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G-7 Summit: यूरोपीय देशों और भारत का साथ लेकर क्या चीन को सबक सिखा पाएगा अमेरिका
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| G-7 शिखर सम्मेलन इस बार ब्रिटेन (Briten) में हो रहा है. दुनिया के सबसे अमीर देश अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, जापान, इटली और जर्मनी के राष्ट्राध्यक्ष आजकल यहां सशरीर उपस्थित हैं. हालांकि भारत की ओर से प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) ने भी वर्चुवली G-7 में हिस्सा लिया, जहां उन्होंने पूरी दुनिया को कोरोना महामारी (Corona Pendemic) से निपटने के लिए एक जुट होने की बात कही. 2019 में जब फ्रांस में जी-7 का शिखर सम्मेलन हुआ था उस वक्त भी भारत ने फ्रांस के न्योते पर जी-7 में हिस्सा लिया था, जिससे भारत (India) की ओर से चीन (China) को कड़ा संदेश गया था कि भारत अब दुनिया के बड़े देशों के साथ खड़ा है और एशिया में चीन का मुकाबला करने को तैयार है.
दरअसल दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका, यूरोप और भारत के साथ मिलकर चीन को घेरने की कोशिश कर रहा है. इसी का नतीजा है कि चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के मुकाबले अमेरिका की 'ट्रिपल बी डब्लू' स्कीम सामने आई है. हालांकि यह स्कीम चीन को रोकने के उद्देश्य से लाई जा रही है पर उम्मीद की जा रही है कि इससे गरीब मुल्कों को कुछ फायदा हो सके. जो बाइडेन जब से अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं, वे चीन के विरोध में ही बोल रहे हैं. अमेरिका किसी भी कीमत पर दुनिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करना चाहता है और इसके लिए वह अब यूरोप को एक साथ लाने के लिए काम करने लगा है.
अमेरिका प्रथम की नीति के उलट यूरोप के साथ खड़ा अमेरिका
अमेरिका में जब 2017 में राष्ट्रपति के चुनाव हुए तो डोनाल्ड ट्रंप जीत कर बराक ओबामा की जगह अमेरिका के नए राष्ट्रपति बने. ट्रंप जब अमेरिका में आए तब उन्होंने 'अमेरिका प्रथम' की नीति लागू की, इसके साथ उन्होंने कहा कि यूरोप का अमेरिका के साथ जो समझौते हैं उसमें यूरोप का ज्यादा फायदा है और अमेरिका का कम. इन्हीं वजहों से अमेरिका और यूरोप के बीच बीते कुछ सालों तक तल्खी बरकरार रही. लेकिन जब जो बाइडेन अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो उन्होंने इसके उलट यूरोप को एक साथ लेकर काम करने की नीति अपनाई, यही वजह है कि अब G-7 के जरिए अमेरिका चीन और रूस को दिखाना चाहता है कि वह यूरोप के साथ मिलकर अब अपने दुश्मनों को टक्कर देने के लिए तैयार है
हाल ही में चीन को घेरने के लिए G-7 देशों के नेताओं ने वैश्विक न्यूनतम कर नीति का समर्थन किया है, इससे चीन की बाजार नीतियों को नुकसान पहुंचेगा. वहीं गरीब देशों को 100 करोड़ मुफ्त कोविड वैक्सीन उपलब्ध करा कर ये देश दुनिया भर के गरीब देशों के बीच से चीन के प्रभुत्व को कम करेंगे.
चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के मुकाबले 'ट्रिपल बी डब्लू'
चीन अपने महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव के तहत अपने कारोबार को पूरी दुनिया में फैलाना चाहता है, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाए. लेकिन अब अमेरिका जी-7 देशों के साथ मिलकर बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड यानि 'ट्रिपल बीडब्ल्यू' को चीन के इस योजना के मुकाबले लाने की घोषणा की है, जिसमें वह 2035 तक दुनिया भर के विकासशील देशों में 40 लाख करोड डॉलर के इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की सौगात देगा.
इस काम में अमेरिका के साथ G-7 के बाकी छह देश ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, जापान, इटली और जर्मनी भी साथ देंगे. दरअसल चीन विकासशील देशों को अपनी शर्तों पर लोन देता है, ताकि वह अपने देश में विकास कर सके, उसके बाद लोन की शर्तों को न चुका पाने पर वह उनके देश पर अपना प्रभुत्व जमाने लगता है. अमेरिका की यह नई योजना ऐसे देशों के लिए एक शानदार मौका है जो अपने देश में सड़क, रेलवे, बिजली और तमाम विकास के काम करना चाहती हैं. चीन को पता है कि अगर ट्रिपल बीडब्ल्यू के तहत अमेरिका और G-7 के देश इन विकासशील देशों की मदद करने लगे तो यह विकासशील देश चीन की शर्तों वाले लोन को लेने से इंकार कर देंगे, जिससे उसका सुपर पावर बनने का सपना पूरी तरह से टूट जाएगा.
रूस को भी जवाब देगा अमेरिका
हाल ही में 2 महीने पहले अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को हत्यारा करार दे दिया था. जिसके बाद से ही दुनिया भर में संदेश चला गया था कि अमेरिका की तरफ से रूस के साथ रिश्ते और तल्ख होने वाले हैं. हालांकि, इन सब के बावजूद भी जो बाइडेन जल्द ही रूस का दौरा करने वाले हैं और इस दौरे में वह राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात करेंगे. लेकिन जिस तरह से पश्चिमी एशिया और पूर्वी यूरोप में अमेरिका और रूस आपस में टकरा रहे हैं, उसे देखकर पूरी उम्मीद है कि इस मुलाकात से रिश्तो में कोई खासा सुधार देखने को नहीं मिलेगा.
अमेरिका जिस तरह से जी 7 देशों के साथ मिलकर चीन और रूस को घेरने की नीति बना रहा है, उससे साफ जाहिर है कि आने वाले समय में टकराव और बढ़ने वाला है. क्योंकि बीते कुछ वर्षों में चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को इतना मजबूत कर लिया है कि वह रूस के साथ मिलकर अमेरिका से टकराने को तैयार बैठा है और अमेरिका भी अब यूरोपीय देशों को लामबंद कर रहा है, जिससे वह चीन और रूस से आर्थिक और कूटनीतिक तौर पर मुकाबला कर सके.