्रेसीज-11' की संज्ञा देकर पुकारा। इसका दूसरा अर्थ यह भी निकाला जा सकता है कि दुनिया के मजबूत लोकतान्त्रिक राष्ट्रों का ऐसा समूह भी तैयार हो रहा है जो दुनिया में इस व्यवस्था के लिए उत्प्रेरक गुट के रूप में काम कर सकता है और वैश्विक स्तर पर प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए प्रेरणा दे सकता है। इससे चीन जैसे देश घबराहट महसूस कर सकते हैं क्योंकि उनकी नीतियां अपने लोगों का दमन करके विकास की इमारत खड़ी करने की रही हैं। इसी वजह से जब भी भारत की तुलना आर्थिक मोर्चे पर चीन से की जाती है तो कुछ विद्वजन इसका पुरजोर विरोध करते हैं। क्योंकि भारत ने जो भी विकास किया है वह अपनी सांस्कृतिक व सामाजिक विविधता को कायम रखते हुए एक खुले व उदार समाज के रूप में किया है। हमने आदमी का आत्मसम्मान व उसकी गरिमा को कायम रखते हुए विकास की सीढि़यां चढ़ी हैं जबकि चीन जैसे देशों ने आदमी को मशीन बना कर विकास किया है। हमारा लक्ष्य मानवीयता रहा है जबकि चीन का मशीनीकरण। मानवीयता से ही लोकतन्त्र निकलता है और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता इसका अन्तर्निहित अंश होता है। इसका प्रमाण महात्मा गांधी और गांधीवाद है। गांधीवाद मानवतावाद का ही दूसरा नाम है और महात्मा गांधी ने 1919 के करीब ही कह दिया था कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता मनुष्य की एेसी जरूरत है जैसी जीवन के लिए पानी की। जिस तरह पानी में लेशमात्र भी मिलावट करके उसे 'पानी' नहीं रखा जा सकता है वैसे ही अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता है। इसमें भी यदि किसी प्रकार की मिलावट की जाती है तो मनुष्य के आत्मगौरव व उसकी गरिमा को कायम नहीं रखा जा सकता। गरिमा का अर्थ उसकी निजी स्वतन्त्रता और अस्मिता से ही है। किसी भी प्रकार का डर या खौफ अभिव्यक्ति में मिलावट का काम ही करता है।

भारत में तो जैन दर्शन में 'स्यातवाद' का सिद्धान्त प्रतिपादित करके घोषित किया गया कि 'कथनचित' ही 'कदाचित' को स्वयं में समाहित रखता है अतः अभिव्यक्ति ही मनुष्य का स्वभाव होता है। उसके इस धर्म को आशंकित करना भी हिंसा के दायरे में आता है। अतः श्री मोदी ने भारत की तरफ से यही कहा कि आज के बदलते दौर में साइबर हमलों को बन्द करने की तकनीक भी जरूर बननी चाहिए और साइबर स्पेस का भी लोकतन्त्रीकरण होना चाहिए जिससे अभिव्यक्ति का स्वरूप हर स्तर पर स्वतन्त्र रह सके। इसके साथ ही दुनिया जितनी अधिक लोकतान्त्रिक होगी आदमी की स्वतन्त्रता उतनी ही मजबूत होगी और अभिव्यक्ति तो उसका अधिकार हो ही जायेगा।


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